- अभिमत

देश की अर्थव्यवस्था को गति देने की पहल हो 

प्रतिदिन :

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा हाल में जारी की गई रिपोर्ट, जो कि आर्थिक प्रतिस्पर्धा क्षमता सूचकांक प्रदर्शित करती है | उसमे बड़े देशों का बोलबाला है |परन्तु भारत ने अपनी स्थिति में सुधार किया है | इस रिपोर्ट के अनुसार १४० देशों में भारत का स्थान ५८ वां है| पिछले साल के मुकाबले हमारा देश भारत पांच पायदान ऊपर चढ़ा है| यह भी उल्लेखनीय है कि जी-२० के देशों में सिर्फ भारत ही इतनी बड़ी तरक्की दर्ज कर पाया है|

वैसे तो प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में अमेरिका, सिंगापुर, जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का ही बोलबाला है, जिसका बड़ा कारण है इन देशों में शोध और विकास पर अधिक निवेश| उपयोगी और व्यावसायिक ज्ञान का अधिकाधिक उत्पादन तथा उपभोग आज आर्थिक शक्ति प्राप्त करने की कुंजी है| भारत इस दिशा में अग्रसर तो है, किंतु महत्वपूर्ण आर्थिक शक्तियों के मुकाबले शोध और अनुसंधान में हमारा निवेश बहुत कम है|

देश की विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सलाहकार परिषद ने पहलकदमी करते हुए बड़े और मंझोले दर्जे के औद्योगिक उपक्रमों को शोध और विकास के लिए निश्चित मात्रा में राशि आवंटित करनेकी बात पर जोर दिया है | वित्त मंत्रालय ने अपनी आर्थिक समीक्षा में शोध और विकास के मद में हो रहे निवेश में जारी ठहराव को रेखांकित किया था| आर्थिक समीक्षा के तथ्य बताते हैं कि पिछले दो दशक से भारत में इस मद में निवेश सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का ०.६ से ०.७ प्रतिशत ही रहा है, जबकि यह अनुपात अमेरिका और चीन में२.८ प्रतिशत , इस्राइल में ४.३ प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में ४.२ प्रतिशत है| एक बड़ा अंतर यह भी है कि इन देशों में शोध-अनुसंधान पर होनेवाले निवेश का अधिकांश निजी क्षेत्र से आता है, जबकि भारत में, सरकार ही इस मद में निवेश का मुख्य स्रोत है| हमारे यहां इस निवेश का मुख्य उपयोग भी सरकारी क्षेत्र में ही होता आया है, निजी क्षेत्र की भागीदारी न के बराबर है |

उपलब्ध आंकड़े पुराने है |२०१२-१३ में सरकारी क्षेत्र में शोध और विकास पर कुल ४६,८८६ करोड़ रुपये का निवेश हुआ, जिसमें आण्विक ऊर्जा विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन तथा भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद सरीखी महज आठ संस्थाओं ने २८६३६ करोड़ रुपये खर्च किये| इन तथ्यों से मिले संकेत कहते है कि इस क्षेत्र में निवेश के लिए केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी आगे आना चाहिए तथा निजी क्षेत्र को भी बड़े निवेश के लिए तत्पर होना चाहिए| विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सलाहकार परिषद ने इसी के अनुकूल सुझाव दिया है कि निजी कंपनियां शोध और विकास में हो रहे निवेश में अपना हिस्सा बढ़ाएं जिससे २०२२ तक इस मद में निवेश बढ़कर जीडीपी के एक फीसदी तक पहुंच सके| परिषद ने संबद्ध मंत्रालयों से भी कहा है कि वे अपने बजट का कम-से-कम दो प्रतिशत इस मद में खर्च करें | सब मिलकर अगले पांच सालों में शोध-विकास पर निवेश जीडीपी के १.५ प्रतिशत के वैश्विक औसत तक ला सके, तो अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाये रखने में बहुत मदद मिलेगी|

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

About Rakesh Dubey

Senior journalist
Read All Posts By Rakesh Dubey

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *