नई दिल्ली. नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण देने के लिए लोकसभा में मंगलवार को विधेयक पेश किया गया। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने 124वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया। चर्चा की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह 10% आरक्षण सभी धर्म के लोगों के लिए है। निजी शैक्षणिक संस्थानों में भी यह आरक्षण लागू होगा।’’ चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद केवी थॉमस ने कहा- बिल का विरोध नहीं करते हैं, लेकिन हमारी मांग है कि इसे पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाए। इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा- आप इस बिल का समर्थन कर ही रहे हैं तो आधे मन से नहीं, पूरे दिल से कीजिए। जब यह बिल गरीब सवर्णों के पक्ष में है तो कम्युनिस्टों को भी इसका विरोध नहीं करना चाहिए।
लोकसभा और राज्यसभा में यह संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए दो तिहाई सदस्यों का समर्थन जरूरी है। लोकसभा में सांसदों की मौजूदा संख्या 523 है। बिल पारित कराने के लिए 349 वोट जरूरी होंगे। इसी तरह राज्यसभा में सांसदों की मौजूद संख्या 244 है। यहां बिल पारित कराने के लिए 163 वोट चाहिए होंगे। लोकसभा में सरकार बिल को आसानी से पास करा लेगी।
राज्यसभा में एनडीए के 88, कांग्रेस के 50 और अन्य दलों के 11 सांसदों के वोट के बाद भी सरकार को विपक्ष से और समर्थन जुटाने की जरूरत होगी। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने इस बिल का समर्थन किया है। द्रमुक ने इसका विरोध किया है। वोटिंग को लेकर बाकी गैर-एनडीए दलों का रुख अभी साफ नहीं है।
विपक्ष : कांग्रेस का सवाल, क्या- एससी-एसटी के लिए निजी संस्थानों में आरक्षण है
सरकार जल्दबाजी में है : कांग्रेस सांसद केवी थॉमस ने कहा- हमें लगता है कि सरकार जल्दबाजी में है और जल्दबाजी में इतना बड़ा फैसला नहीं लिया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि सरकारी सहायता प्राप्त और गैर-सरकारी सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण दिया जाएगा। जबकि, एससी-एसटी के लिए गैर-सरकारी संस्थानों में ऐसा नहीं है। नौकरियों की बात आती है, तो सरकार बताए कि रोजगार है कहां?
63 हजार रुपए महीना कमाने वाले अक्षम नहीं : थॉमस ने कहा- जिनकी आय सीमा 8 लाख रुपए सालाना यानी 63 हजार रुपए महीना है, वे अक्षम नहीं हैं। यह कदम केवल चुनावों को देखते हुए उठाया जा रहा है और कोई होमवर्क नहीं किया गया है। हम इसके खिलाफ नहीं हैं। हम आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के साथ हैं, लेकिन आप इतनी जल्दबाजी में यह कदम क्यों उठा रहे हैं? मेरी मांग है कि इस बिल को पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाए।
63 हजार रुपए महीना कमाने वाले अक्षम नहीं : थॉमस ने कहा- जिनकी आय सीमा 8 लाख रुपए सालाना यानी 63 हजार रुपए महीना है, वे अक्षम नहीं हैं। यह कदम केवल चुनावों को देखते हुए उठाया जा रहा है और कोई होमवर्क नहीं किया गया है। हम इसके खिलाफ नहीं हैं। हम आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के साथ हैं, लेकिन आप इतनी जल्दबाजी में यह कदम क्यों उठा रहे हैं? मेरी मांग है कि इस बिल को पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाए।
आरक्षण के लिए 5 प्रमुख मापदंड
1. परिवार की सालाना आमदनी 8 लाख रु. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
2. परिवार के पास 5 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि नहीं होनी चाहिए।
3. आवेदक के पास 1,000 वर्ग फीट से बड़ा फ्लैट नहीं होना चाहिए।
4. म्यूनिसिपलिटी एरिया में 100 गज से बड़ा घर नहीं होना चाहिए।
5. नॉन नोटिफाइड म्यूनिसिपलिटी में 200 गज से बड़ा घर न हो।
अभी एससी को 15%, एसटी को 7.5% और ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जा रहा है।
कैबिनेट ने सोमवार को आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
अभी संविधान में जाति और सामाजिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान है। संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 15 और 16 में आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान जोड़ा जाएगा।
सरकार संविधान के अनुच्छेद 15 में संशोधन करना चाहती है, जिसके जरिए राज्यों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों की तरक्की के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार मिलेगा।
विशेष प्रावधान उच्च शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से जुड़े हैं। इनमें निजी संस्थान भी शामिल हैं। फिर भले ही वे राज्यों द्वारा अनुदान प्राप्त या गैर अनुदान प्राप्त हों। अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
बिल साफ करता है कि आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा।