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मध्य प्रदेश में बीते दस साल में 9 जिलों से गायब हो गईं 7448 लड़कियां

भोपाल: मध्य प्रदेश में बेटियों की खरीद-फरोख्त के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। चौंकाने वाली बात है कि उन जिलों से लड़कियों के गायब होने की सबसे ज्यादा खबरें आ रही हैं, जो लिंगानुपात के मामले में प्रदेश में सबसे आगे हैं।

जानकारों का  कहना है कि आदिवासी समुदाय के गरीबी और पिछड़ेपन का फायदा उठाकर इस समुदाय की लड़कियों को शादी, घरेलू कार्य और देह व्यापार के लिए दूसरे जिलों या राज्यों में ले जाया जा रहा है। प्रदेश से हर साल गायब होने वाले बच्चों में से 50% आदिवासी और पिछड़े समुदायों के हैं। 11 दिसंबर को गृह मंत्रालय की ओर से लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार 2016 में देश में गायब हुए बच्चों में सबसे ज्यादा बच्चे मप्र के थे। मप्र से गायब हुए कुल 8,503 बच्चों में से 6,037 लड़कियां हैं।
तस्करों का सबसे आसान शिकार होती हैं आदिवासी जिलों की लड़कियां- प्रदेश में मानव तस्करी रोकने की दिशा में काम कर रहे विशेषज्ञों की मानें तो आदिवासी जिलों की लड़कियां तस्करों का सबसे आसान शिकार होती हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक बालाघाट (1021), आलीराजपुर (1009), मंडला (1005) और डिंडोरी (1004) में लिंगानुपात सबसे बेहतर है। यही नहीं बेहतर लिंगानुपात वाले प्रदेश के दूसरे आदिवासी बहुल जिलों से भी लड़कियां लगातार गायब हो रही हैं। पिछले दस साल में ही नौ जिलों से 7,448 लड़कियों की गुमशुदगी के मामले सामने आए हैं। गंभीर बात यह है कि प्रदेश के 41 जिलों में जन्म के समय लिंगानुपात सामान्य (904) से भी कम है।
आंकड़ें बताते हैं कि मप्र में प्रतिदिन औसतन 30 बच्चे गायब हो जाते हैं। जिनमें 16 लड़कियां होती हैं। वहीं गायब बच्चों में से 9 कभी मिलते ही नहीं हैं। बच्चों के मुद्दों पर काम करने वाली संस्थाओं की मानें तो बाल व्यापार का पूरा खेल ही गुमशुदगी की आड़ में चलता है।

आदिवासी जिलों में 2009 से 2016 के बीच गायब हुए बच्चे

जिला लिंगानुपात बालक बालिकाएं कुल
बालाघाट 1021 480 1138 1618
आलीराजपुर 1009 69 181  250
मंडला 1005 346 729 1075
डिंडोरी 1004 108 423  521
झाबुआ 989 175  646 821
सिवनी  984 494 810 1304
बैतूल 970 484 1020 1504
छिंदवाड़ा 966 908 1656 2564
कटनी 948 521  845 1366
प्रदेश में 930 3585 7448 11023

 

इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट, दिल्ली की रिपोर्ट के अनुसार मप्र से गायब हुए कुल बच्चों में 85% लड़कियां हैं। इनमें से 90% लड़कियां आदिवासी और पिछ़ड़े समुदायों की हैं। 2014 में प्रदेश से 6,689 बच्चे गायब हुए थे। इनमें चार हजार लड़कियां थीं। 2015 में गायब होने वाले बच्चों की संख्या 7,919 थी। इनमें 5,590 लड़कियां थीं। 2016 में 8,503 बच्चे गुम हुए इनमें 6037 लड़कियां थीं, जबकि 3,871 बच्चों का अभी तक पता नहीं चला है। गंभीर बात यह है मप्र पुलिस अब तक महज 786 मामलों में ही अपराधी को पकड़ पाई है।
बालाघाट से एक साल पहले गायब हुई लड़की राजस्थान के चुरू जिले में एक ऐसे समुदाय में मिली, जिसका लिंगानुपात काफी कम है। डिंडोरी से गायब हुई लड़की को छतरपुर के एक गांव से उस वक्त बरामद किया गया था, जब उसकी शादी कम लिंगानुपात वाले एक समुदाय के 35 वर्षीय युवक से कराई जा रही थी। इसी प्रकार मंडला, डिंडोरी से गायब लगभग दस लड़कियां भिंड, मुरैना, शिवपुरी से बरामद हुई थीं। इन सभी की शादी भी कम लिंगानुपात वाले समुदाय में करा दी गई थी। ऊपर दिए सभी मामले बीते एक से तीन साल के दौरान के ही हैं। इनमें पुलिस ने कार्रवाई करके लड़कियों को बरामद कर लिया है।
मंडला, बालाघाट, डिंडोरी से लड़कियों का गायब होना अाम बात है। यहां से घरेलू काम के लिए लड़कियां दिल्ली भेजी जाती हैं। कुछ मिशनरीज भी लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने के बहाने ले जाते हैं। पिछले माह पुलिस ने छतरपुर ले जाई जा रहीं दो लड़कियों को बरामद किया था। इनमें एक लड़की नाबालिग थी।  – नरेश विश्वास, संचालक, निर्माण संस्था, मंडला
आलीराजपुर-झाबुआ जिलों में आदिवासी लड़कियों के गायब होने के मामले आ रहे हैं। इनमें से कई लड़कियों को शादी के लिए दूसरे जिलों में ले जाया जा रहा है। काम के लिए भी लड़कियां बाहर ले जाई जा रही हैं। इन मामलों में पुलिस के लिए कार्रवाई करना बड़ी चुनौती है क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिजनों की सहमति होती है और वे पुलिस में शिकायत ही नहीं करते हैं। – सीमा अलावा, एएसपी, आलीराजपुर

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