नई दिल्ली: हम एक ऐतिहासिक फैसला लेने जा रहे हैं, जो दुनिया की किसी भी सरकार ने नहीं लिया है. 2019 का चुनाव जीतने के बाद देश के हर गरीब को कांग्रेस पार्टी की सरकार “न्यूनतम आमदनी गारंटी देगी. हर गरीब व्यक्ति के बैंक खाते में न्यूनतम आमदनी रहेगी.” ये शब्द हैं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जो उन्होंने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सोमवार को कहे. यह बयान महज शब्दों का जाल लग सकता है लेकिन इसके संकेत दूरगामी हैं. दूरगामी इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी जिस ‘गारंटी’ के बारे में मंथन ही करती रह गई, राहुल गांधी उसमें से घी निकालने का जुगाड़ कर बैठे.
कांग्रेस पार्टी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है कि 2019 चुनाव जीतने के एकदम बाद कांग्रेस पार्टी गारंटी करके न्यूनतम आमदनी देने जा रही है : कांग्रेस अध्यक्ष @RahulGandhi #CongressForMinimumIncomeGuarantee pic.twitter.com/jTttgR2wFB
— Congress (@INCIndia) January 28, 2019
गारंटी की बात कर कांग्रेस अध्यक्ष ने छत्तीसगढ़ में जिस मुद्दे को उठाया है, उसे अधिकांश जनता की दुखती रग कह सकते हैं. भारत जैसे देश में ऐसे लोगों की बहुलता है जो असंगठित रोजगार की मार झेल रहे हैं. ऐसे में राहुल गांधी ने ‘न्यूनतम रोजगार गारंटी’ की बात कर उस एक जमात को साधने की कोशिश की है, जो दिन भर काम करने के बाद शाम के समय खुद को ठगा महसूस करता है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि कांग्रेस की सरकार ने ही मनरेगा की शुरुआत की, जिसे गांव-देहात के लिए क्रांतिकारी योजना माना जाता है. यह अलग बात है कि उसे भ्रष्टाचार के घुन ने दूर तक खोखला किया है, लेकिन एक बड़ी तादाद मनरेगा पर आश्रित है, इसमें कोई संदेह नहीं. एक समय मनरेगा का विरोध करने वाले नरेंद्र मोदी ने मनरेगा का बजट बढ़ाया ही, कम नहीं किया. हां, बीजेपी सरकार यह दावा करती रही है कि उसके कार्यकाल में इस स्कीम में भ्रष्टाचार कम हुआ है.
We cannot build a new India while millions of our brothers & sisters suffer the scourge of poverty.
If voted to power in 2019, the Congress is committed to a Minimum Income Guarantee for every poor person, to help eradicate poverty & hunger.
This is our vision & our promise.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 28, 2019
कांग्रेस के युवा अध्यक्ष की उपरोक्त बातों में ‘न्यूनतम रोजगार गारंटी’ के अलावा एक शब्द और अहम है-‘बैंक खाते में न्यूनतम आमदनी’. राजनीतिक दृष्टि से गारंटी और न्यूनतम आमदनी को कांग्रेस का बड़ा मास्टस्ट्रोक मान सकते हैं क्योंकि बात जब बैंक खाते और उसमें न्यूनतम आमदनी की होती है तो लोगों के जहन में ’15 लाख रुपए’ कौंध जाते हैं. लोगों के दिलोदिमाग पर जनधन खाते भी चक्करघिन्नी बनकर नाच उठते हैं क्योंकि गरीबों के लिए शुरू किए गए खाते का आज हश्र क्या है, किसी से छिपा नहीं. राहुल गांधी सोमवार को छत्तीसगढ़ में जब अपनी बात रख रहे थे तो बेशक उनके दिमाग में लोगों के वे आरोप रहे होंगे जिन्हें ‘बीजेपी का जुमला (खाते में 15 लाख रुपए)’ कहा जाता रहा है.
We have taken a decision that in the year 2019, the Congress Government at the Centre will guarantee “Minimum Income” to every poor individual in the country: Congress President @RahulGandhi #CongressForMinimumIncomeGuarantee pic.twitter.com/t7CwZ0FKmF
— Congress (@INCIndia) January 28, 2019
छत्तीसगढ़ से राहुल गांधी ने किसानों की कर्जमाफी का ऐलान किया और बीजेपी नीत रमन सरकार का सूपड़ा साफ हो गया. ठीक वैसे ही कांग्रेस को भरोसा है कि न्यूनतम आय की गारंटी देकर छत्तीसगढ़ में किसानों-मजदूरों का दिल जीता जा सकता है. तभी राहुल गांधी ने पूरे दमखम से कहा कि “कांग्रेस ने कर्जमाफी, जमीन वापसी का वादा पूरा किया. पैसे की कोई कमी नहीं है. हम दो हिंदुस्तान नहीं चाहते. बीजेपी दो हिंदुस्तान बनाना चाहती है. एक हिंदुस्तान उद्योगपतियों का, जहां सब कुछ मिल सकता है और दूसरा गरीब किसानों का हिंदुस्तान, जहां कुछ नहीं मिलेगा, सिर्फ ‘मन की बात’ सुनने को मिलेगी.” इन्हीं बातों को पुष्ट करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष कई महीनों से देश के कोने-कोने में घूमकर लोगों को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मौजूदा मोदी सरकार गरीब विरोधी है जबकि कांग्रेस गरीबों-मजदूरों की हितैषी है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस और राहुल गांधी की झंडाबरदारी में यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी यूबीआई शुरू होती है तो इससे लोगों में अच्छा संकेत जाएगा लेकिन इसे अमली जामा पहनाने का साधन क्या होगा? इस योजना का ढांचा कुछ ऐसा है कि गरीबों के खाते में एक न्यूतम राशि ट्रांसफर की जाएगी. अब सवाल है कि कांग्रेस जब जनधन खाते और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) जैसी योजनाओं को कोसती रही है, फिर वह यूबीआई को धरातल पर कैसे उतार पाएगी? क्या देश में फिर नए बैंक खाते खोलने के दौर शुरू होंगे, क्या डीबीटी से इतर कोई नया सिस्टम बनेगा? अगर यह सब हो भी जाता है तो उस भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगेगा जिसकी चर्चा मनरेगा में होती है. क्या लोग मनरेगा की तरह काम-धाम छोड़ कर खैरात पर निर्भर नहीं होंगे? अगर मुफ्त खाते में पैसे आ जाएं तो बिना मेहनत मजदूरी किए शराब पीने का चलन फिर नहीं बढ़ेगा और महिलाएं जो मजदूरी करती हैं, उनके घर बैठने का सिलसिला शुरू नहीं होगा?