- अभिमत

नकदी : अनौपचारिक लेन-देन बढ़ा

प्रतिदिन
नकदी : अनौपचारिक लेन-देन बढ़ा

नकदी पास रखने का चलन फिर जोर मार रहा है | देश में फिलहाल २०.६५ लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में है,जो नोटबंदी से पहले के १७.९७ लाख करोड़ रुपये से भी अधिक है| एचएसबीसी की शोध रिपोर्ट में इन आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में’अनौपचारिक’ लेन-देन में बढ़ोतरी हो रही है|
देश में बेंको से जुड़े अर्थशास्त्री इसे सरकार की सफलता मान रहे है | उन का मानना है कि सरकार सेवा एवं वस्तु कर प्रणाली (जीएसटी) को लागू करने में नरमी बरत रही है, जिसकी वजह से नकद कारोबार बढ़ा है| उन्होंने यह भी रेखांकित किया है कि इस प्रणाली से अधिक व्यवसायों द्वारा कर भुगतान करने की अपेक्षा पूरी होने में देरी हो रही है| यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के अनुपात में नकदी की बढ़त पहले से बहुत अधिक नहीं है|
नोटबंदी से पहले यह आंकड़ा ११.९ प्रतिशत था, जो मार्च,२०१७  में घटकर ८.८ प्रतिशत हो गया था| पिछले साल मार्च में यह अनुपात १०.९ प्रतिशत हुआ और चालू वित्त वर्ष के अंत में इसके ११.४ प्रतिशत रहने का अनुमान है| विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी जीडीपी और चलन में नगदी का अनुपात कमोबेश इसी स्तर पर है|

इन तथ्यों की रोशनी में बाजार में अधिक नगदी चिंता की बात नहीं है, लेकिन जीएसटी तंत्र के ढीलेपन और नगद भुगतान ज्यादा होने तथा इस बढ़त के बीच के संबंध पर गंभीरता से विचार की जरूरत है| रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन समेत अनेक जानकारों की मान्यता रही है कि चुनाव से पहले नकदी की मात्रा बढ़ने की परिपाटी रही है| ग्रामीण भारत में मांग बढ़ने से भी नकदी अधिक होती रही है| एचएसबीसी की रिपोर्ट चुनाव के कारक को बहुत असरदार नहीं मानती है|
ग्रामीण क्षेत्रों में आमदनी कम होने तथा कृषि संकट के कारण खरीद-बिक्री की प्रक्रिया मंद है| एक महत्वपूर्ण रूझान यह भी है कि बहुत कम नकदी वापस बैंकों में आ रही है| इस कारण मौजूदा वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि के बावजूद जमा रकम में बढ़ोतरी की दर १८  जनवरी तक ४.९ प्रतिशत  है, जो कर्ज लेने की वृद्धि दर ८.२ प्रतिशत से बहुत कम है|
कुछ समय पहले रिजर्व बैंक के एक अध्ययन में बताया गया था कि लोग सामान्य लेन-देन के लिए घरों में नकदी रखना पसंद करते हैं| ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल साधनों से भुगतान पर जोर देकर नकदी के इस्तेमाल को कम करने की कोशिशों को तेज किया जाना चाहिए| इन साधनों को सुरक्षित और सस्ता बनाया जाना चाहिए| तभी इनका समुचित लाभ लिया जा सकता है |
यह भी सर्व ज्ञात तथ्य है कि छोटे और मध्यम स्तर के उद्यम अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग हैं| यदि बैंकों से उन्हें कर्ज लेने और भुगतान करने की बेहतर सुविधाएं मुहैया करायी जायें, तो इससे भी नकदी के चलन को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी| ये उद्यम अनौपचारिक कर्जदाताओं और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से पैसा उठाते हैं|
नकदी की बढत पर रोक  चुनाव सुधारों को लागू करने  तथा भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के बहुत जरूरी है| सरकार चाहे तो लगातार कोशिशों से अर्थव्यवस्था के बही-खाते को दुरुस्त करे इज्स्से  नकदी की बढ़त पर अंकुश लगाया जा सके |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

 

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