- अभिमत

पूंजी मिली और ३ बैंक खुश

प्रतिदिन:
पूंजी मिली और ३ बैंक खुश
भारतीय रिजर्व ने तीन अन्य वाणिज्यिक बैंकों को प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) ढांचे से बाहर कर दिया। अब इन बैंकों को ऋण देने और अन्य बैंकिंग सेवाएं बहाल करने का अवसर मिल गया। इन तीन बैंकों में से इलाहाबाद बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक सरकारी जबकि धनलक्ष्मी बैंक एक छोटा निजी बैंक है।
आरबीआई ने कहा है कि वित्तीय निगरानी बोर्ड (बीएफएस) नेपिछले दिनों पीसीए के अधीन आने वाले बैंकों के प्रदर्शन के आकलन संबंधी समीक्षा बैठक के बाद यह निर्णय लिया है । बीएफएस ने पाया कि सरकार ने २१  फरवरी को पीसीए के ढांचे में आने वाले बैंकों समेत कई बैंकों में नई पूंजी डाली। निश्चित तौर पर दो सरकारी बैंक, जिन्हें पीसीए के ढांचे से बाहर किया गया, वे सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकरण के सबसे बड़े लाभार्थी बनकर उभरे। इलाहाबाद बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक को क्रमश: ६८९६ करोड़ रुपये और ९०८६ करोड़ रुपये की नई पूंजी प्रदान गई। इससे इन बैंकों के पूंजीगत फंड में इजाफा हुआ है और उनके ऋण नुकसान की प्रॉविजनिंग में सुधार हुआ और पीसीए मानकों का अनुपालन सुनिश्चित हुआ।

नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में इन तीन बैंकों के शेयर शुरुआती कारोबार में १० प्रतिशत तक उछले। इस महीने के आरंभ में आरबीआई ने तीन अन्य सरकारी बैंकों बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को पीसीए ढांचे से बाहर कर दिया था और केवल पांच बैंक ही इसमें शेष रह गए थे। यह एक स्वागतयोग्य बात है और उम्मीद की जानी चाहिए कि शेष बैंक भी जल्दी ही अपने मूलभूत काम को अंजाम देने की स्थिति में आ जाएंगे। मूलभूत काम यानी कारोबारियों को ऋण देना और इस तरह देश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना। वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि अगले छह से आठ महीनों में तीन से चार और बैंक आरबीआई की कमजोर बैंकों की सूची से बाहर हो जाएंगे। यह उम्मीद इसलिए की जा रही है क्योंकि उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हो रहा है, पूंजी का स्तर सुधर रहा है और फंसा हुआ कर्ज कम हो रहा है।

हकीकत यह है कि ये कमजोर बैंक प्राथमिक तौर पर पीसीए मानकों से पार पाने में इसलिए कामयाब रहे हैं क्योंकि सरकार ने इनमें बड़े पैमाने पर पूंजी डालने का निर्णय लिया। गत सप्ताह वित्त मंत्रालय ने घोषणा की कि इस वित्त वर्ष में १२ सरकारी बैंकों में ४८ २३९ करोड़ रुपये की नई पूंजी डाली जाएगी ताकि ये नियामकीय पूंजी आवश्यकताओं का ध्यान रख सकें और अपनी वृद्घि योजनाओं को धन मुहैया करा सकें। इस फंडिंग के साथ १.०६ लाख करोड़ रुपये की कुल डाली जाने वाली पूंजी में से १००.९५८ करोड़ रुपये की राशि बैंकों में आ गई। सवाल यह है कि क्या बैंकों को पीसीए से बाहर लाने भर से उनकी बेहतर वृद्घि सुनिश्चित हो जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि नई पूंजी का एक बड़ा हिस्सा फंसे हुए कर्ज के निपटान में जाएगा और वृद्घि के लिए इस्तेमाल होने वाली पूंजी कम ही रह जाएगी। बैंकों को नए सिरे से ऋण देने की शुरुआत करने के पहले बाजार से धनराशि जुटानी होगी या फिर उनको इस उम्मीद में बजट की प्रतीक्षा करनी होगी कि सरकार शायद और अधिक पूंजी डाले। सरकारी बैंकों के संचालन ढांचे में भी आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है। सरकार इस पर ध्यान केंद्रित एक ऐसी व्यवस्था लागू करे जहां उच्च पदों पर नियुक्तियां समय पर हों और बैंकों के बोर्ड पेशेवर और जवाबदेह हों।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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