- विदेश

चीन के लिए मुसलमानों पर जुल्म ढा रहा है पाकिस्तान

पाकिस्तान/रावलपिंडी : मोहम्मद हसन अब्दुल चीन के शिनजियांग प्रांत के उइगर समुदाय से आते हैं. पाकिस्तान के रावलपिंडी के चीनी बाजार में उनका रेस्टोरेंट है. अब्दुल के पिता 50 साल पहले रावलपिंडी आए थे. वह हज के लिए सऊदी अरब जा रहे उइगर मुसलमानों के लिए बनाए गए गेस्टहाउस में काम करते थे. समुदाय के कुछ सदस्यों का कहना है कि इसे गेस्टहाउस को चीन के अनुरोध पर 2006 में बंद कर दिया गया. 19वीं और 20वीं शताब्दी से ही उइगर मुसलमान पाकिस्तान आकर बसने लगे थे. कुछ व्यापार करने के लिए आए तो कुछ चीन में साम्यवादियों की सजा से बचने के लिए.

चीन का उइगर मुसलमानों पर अत्याचार पूरी दुनिया में सुर्खियों में हैं क्योंकि करीब 30 लाख उइगरों को प्रशिक्षण कैंप में रखने के नाम पर इस्लाम धर्म छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है. पाकिस्तान में करीब 2000 उइगर मुसलमान हैं और दशकों से अपनी दबी पहचान के साथ जी रहे हैं. यहां तक कि इनकी मौजूदगी का एहसास भी कम ही लोगों को है. लेकिन चीन की नजर पाकिस्तान के उइगर मुसलमानों पर भी है. समुदाय के मुताबिक, चीन ने अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है.

अब्दुल हमीद कहते हैं, वे (चीनी) हमें साफ कर देना चाहते हैं. हम यहां पर भी अपनी मर्जी के हिसाब से कुछ भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि चीन हमारे पीछे पड़ा हुआ है. बीजिंग चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में 62 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है जो चीन के काशगर को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा. आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए चीन एक मजबूत सहारा है. एहसान तले दबा पाकिस्तान चीन के हाथों की कठपुतली बनकर रह गया है.

पाकिस्तान दुनिया भर के मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आवाज उठाता रहता है लेकिन जब बात उइगर मुसलमानों की आती है तो इस्लामाबाद अपने ताकतवर पड़ोसी चीन को नाराज नहीं करना चाहता है. पाकिस्तान में भी उइगर मुसलमानों की आबादी बसी हुई है और उन्हें पता है कि चीन में मुस्लिमों के साथ क्या हो रहा है. अधिकतर लोगों के परिवार अभी भी चीन के शिनजियांग प्रांत में रह रहे हैं. कुछ लोग तो अपने परिवार के सदस्यों से पिछले दो सालों से बात नहीं कर पाए हैं क्योंकि चीन ने उन्हें कैंप में कैद कर रखा है.

अब्दुल हमीद कहते हैं, हमारे परिवार से करीब 300 लोग कैंपों में हैं, यहां तक कि मेरा भाई भी कैंप के अंदर है. चीनी बाजार के उइगर मुसलमानों की यही कहानी है. सिल्क ट्रेडर अब्दुल लतीफ के भी रिश्तेदार भी शिनजियांग में हैं.

वह कहते हैं, उनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं हैं. हम उन्हें कॉल नहीं कर सकते हैं. अगर उन्हें यहां से फोन भी किया जाता है तो वे उठाते नहीं हैं क्योंकि कॉल के कुछ घंटे बाद ही पुलिस आ जाती है और उनसे पूछताछ होने लगती है कि उनका क्या रिश्ता है और वे कितने दिनों से उन्हें जानते हैं. केवल इसी आधार पर पुलिस उन्हें उठाकर ले जा सकती है.

अगर किसी की मौत हो जाती है तो उनके लिए प्रार्थना भी नहीं की जाती है. गुस्से में अब्दुल रहीम कहते हैं, यहां इतना अन्याय हो रहा है कि खुद अन्याय भी शर्मिंदा हो जाए.

विल्सन सेंटर में एशिया प्रोग्राम के डेप्युटी डायरेक्टर माइकेल कुगेलमन बताते हैं, पाकिस्तान में उइगर समुदाय चीन के लिए चिंता का सबब है भले ही उनकी संख्या मामूली है. चीन जानता है कि उइगर मुसलमानों की स्थिति पर दुनिया भर में सवाल उठ रहे हैं और इससे चीन की छवि को धक्का पहुंचा है. इसलिए चीन नहीं चाहता है कि पाकिस्तान के उइगर मुसलमान उन मुद्दों को उठाए जिसे बीजिंग दुनिया की नजरों से छिपाकर रखना चाहता है.

हाल ही में उइगर मुसलमानों की पत्नियों के चीनी कैंपों में कैद होने की खबरें आई थीं. पाकिस्तान के पूरे मामले पर चुप्पी साध लेने से समुदाय में रोष है हालांकि पाकिस्तान का रवैया बहुत हैरान करने वाला नहीं है. रहीम कहते हैं, पाकिस्तान चीन का सबसे खास दोस्त है, उनकी दोस्ती ‘आसमान से ऊंची और समुद्र से गहरी है.’

उइगर समुदाय के कुछ सदस्यों का कहना है कि चीन के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें पाकिस्तान के भीतर भी प्रताड़ित किया जा रहा है.

अब्दुल रहीम (परिवर्तित नाम) कहते हैं, चीन की सरकार ने हर एक को एक-दूसरे के पीछे लगा रखा है. हम एक-दूसरे से ही डरे हुए हैं. हम खुलकर बात भी नहीं कर सकते हैं.

वह कहते हैं, समस्या ये है कि पाकिस्तान की सरकार पर चीन का दबाव है और सरकार हम पर दबाव बनाती है ताकि हम उइगरों की बात ना करें. एजेंसियां चीन की तरफ से हमारे ऊपर दबाव बनाती है और हमें उठा ले जाती हैं. हममें से कई लोगों को सुरक्षित घरों में ले जाया गया है. मैं उनमें से एक हूं. मैं पिछले साल 12 दिनों तक वहां रहा था.

उन्होंने हमसे सीपीईसी के बारे में पूछताछ की और हमारी राय पूछी. हमारी आखिर क्या राय होगी?

कुगेलमन के मुताबिक, सीपीईसी उन बड़ी वजहों में से एक है जिसकी वजह से पाकिस्तान में बसे उइगर समुदाय पर दबाव बढ़ रहा है. चीन पाकिस्तान की आर्थिक मदद कर रहा है जिसकी वजह से पाकिस्तान पर उसका कई चीजों पर प्रभाव है. चीन की स्थिति सीपीईसी की वजह से और भी मजबूत हो गई है क्योंकि यह परियोजना पाकिस्तान के लिए बहुत ज्यादा अहम है.

हालांकि, चीन लगातार ‘उइगर आतंकियों’ के बारे में चेतावनी जारी करता रहता है. चीन दावा करता है कि उइगर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा से चीन के खिलाफ हमले की साजिश रच रहे हैं. 2015 में पाकिस्तान ने कहा था कि सैन्य अभियान में लगभग सभी विद्रोहियों का सफाया कर दिया गया है.

कुगेलमन के मुताबिक, उइगर विद्रोहियों की संख्या काफी ज्यादा हो सकती है.

उइगरों की तरफ से कथित खतरा बीजिंग को उनके खिलाफ कार्रवाई करने का मजबूत आधार दे देता है.

रावलपिंडी में उमर उइगर ट्रस्ट के संस्थापक मोहम्मद उमर खान कहते हैं, उनके और बाकी उइगर मुसलमानों के लिए संकट गहरा गया है क्योंकि पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में उइगरों की संख्या तेजी से बढ़ी है.
पाकिस्तान के उइगर ऐक्टिविस्ट मोहम्मद उमर खान कहते हैं, यहां हर एक उइगर को खतरा है. जो भी यह कहना शुरू करता है कि मैं उइगर हूं, मैं तुर्किस्तानी हूं, उसके लिए खतरा बढ़ जाता है.

उमर बताते हैं कि समस्या 2006 से शुरू हुई. पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसियों के कुछ लोग आकर उन्हें उठा ले जाते थे और उन्हें एक या दो दिन के लिए हिरासत में रखते थे.

2010 में पाकिस्तानी अधिकारियों ने बच्चों को उइगर भाषा सिखाने के लिए खोले गए एक स्कूल को बंद कर दिया था. उमर कहते हैं, उन्होंने मेरे खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल किया और मेरा नाम ईसीएल (एग्जिट कंट्रोल लिस्ट) में डाल दिया था इसलिए मैं कहीं और घूमने नहीं जा सकता हूं. जब वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो 2014 में उनका नाम आखिरकार इस लिस्ट से हटा दिया गया.

एक साल पहले उमर को उठा लिया गया था और दो हफ्ते के लिए हिरासत में रखा गया. खान को इतनी बुरी तरह पीटा गया कि उनके शरीर पर घाव के निशान अभी भी हैं. उन्हें एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया जिसमें चीन की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन नहीं करने की बात थी.

उमर कहते हैं, वे कहते हैं कि मैं चीन और पाकिस्तान की दोस्ती खत्म कर रहा हूं. पाकिस्तान सरकार असली समस्या नहीं है क्योंकि चीनियों के हाथों में सब कुछ है.

कुगेलमन कहते हैं, हैरान करने वाली बात है कि पाकिस्तान रोहिंग्या, सीरियन और फिलिस्तीनी मुसलमानों की हालत पर चिंता जताता रहता है लेकिन शायद ही कभी इस्लामाबाद उइगरों के लिए कोई बयान जारी करता हो. ईमानदारी से कहूं तो केवल इस्लामाबाद ने ही चुप्पी नहीं साध रखी है बल्कि दूसरे मुस्लिम देशों ने भी निराश ही किया है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *