जबलपुर : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि एससी-एसटी एक्ट में अगर ठोस साक्ष्य न हों तो केवल शिकायतकर्ता का बयान आरोपी के खिलाफ अभियोजन चलाने का आधार नहीं बन सकता। खासतौर पर ऐसे मामलों में जिनमें विश्वसनीय साक्ष्य और गवाह शिकायतकर्ता के बयान को झूठा साबित करते हों। जस्टिस जेपी गुप्ता की एकलपीठ ने कहा कि सभी अदालतों की यह जिम्मेदारी है वे कि हर स्तर पर इस बात का संज्ञान लें कि अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
इसके बाद अजाक थाना प्रभारी ने जांच की और आरोप झूठे पाए। घटना के समय मौजूद लोगों ने ऐसी कोई घटना होने से पूरी तरह इनकार किया। पुलिस अधिकारी ने एसडीओ को रिपोर्ट पेश कर दी। लेकिन, शिकायतकर्ता महिला हाईकोर्ट पहुंची और सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी वाले मामले को आधार बनाते हुए सुशांत के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की। हाईकोर्ट ने नरसिंहपुर एसपी को महिला की शिकायत पर पुन: विचार करने के निर्देश दिए, जिसके बाद सुशांत के खिलाफ मामला दर्ज किया गया और कोर्ट में चालान पेश किया। इसके बाद सुशांत ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई।
महिला ने शिकायत के बाद बनवाया जाति प्रमाण-पत्र
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्श मुनि त्रिवेदी ने कोर्ट को बताया कि घटना के समय उनका मुवक्किल इस बात से अनजान था कि महिला एससी-एसटी वर्ग की है। महिला ने मुस्लिम से शादी की है, इसलिए शादी के बाद उसे एससी-एसटी का नहीं माना जा सकता। इसके अलावा अभियोजन ने चालान पेश करते समय जो जाति प्रमाण-पत्र पेश किया वह महिला ने केस दर्ज करने के बाद बनवाया था। उन्होंने कोर्ट को बताया कि अभियोजन ने चार्जशीट में ऐसा कोई साक्ष्य या प्रमाण भी पेश नहीं किया कि अभियुक्त एससीएसटी जाति का नहीं है, जोकि ऐसे मामलों में एक अहम तथ्य होता है।