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ई-टेंडरिंग घोटाला मामले में ऑस्मो कंपनी के तीन डायरेक्टर गिरफ्तार

भोपाल: ई-टेंडरिंग घोटाले में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो यानी ईओडब्लयू की टीम ने ऑस्मो कंपनी के तीन डायरेक्टर विनय चौधरी, वरुण चौधरी और सुमित गोलवलकर(मार्केटिंग) को विन को गिरफ्तार कर लिया है। गुरुवार को ईओडब्लयू की टीम भोपाल में मानसरोवर कॉम्पलेक्स स्थित कंपनी के ऑफिस में जांच के लिए पहुंचीं थी। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि कंपनी केवल डिजिटल सिग्नेचर ही नहीं बनाती है, बल्कि अखबार भी निकालती है। जिसमें टेंडर्स की जानकारी दी जाती है।

जानकारी के मुताबिक, जिन पर एफआईआर हुई है, उनमें जल निगम, पीडब्ल्यूडी, मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम, जल संसाधन विभाग के अफसरों के साथ ही 8 कंपनियों के निदेशक भी शामिल बताए जा रहे हैं। आईपीसी की धारा 420, 468, 471, 120 बी, आईटी एक्ट की धारा-66 के अलावा कई अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।

कंपनियों को दिए 3000 करोड़ रु. के टेंडर

ई-टेंडर घोटाले की जांच लंबे समय से अटकी हुई थी। इसमें जल निगम के तीन हजार करोड़ रुपए के तीन टेंडर में पसंदीदा कंपनी को काम देने के लिए टेंपरिंग करने का आरोप था। ईओडब्ल्यू ने कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम को एनालिसिस रिपोर्ट के लिए 13 हार्ड डिस्क भेजी थी। इसमें से तीन में टेंपरिंग की पुष्टि हो चुकी है।

इन आठ कंपनियों के संचालकों पर एफआईआर

हैदराबाद की कंस्ट्रक्शन कंपनियों- जीवीपीआर लिमिटेड, मैक्स मेंटेना लिमिटेड, मुंबई की कंस्ट्रक्शन कंपनियां- ह्यूम पाइप लिमिटेड, जेएमसी लिमिटेड, बढ़ौदा की कंस्ट्रक्शन कंपनी- सोरठिया बेलजी प्राइवेट लिमिटेड, माधव इन्फ्रो प्रोजेक्ट लिमिटेड और भोपाल की कंस्ट्रक्शन कंपनी राजकुमार नरवानी लिमिटेड के संचालकों, भोपाल स्थित साफ्टवेयर कंपनी ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के संचालक शामिल हैं। एमपीएसईडीसी, मप्र के संबंधित विभागों के अधिकारी एपवं कर्मचारियों के साथ ही एंट्रेस प्राइवेट लिमिटेड बंगलुरू और टीसीएस के अधकिारी एवं कर्मचारी शामिल हैं।

हजारों करोड़ के हैं टेंडर

प्रदेश में ई-टेंडर की प्रक्रिया वर्ष 2013-14 शुरू हुई थी। अब तक करीब साढ़े तीन लाख ई-टेंडर हो चुके हैं। इनमें से नौ मामलों को जांच में लिया गया है, जिनके टेंडरों में टेम्परिंग हुई है। इनमें काम हासिल करने वाली सात कंपनियों व ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल से जुड़ी कंपनियों के अधिकारियों पर भी प्रकरण दर्ज किया गया है। संबंधित विभागों के तत्कालीन आला अधिकारी और मंत्री भी छानबीन के दायरे में रहेंगे। विशेष रूप से जल निगम के तीन, लोक निर्माण विभाग के दो, पीआईयू का एक, रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का एक और जल संसाधन विभाग के दो टेंडर शामिल हैं। पूरे घोटाले का आकार पूछने पर उन्होंने बताया कि यह बताना आसान नहीं है, क्योंकि एनवीडीए और कुछ अन्य विभागों के एक-एक टेंडर ही 10-20 हजार करोड़ रुपए के हैं। पूरे मामले में आपराधिक मंशा ढूंढी जा रही है।

ये मंत्री अधिकारी थे उस वक्त

जल निगम (पीएचई) मंत्री- कुसुम महदेले, प्रमुख सचिव- प्रमोद अग्रवाल, लोक निर्माण विभाग- मंत्री रामपाल सिंह, प्रमुख सचिव- मो. सुलेमान, जल संसाधन विभाग- मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, प्रमुख सचिव- राधेश्याम जुलानिया एवं आईटी सचिव रहे हरिरंजन राव।

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