झांसी : आज मैं झांसी-ललितपुर संसदीय क्षेत्र में हूं एवं अनुराग शर्मा जी का चुनाव प्रचार करने आई हूं. फिर छत्तीसगढ़ एव ओडिशा चुनाव प्रचार करने के लिए निकल जाउंगी. आज मीडिया के बंधुओं ने फिर से मेरे से यह सवाल पूछा कि भोपाल से उम्मीदवार कौन होगा. मैं फिर से अपने उत्तर को रिपीट कर रही हूं कि भोपाल से उम्मीदवार तय करने का अधिकार मेरे पास नहीं है. उस पर निर्णय संसदीय दल करता है. किंतु, एक बात तो ध्यान में रखनी पड़ेगी कि दिग्विजय सिंह को हराना बिल्कुल भी कठिन काम नहीं है. अब मैं आपको अतीत की याद दिलाती हूं.
बीजेपी के डॉ लक्ष्मीनारायण पांडे से मध्य प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काट्जू विधानसभा का चुनाव हार गए थे. सुमित्रा महाजन से 1989 का लोकसभा का इंदौर का चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री पीसी सेठी हार गए थे. फिर सतना में कुश्वाहा से एवं होशंगाबाद में सरताज सिंह से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह चुनाव हार गए थे. इस संबंध में मेरा योगदान तो 2003 में ही पूरा हो चुका. मैं दिग्विजय सिंह को 3/4 बहुमत से 2003 में ही शासन से बेदख्ल कर चुकी हूं. मेरा तो रोल ही पूरा हो चुका. हराने और जिताने में जनता और कार्यकर्ता का रोल होता है, नेताओं को घमंड नहीं पालना चाहिए. आप भोपाल की ताशीर को समझ लीजिए, भोपाल के लोग दिग्विजय सिंह को हराने के लिए बेताब हैं.