अब से चौसठ साल पहले 1955 में 18-24 अप्रैल के मध्य इंडोनेशिया के बांडुंग में पांच देशों (बर्मा, श्रीलंका, भारत, इंडोनेशिया व पाकिस्तान) ने मिलकर एक सम्मेलन आयोजित किया था, जिसे दुनिया ‘बांडुंग सम्मेलन’ (Bandung conference) के नाम से जानती है। इस सम्मेलन में एशिया व अफ्रीका के 24 और देश भी शामिल हुए थे। यह पहला वृहदस्तरीय एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन (Afro–Asian Conference) था, जिसमें शामिल 29 देश दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते थे। इनमें से ज्यादातर देश ऐसे थे, जिन्हें नई-नई आजादी मिली थी। हालांकि इसमें दक्षिण अफ्रीका, इजरायल, ताइवान, दक्षिण कोरिया व उत्तर कोरिया जैसे देशों को आमंत्रित नहीं किया गया था। इस सम्मेलन का मकसद अफ्रो-एशियाई आर्थिक व सांस्कृतिक सहभागिता को बढ़ावा देना व साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा आरोपित उपनिवेशवाद या नवउपनिवेशवाद का विरोध करना था। संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस के मध्य गहराते शीत युद्ध के उस दौर में इन देशों ने मिलकर तय किया कि वे पश्चिमी या पूर्वी जगत में से किसी के साथ न जाते हुए अपनी अलग राह व नीति पर चलेंगे। बाद के चरणों में इस सम्मेलन ने एशिया व अफ्रीका के कई और देशों को भी आजादी के लिए प्रेरित किया। इसी सम्मेलन ने आगे चलकर वर्ष 1961 में ‘गुट-निरपेक्ष आंदोलन’ की नींव रखी।