भोपाल : प्रदेश में सिलिकोसिस बीमारी की निगरानी के लिये अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव श्रम विभाग की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय समिति गठित की गई है। समिति के आठ सदस्य में अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव उद्योग नीति एवं निवेश प्रोत्साहन, अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव अनुसूचित जाति एवं जनजातीय कार्य, अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण, अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास, प्रमुख सचिव/सचिव खनिज साधन, राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल के प्रतिनिधि एवं श्रम आयुक्त शामिल हैं ।
यह समिति सिलिकोसिस से पीड़ित श्रमिकों की उपचार संबंधी व्यवस्था और उनके कल्याण के लिये क्रियान्वित योजनाओं की निगरानी करेगी । समिति की बैठक प्रत्येक तीन माह में होगी।
क्या है सिलिकोसिस ?
सिलिका कणों और टूटे पत्थरों की धूल की वजह से सिलिकोसिस होती है। धूल सांस के साथ फेफड़ों तक जाती है और धीरे-धीरे यह बीमारी अपने पांव जमाती है। यह खासकर पत्थर के खनन, रेत-बालू के खनन, पत्थर तोड़ने के क्रेशर, कांच-उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग, पत्थर को काटने और रगड़ने जैसे उद्योगों के मजदूरों में पाई जाती है। इसके साथ ही स्लेट-पेंसिल बनाने वाले उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को भी सिलिकोसिस अपनी गिरफ्त में लेती है। जहां इस तरह के काम बड़े पैमाने पर होते हैं वहां काम करने वाले मजदूरों के अलावा आसपास के रहिवासियों के भी सिलिकोसिस से प्रभावित होने का खतरा होता है।
यह एक लाइलाज बीमारी है। इसे रोकने का आज तक कोई कारगर तरीका नहीं बनाया जा सका है। कंपनियों में मजदूरों को दिए जाने वाले मास्क के परीक्षण के बाद उनका कहना है कि यह मास्क भी बारीक कणों को सांस के द्वारा अंदर जाने से रोक पाने में सक्षम नहीं है। दरअसल यह सिलिका कण सांस के द्वारा पेफड़ों के अंदर तक तो पहुंच जाते हैं लेकिन बाहर नहीं निकल पाते।
इसका नतीजा यह होता है कि वह फेफड़ों की दीवारों पर धीरे-धीरे जम कर एक मोटी परत बना लेते हैं। इससे फेफड़े ठीक से फैलना और सिकुड़ना बंद कर देते हैं। इससे सांस लेने में काफी तकलीफ होती है। धीरे-धीरे सांस लेने की पूरी प्रक्रिया को यह प्रभावित करता है और आखिरकार आदमी की मौत हो जाती है। सिलिकोसिस एक लाइलाज बीमारी है। इसे केवल जागरूकता से रोका जा सकता है।