भोपाल: मध्यप्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा सिंह को मैदान में उतारकर हिंदुत्व के मुद्दे को फिर से हवा दी है। साध्वी जहां प्रचार में नौ साल जेल में मिलीं यातनाएं लोगों को बता रही हैं, वहीं उनके राजनीति में अचानक आने पर भी सवाल उठ रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह से भास्कर की खास बातचीत।
सवाल : भोपाल सीट से चुनाव लड़ने का सुझाव किसने दिया?
जवाब : किसी ने नहीं। पहले कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी तय हुआ। तब तक मीडिया में कयास लगने शुरू हो गए कि क्या भोपाल से साध्वी प्रज्ञा चुनाव लड़ेंगी? दो दिन बाद मीडिया ने मुझसे पूछा तो मैंने कहा- यदि वो (दिग्विजय) भोपाल से चुनाव लड़ेंगे तो मैं भी लड़ूंगी। फिर मोदीजी और अमितजी से कहा- मुझे भाेपाल से चुनाव लड़ना है। बस फैसला हो गया।
सवाल : आप साध्वी हैं। लोग साधु-संन्यासियों को सम्मान देते हैं, पैर भी छूते हैं। आप एक सुविधाजनक मुकाम छोड़कर राजनीति में क्यों आईं?
जवाब : सुविधा-सम्मान का कोई मतलब नहीं। देशभक्त हमेशा देश के लिए कार्य करने को तैयार रहता है। संन्यासी की भूमिका सत्तातंत्र को दण्ड नीति देने की रही है। अभी कलिकाल है। देश-समाज को दिशा देने के लिए संन्यासी यदि सत्तातंत्र में उतरते हैं तो उससे अच्छा ही होगा।
सवाल : आप साध्वी हैं पर कई बार शब्दाें की मर्यादा लांघ जाती हैं? क्या यह पुलिस कस्टडी में हुई प्रताड़ना का परिणाम है?
जवाब : मैं गलत बात नहीं कहती। जब भगवा आतंकवाद के आरोप में मैं 24 दिन तक सिर्फ पानी पर रही और उस दौरान मुझ पर तीन-तीन पॉली टेस्ट, नार्को टेस्ट कराए गए और अमानवीय यातनाएं दी गईं। लोग जब मुझसे उस समय के बारे में पूछते हैं, तब मैं यकायक उसी समय में पहुंच जाती हूं। मुझे बेल्ट से पीटा जाता, जेल में मुझे जान से मार डालने के प्रयास किए गए। मेरे शरीर की कई हडि्डयां परमानेंटली डैमेज कर दी गईं। वो मेरे भगवा वेश को गाली देते और अपमानित करते। यह सारी प्रताड़ना मुझसे भगवा आतंकवाद को स्वीकार कर लेने के लिए थी। वे पूछते थे कि इसमें आरएसएस के कौन-कौन लोग शामिल हैं? बहुत बाद में मुझे इसके पीछे का षड्यंत्र समझ में आया। इन सबके चलते मैं 9 साल तक रात को ठीक से सो नहीं पाई हूं। मेरा मंतव्य किसी पर व्यर्थ आरोप लगाने का नहीं।
सवाल : मानवाधिकार, महिला आयोग से मदद नहीं मिली?
जवाब : मानवाधिकार आयोग या महिला आयोग ने मेरे मामले में कोई रुचि नहीं दिखाई, क्योंकि मैं हिंदू थी। मेरा अनुभव है कि हिंदुओं के अधिकार की बात करने वालों के लिए मानवाधिकार आयोग या महिला आयोग की कोई सहानुभूति नहीं होती। 2008 की एक घटना याद आती है। किसी मीडिया ने कोर्ट में सुनवाई पर जाते वक्त एक महिला पुलिसकर्मी से मुस्कुराकर बात करते हुए मेरा फोटो प्रसारित किया था। तब महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास ने बयान दिया था कि मैंने प्रज्ञा को टीवी पर देखा है वो ठीक है और उसे किसी तरह की परेशानी नहीं है। यह अमानवीयता की पराकाष्ठा थी, लेकिन यह सब मान्य रहा है।
सवाल : आप श्राप देने जैसी बातें करती हैं। क्या इसे पढ़े-लिखे वोटर पसंद करेंगे? क्या सचमुच ऐसा कुछ होता है?
जवाब : 15 से 20 लोग एक साथ मेरे साथ मारपीट करते थे। शारीरिक यातनाएं देते थे। उस दर्द में मेरे अंतर्मन से भी शब्द निकले थे। वो मेरी पीड़ा के शब्द थे। मैं तो कानून का इतना सम्मान करती थी कि जब मुझे एटीएस का फोन आया तो मैं एक घंटे के भीतर जबलपुर से सीधे एटीएस के अफसर से मिलने जा पहुंची।
सवाल : विपक्षियोें का कहना है कि आप भोपाल से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं, यहां प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी?
जवाब : यह उनकी गलतफहमी है। मैं 1992 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की भोपाल में महामंत्री थी। तब से मैं भोपाल के विद्यार्थियों के परिवार से जुड़ी थी। गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले से परिचित हुई। उस समय मैंने लड़कियों की सुरक्षा के लिए समूूह बनाए थे और विद्यार्थी जीवन में सामाजिक कार्य किए।
सवाल : आप कई बार आरोप लगाती हैं कि आपको दिग्विजय सिंह के कहने पर प्रताड़ित किया गया, जबकि आपके खिलाफ केसेस तो भाजपा सरकार में बने? फिर दिग्विजय पर आरोप क्यों?
जवाब :दिग्विजय सिंह दबंगई से हद की सीमा तक झूठ बोलते हैं। 2008 में जब मुझे गिरफ्तार किया गया, तब मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी, लेकिन मुझ पर केस महाराष्ट्र एटीएस ने लगाया, जो कांग्रेस सरकार के अधीन थी।
सवाल : तब और आज के भोपाल में क्या अंतर पाती हैं?
जवाब : उस समय महिलाओं पर अत्याचार जैसी घटनाएं कम होती थीं। ऐसी घटनाओं पर शासन तंत्र संज्ञान लेकर कदम भी उठाता था। दो दिन पहले मुझे पता चला कि एक बारह साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी गई। यह खबर सुनकर मैं दु:खी हो गई। मैं बच्ची के घर पहुंची तो देखा उसकी मां गहरे सदमे में थी। उसके एक परिजन को लेकर हम अस्पताल गए। उनका ब्लडप्रेशर 40/30 था। कुछ संयत होने पर वह इशारों में बोलीं। यह सब इतना हृदय विदारक था कि कुछ कह नहीं सकती।
सवाल : कांग्रेस के आरोपों पर पब्लिक क्या रिस्पॉन्स दे रही?
जवाब : पब्लिक सब जानती है। समझती है। जनता अब बोलने लगी है, वो हमारा साथ देगी। मैं तो बैन में भी आनंद में थी। भजन-पूजन कर रही थी, इन लोगों ने उसकी भी शिकायत कर दी। उसका भी राजनीतिकरण कर दिया। ये लोग भ्रमित हो चुके हैं, उन्हें बुद्धि पर कंट्रोल नहीं है।
सवाल : प्रचार के लिए आपके पास कम समय है?
जवाब : वो लोग प्रयास कर रहे हैं कि मैं टूट जाऊं, लेकिन राष्ट्र भक्तों की शक्ति ये नहीं जानते। इसका मैं प्रत्यक्ष उदाहरण हूं। भले ही इन्होंने हमें पदयात्रा करने लायक नहीं छोड़ा, लेकिन वे खुद पदयात्रा कर रहे हैं। इनकी पैदल यात्रा की जमीन भी प्रभु खींच लेंगे।
सवाल : लोकसभा का चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जाना चाहिए या स्थानीय मुद्दों पर?
जवाब : स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सोच छोटी इकाई से बड़ी इकाई की ओर होना चाहिए। कई बार देखने में आता है कि लोग छोटी इकाई से बाहर सोच ही नहीं पाते।
सवाल : चुनाव परिणाम आने से पहले आप भोपाल के लोगों से सबसे पहला वादा विकास के किस कार्य का करेंगी?
जवाब : भोपाल के विकास को लेकर भोपाल के लोगों से सीधे उनके विचार मांगे हैं। उनकी आवश्यकताएं क्या हैं और वे भोपाल को कैसा देखना चाहते है। इसके आधार पर भविष्य का भाेपाल कैसा हो यह डाॅक्यूमेंट जल्द घोषित करेंगे।
सवाल : सोशल मीडिया पर आपके स्वास्थ्य के बारे में मुंबई के डाॅक्टर समेत कई लोग कमेंट्स कर रहे हैं?
जवाब : लोग किसी की तकलीफ पर इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं, यह सोचकर भी आश्चर्य होता है। ब्रेस्ट कैंसर ऐसी बीमारी है जो मरीज को कई स्तर पर तोड़ देती है। ऐसे में बीमारी पर बातें बनाते देखना-सुनना अजीब लगता है।
सवाल : चर्चा है कि संघ आपके साथ है पर भाजपा के कुछ नेता और कार्यकर्ता रूठे हुए हैं, उन्हें कैसे मनाएंगी?
जवाब : यह गलत है। पूरी भाजपा मेरे साथ खड़ी है। एक छोटा सा उदाहरण देती हूं। बोन इंजुरिज के कारण मंच पर चढ़ने में मुझे कई बार बहुत परेशानी होती है। पार्टी के ही कार्यकर्ता अक्सर मुझे कुर्सी पर बैठाकर उसे उठाकर मंच पर चढ़ाते हैं।
सवाल : आप हारीं या जीतीं तो राजनीतिक लड़ाई जारी रखेंगी?
जवाब : मेरे लिए चुनाव धर्मयुद्ध है। मैं राष्ट्र के लिए पहले भी कार्य करती रही हूं और आगे भी करती रहूंगी। मुझे आज भी राजनीतिक सपने नहीं आते।