प्रतिदिन:
भोपाल लोकसभा – इसे कहते हैं कांटे की टक्कर
भोपाल लोकसभा सीट के लिए १२ मई को मतदान होगा | देश का सर्वाधिक चर्चित इस मतदान के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही हर प्रकार का पैंतरा आजमा रही हैं | इस बार ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अनुमान बड़ा कठिन है | इतिहास की रस्सी जहाँ इसे भाजपा के पक्ष में खींचती दिख रही है तो वर्तमान अपने को सेकुलर कहाने वल्ली कांग्रेस से वह सब करा रहा है जो सेकुलर की परिभाषा से दूर है | वैसे यह चुनाव प्रचार अब राजनीति से हटकर वैचारिक कट्टरता के पायदान पर आज पहुंच कर आज शाम बंद हो जायेगा | चर्चा बंद नहीं होगी और २३ मई को सारे देश की निगाह भोपाल की ओर होगी | तब पता चलेगा भोपाल के लोगों का मानस कहाँ था ? और अब भोपाल की दिशा और दशा क्या होगी ?
गैस त्रासदी से पहले यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी। लेकिन, गैस त्रासदी के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस इस सीट पर लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाई ।गैस त्रासदी के एक महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के कृष्ण नारायण प्रधान ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद से अब तक इस भोपाल पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। लगातार तीन दशक से भाजपा के कब्जे में है। इस दौरान कुल हुए ८ लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ५ बार कायस्थ वर्ग से प्रत्याशी मैदान में उतारे, जिसमे चार मर्तबा प्रदेश के पू्र्व मुख्य सचिव रहे स्वर्गीय सुशीलचंद वर्मा यहां से सांसद रहे और वर्तमान में आलोक संजर सांसद हैं। बाकी तीन चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्रियों में उमा भारती और कैलाश जोशी ने राजधानी का संसद में प्रतिनिधित्व किया। इसी के चलते भाजपा इस बार राजधानी से इस बार प्रज्ञा भारती को मैदान में उतारा गया है | भाजपा ने लीक तोड़ कर चलने की कोशिश की है | इसके विपरीत कांग्रेस ने कहा कुछ किया कुछ और हुआ कुछ की तर्ज पर दिग्विजय सिंह को मैदान में उतार कर एक नया समीकरण बिठाने की कोशिश की है | आम मतदाता की राय में यह चुनाव भोपाल में पिछले १५ साल बनाम उससे पहले के १० सालों की बीच है | भोपाल गैस त्रासदी के बाद के हाल और साल को भी कांग्रेस ने भूले बिसरे गीत की तरह याद किया है |
वैसे जीत हार इस सीट पर हमेशा दिलचस्प रही है| इस लोकसभा सीट पर पहली बार १९५७ में चुनाव हुआ तब कांग्रेस की मैमुना सुल्तान ने जीत हासिल की थीं। इसके बाद अगले चुनाव में भी वे फिर से इस क्षेत्र की सांसद बनी। इस सीट से पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा भी सांसद रह चुके हैं। वे १९७१ और १९८० के चुनाव में इस सीट से जीते । १९७७ के चुनाव में डॉ. शंकर दयाल शर्मा चुनाव हार गए। उन्हें आरिफ बेग ने शिकस्त दी थी |भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार इस सीट पर १९८९ में पहली बार इस लोकसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा ने यहां से जीत हासिल की। इसके बाद वे यहां से लगातार 4 चुनाव में विजयी रहे। १९९९ में उमा भारती ने यहां से जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के सुरेश पचौरी को मात दी। इसके बाद प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी यहां से दो बार २००४ और २००९ में जीते । उन्हीं के कहने पर २०१४ में मौजूदा सांसद आलोक संजर पहली बार टिकट मिला और वे जीत कर संसद पहुंचे।
भोपाल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की ८ सीटें आती हैं. बेरसिया, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, हुजूर, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य, सीहोर , नरेला और गोविंदपुरा यहां की विधानसभा सीटें हैं। ८ विधानसभा सीटों में से ५ पर बीजेपी और ३ पर कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस के गुटीय विभक्त करते समीकरण और भाजपा के प्रेरक पुंज संघ के बीच का यह दिलचस्प मुकाबला नई इबारत लिखेगा |