प्रतिदिन
चुनाव के नतीजे हैं या रणभेरी ?
आज लोकसभा चुनाव के नतीजे आने हैं | पूरे देश में गृह मंत्रालय ने अलर्ट जारी किया है |गृह मंत्रालय को हिंसा का डर है| सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को किसी भी आपातस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा गया है| ये अलर्ट बेवजह नहीं है | अपने को जनप्रतिनिधि कहने वालों और इस जमात के सरपरस्तों ने देश में यह माहौल खड़ा कर दिया है कि सरकार के पास इसके अलावा कोई विकल्प ही नहीं था | इस अलर्ट में कहा गया है कि गृह मंत्रालय को मतगणना के सिलसिले में देश के अलग -अलग हिस्सों में हिंसा भड़कने की आशंका है | मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस अलर्ट साथ ही यह भी कहा है कि वे स्ट्रांग रुम और मतगणना स्थलों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठायें| वास्तव में देश के कुछ जनप्रतिनिधियों चुनाव पूर्व और चुनाव पश्चात के व्यवहार ऐसे हैं कि “अलर्ट” से बड़ी कोई कार्रवाई होना चाहिए |
मेरे सामने बिहार के बक्सर, मध्यप्रदेश के भोपाल और नई दिल्ली की खबरें है | बिहार में एक निर्दलीय प्रत्याशी बंदूक लहरा कर चुनाव परिणाम के बाद खून की नदी बहाने की बात करता है तो भोपाल में एक जनप्रतिनिधि मुख्यमंत्री के सामने ही प्रदेश के जेल महानिरीक्षक को देख लेने की बात कहने का साहस दिखाता है | दिल्ली की खबर देश के सर्व सम्मानित व्यक्ति देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का बयान है | प्रणव दा, देश में मतदान के पश्चात ई वी एम् को लेकर निर्वाचन आयोग पर उठी उँगलियों पर खुल कर बोले हैं | प्रणब मुखर्जी का यह बयान ऐसे वक़्त में आया है जब भाजपा ही नहीं पूरा एनडीए चुनाव आयोग पर सवाल उठाने के लिए विपक्ष की खिल्ली उड़ाने में जुटा है और इसे विपक्ष की चुनाव में हार के संकेत के तौर पर देख रहा है.| एन डी ए का यह बर्ताव भी ठीक नहीं है |
प्रणव दा ने कहा है कि “संस्थान की सत्यनिष्ठा तय करने की ज़िम्मेदारी” चुनाव आयोग पर है| “ईवीएम चुनाव आयोग के अधिकार में हैं और उनकी सुरक्षा आयोग की जिम्मेदारी है|” यह बात लोकतंत्र में दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ़ है | अब सवाल उन सारे नेताओं से है जो चुनाव आयोग की निष्पक्षता और ई वी एम को लेकर यहाँ-वहां मतलब, ट्विटर से सुप्रीम कोर्ट तक फेरे मारकर हलकान हो रहे हैं |उ न्हें प्रणव दा की अगली बात समझना चाहिए | उन्होंने कहा है कि निर्वाचन आयोग जैसे “अपने संस्थानों में आस्था रखने वाले व्यक्ति के तौर पर मेरी ये राय है कि ये ‘कामगार’ है जो तय करता है कि संस्थान के ‘औज़ार’ कैसे काम करें|” प्रजातंत्र में कहने और करने की सीमा है तरीके है | पूर्व राष्ट्रपति ने साफ-साफ कहा, “हमारे लोकतंत्र में लोकतंत्र की बुनियाद को चुनौती देने वाली अटकलों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए| जनमत के पाक साफ होने में रत्तीभर संशय की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए|” ये एक ऐसा रुख है जिस पर कोई भी लोकतंत्रवादी आपत्ति नहीं करेगा| |
लेकिन, आपत्ति नहीं घोर आपत्ति हो रही है और वो भी तब, जब मतदान पूरा हो गया है | नतीजे आये नहीं है एक्जिट पोल से ही जीत-हार फैसला | अब चुनाव प्रक्रिया, चुनाव की घोषणा के साथ देश के हर नागरिक को मालूम हो गया था कि इस चुनाव में ई वी एम् और वी वि पेट का इस्तेमाल होगा | तब आपत्ति नहीं की, तो अब क्यों ? यह मखौल बंद कीजिये, इसके परिणाम की आशंका के कारण देश आज अलर्ट पर है | अगला कदम इंडोनेशिया की भांति हो सकता है, जहाँ हारा हुआ उम्मीदवार अपने को जीता हुआ घोषित कर रहा है |लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले विपक्ष की मिलान पहले करने की मांग को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया है| सुप्रीम कोर्ट तो यह लड़ाई जाएगी, इसके आसार साफ दिख रहे है | देश के बारे में सोचिये, इस सब से देश का माहौल बिगड़ेगा कोई भी हारे कोई भी जीते देश का माहौल नही बिगड़ना चाहिए यह सब की जिम्मेदारी है |