नई दिल्ली:
दोबारा सत्ता में वापसी के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. प्रधानमंत्री की इस कैबिनेट में नए और पुराने मंत्रियों का संगम है. मंत्रिमंडल में कुल 24 कैबिनेट मंत्री, 9 स्वतंत्र प्रभार मंत्री और 24 राज्य मंत्री शामिल हैं. सबसे खास बात है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मंत्री पद की शपथ ली है. ध्यान देने वाली बात यह है कि आज शपथ लेते वक्त अमित शाह का तीसरा नंबर था. अर्थात सरकार में राजनाथ सिंह के बाद अमित शाह बेहद महत्वपूर्ण होंगे.
संगठन के बाद सरकार में आज अमित शाह शामिल हो गये. 2014 के बाद जब अमित शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तब से वह बीजेपी के लिए विजय अभियान चला रहे हैं. सरकार में प्रधानमंत्री मोदी और संगठन में अमित शाह. शाह ने खुद को संगठन के चाणक्य के रूप में स्थापित कर लिया. मोदी और शाह की शानदार जोड़ी अब सरकार में सफलता के झंड़े गाड़ने के लिए तैयार है. मौजूदा भारतीय सियासत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली जोड़ी मोदी और शाह की है. इस जोड़ी ने बीजेपी को उस मुकाम तक पहुंचा दिया जिसका सपना हर राजनीतिक दल देखता है. वक्त का पहिया पीछे लेकर चलें तो शाह और मोदी की जोड़ी उसी तरह स्थापित हो चुकी है जैसे बीजेपी में कभी अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की थी. उस वक्त आडवाणी संगठन में मजबूत माने जाते थे. आडवाणी ने ही अटल बिहारी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाया.
आज बीजेपी की प्रचंड जीत की धरातल अटल और आडवाणी की जोड़ी ने बनाई थी. जिसे मोदी और शाह ने सफलता की उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया जिसका सपना हर सियासी दल देखता है. अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री बने सियासी विश्लेषक मानते हैं कि आडवाणी की सांगठनिक क्षमता के बगैर यह संभव नहीं हो पाता. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोबारा शपथ ली है, यही बात अब अमित शाह के लिए कही जा रही है. सियासत में सफलता की पर्याय बन चुकी जोड़ी अमित शाह और मोदी की मुलाकात 80 के दशक में हुई थी. तब मोदी बीजेपी में औपचारिक रूप से शामिल नहीं हुए थे. उस वक्त मोदी आरएसएस में प्रचारक थे और अमित शाह को पंडित दीनदलाय उपाध्याय शोध संस्थान का कोषाध्यक्ष बनाया गया था. मुलाकात का दौर वहीं शुरू हुआ और संबंधों में भरोसा दिन प्रति दिन बढ़ता गया. वक्त का पहिया आगे बढ़ता जा रहा था और संबंध उसी तेजी से मजबूत होते गये. गुजरात में मोदी और शाह की जोड़ी ने सफलता के ऐसे परचम लहराए कि उसकी आवाज दिल्ली के सियासी गलियारों तक गुंजने लगे. 2014 में मोदी दिल्ली आते हैं और उनके भरोसेमंद शाह को एक बार फिर दिल्ली में संगठन की कमान मिलती है. फिर बीजेपी का विजयी अभियान चल पड़ता है. और आज की तारीख मोदी और शाह की जोड़ी के लिए भी ऐतिहासिक हो गई.