० प्रतिदिन
आप नहीं बोलेंगे तो, क्या लोग चुप रहेंगे ?
चुनाव तो हारने- जीतने के लिए ही होते हैं | चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान कांग्रेस को जो करना था वो अब कर रही है, चुनाव के दौरान जो नुकसान होना था हुआ, अब ये चुप्पी भी कुछ ज्यादा नुकसान कर सकती है | कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने एक महीने के लिए चैनलों में प्रवक्ता न भेजने का एलान किया है | यह एलान इस दौर में कांग्रेस के लिए बहुत शुभ नहीं है | ऐसा फैसला उसे उस दौरान लेना था जब उसके प्रवक्ता देश भर में कुछ भी अनाप-शनाप कह रहे थे | वे करते भी क्या ? उन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं था, वे कभी राहुल गाँधी की नकल करते, कभी सैम पित्रोदा हो जाते तो कभी मणि शंकर अय्यर | देश में सबसे चतुर समाजवादी पार्टी निकली, चुनाव हारने के बाद समाजवादी पार्टी ने अपने प्रवक्ताओं की टीम भंग कर दी ताकि वे किसी डिबेट में अधिकृत तौर पर कोई बात कही ही न जा सके | इन दोनों फैसलों के अपने निहितार्थ हैं |
इसे अभिव्यक्ति पर अंकुश की तरह देखने वालों को भाजपा की उस सभा को नहीं भूलना चाहिए जिसमे प्रधानमंत्री ने अपने सांसदों से कहा कि छपास और दिखास से दूर रहें| तब किसी ने नहीं कहा कि एक जनप्रतिनिधि को चुप रहने की सलाह देकर प्रधानमंत्री सांसद की स्वायत्ता समाप्त कर रहे हैं| आज यह सवाल उठानेवाले कांग्रेसजन और उनके खैरख्वाह कांग्रेस के हितैषी नहीं है | भाजपा का मतलब साफ़ था कि पार्टी एक जगह से और एक तरह से बोलेगी पिछले पांच साल में भाजपा सांसदों को सबने चुप ही देखा | सच तो यह है कि हायकमान में अनुभव की कमी प्रवक्ताओं को अनुशासनहीन बनाती है | वो कोई भी पार्टी क्यों न हो |
वैसे अभी कुछ ज्यादा बिगड़ा नहीं है, कांग्रेस सहित सभी दलों को चुनावों के समय मीडिया में मिली जगह का अध्ययन करना चाहिए| साथ ही इस बात पर भी विचार जरुर करना चाहिए कि उसमे कितनी ऐसी बातें कही गई जो अर्धसत्य थीं | कितनी ऐसी थी जिसे बकवास कहा जा सकता है | ये मामले चुनाव के दौरान भी अदालत तक पहुंचे, माफ़ी-तलाफी भी हुई | इस सबकी जरूरत नहीं थी | अगर सब संयम बरतते | तब नीचा दिखाने की होड़ लगी थी | जिसके मुंह में जो आया वो बोल गया | वो विचार शून्य राजनीति का दौर था | खत्म हो गया | अब संयम के साथ अपने तर्क रखिये |
यह पलायनवादी प्रवृत्ति ज्यादा खतरनाक है | इसमें आपके पक्ष को सुने बिना दर्शक और पाठक को एकतरफा सम्वाद मिलेगा | मीडिया के फैसले उन्ही तर्कों पर होंगे जो उसके सामने होंगे | तब मीडिया को कोसा जायेगा | राजनीतिक दल आज भी तो यही कर रहे हैं | अपनी बात से पलटते, वे हैं और दोष मीडिया के सर मढ़ते हैं | हर प्रवक्ता को अपने दल के इतिहास भूगोल के साथ गणित और खास तौर पर दल की ज्यामिति समझना चाहिए और यह सब तब समझ आता है, जब आपका प्रशिक्षण सही हो | सतारूढ़ दल को तो ज्यादा समझना चाहिए, सरकारी प्रचार तन्त्र के भरोसे सरकार चल सकती है उसकी डगर ज्यादातर सीधी और सरल होती है | राजनीति के रास्ते में ढेरों पेंच होते है | चुप्पी मामले को कई बार ज्यादा जटिल कर देती है | संवाद जारी रखे, चुप न रहे| नही तो कोई कुछ भी कह देगा और अनर्थ निकलेंगे | बड़ी बात यह भी है आप नहीं बोलेंगे तो लोग क्या लोग चुप रहेंगे |
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