- देश

प्रोटेम स्पीकर के रूप में वीरेंद्र कुमार ने ली शपथ

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को सात बार सांसद रहे वीरेन्द्र कुमार को लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर के रूप में शपथ दिलाई. कुमार सोमवार और मंगलवार को नवनिर्वाचित सासंदों को शपथ दिलाएंगे. बुधवार को नए लोकसभा स्पीकर की नियुक्ति के बाद उनकी भूमिका संपन्न हो जाएगी. कुमार ने भाजपा के टिकट पर मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता है. वह पहली मोदी सरकार में राज्य मंत्री थे. प्रोटेम स्पीकर के तौर पर कुमार लोकसभा के इस सत्र की पहली बैठक की अध्यक्षता करेंगे और नवनिर्वाचित सासंदों को शपथ दिलाएंगे. लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव भी उनकी निगरानी में किया जाएगा. वीरेंद्र कुमार सात बार सांसद बन चुके हैं। वह चार बार टीकमगढ़ लोकसभा और तीन बार सागर सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वर्तमान में वह टीकमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए हैं। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी किरण अहिरवार को लगभग 3.48 लाख वोटों से हराया था।

वीरेंद्र कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले में 27 फरवरी 1954 को हुआ था। पहली बार 1996 में सागर संसदीय सीट से वह सांसद चुने गए थे। उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए और बाल श्रम संबंधी विषय पर पीएचडी की है। वह कई सालों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सक्रिय कार्यकर्ता और पदाधिकारी रहे हैं। इसके अलावा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद सहित भाजपा में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था।

 

वीरेंद्र कुमार बचपन में परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अपने पिता के साथ साइकिल की दुकान पर काम करते थे। इसके साथ ही वह पढ़ाई भी करते रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे के दौरान जब उन्हें कोई पंक्चर सुधारता हुआ मिलता है तो वह उसके पास पहुंच जाते हैं। कई बार उनकी मदद कर देते हैं तो कभी पंक्चर सुधारने के टिप्स भी दे देते हैं।

क्या होता है प्रोटेम स्पीकर?

प्रोटेम स्पीकर उन्हें कहा जाता है, जो चुनाव के बाद पहले सत्र में स्थायी अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष का चुनाव होने तक संसद या विधानसभा का संचालन करते हैं। सरल शब्दों में कहें, तो कार्यवाहक और अस्थायी अध्यक्ष ही प्रोटेम स्पीकर होते हैं। लोकसभा अथवा विधानसभाओं में इनका चुनाव बेहद कम समय के लिए होता है।

सामान्यतः सदन के वरिष्ठतम सदस्य को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है। लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव के ठीक बाद अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष के चुनाव से पहले अस्थायी तौर पर वे सदन के संचालन से संबंधित दायित्वों का निर्वहन करते हैं। प्रोटेम स्पीकर तब तक अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक सदस्य स्थायी अध्यक्ष का चुनाव न कर लें।

हालांकि लोकसभा अथवा विधानसभाओं में प्रोटेम स्पीकर की जरूरत तब भी पड़ती है, जब सदन में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, दोनों का पद खाली हो जाता है। यह स्थिति तब पैदा हो सकती है, जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, दोनों की मृत्यु हो जाए अथवा वे अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दें।

संविधान में, हालांकि प्रोटेम स्पीकर की शक्तियां स्पष्ट तौर पर नहीं बताई गई हैं, लेकिन यह तय है कि उनके पास स्थायी अध्यक्ष की तरह शक्तियां नहीं होती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *