प्रतिदिन
कोशिश तो कीजिये, असमानता मिटेगी !
भारत अब भी असमानता के खिलाफ जंग लड़ रहा है। असमानता के ढेर अवशेष हमारी मानसिकता में भरे पड़े है।प्रमुख बात यह है कि आर्थिक असमानता ही अन्य असमानताओं की प्रमुख वजह साफ दिखती है।आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति सामाजिक,राजनीतिक,शैक्षिक रूप से कमजोर होकर पिछड़ेपन का शिकार बनता है।आर्थिक असमानता से ही बड़े पैमाने पर कुंठा को जन्म लेती है।यही कुंठा आजीविका के लिए संघर्षरत किसी व्यक्ति के लिए नैतिकता और ईमानदारी का मूल्य खो देने का पर्याप्त कारक कभी-कभी हो जाती है। जो टकराव का कारण बनती है।वास्तव में चंद हाथों में सिमटी समृद्धि की वजह से देश का एक बड़ा वंचित तबका शून्य अपसंस्कृति का शिकार हो रहा है।
अपसंस्कृति से आशय असमानता से पीड़ित व्यक्ति का अपराध, अनैतिकता,अवसाद आदि का शिकार हो जाना है। भारत में उच्च और निम्न स्तर के लोगों के दो भाग बन गये हैं | यह एक तरह से देश का आंतरिक आर्थिक विभाजन है। अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार २०१८ में भारतीय अरबपतियों की सम्पत्ति प्रतिदिन २२०० करोड़ रुपए बढ़ी।देश की ७७.४ प्रतिशत सम्पत्ति पर देश के १० प्रतिशतअमीर लोग काबिज है और साल २०१८ में १८ नए अरबपति बढ़ गये | भारत में अब अरबपतियों की संख्या ११९ के आसपास हो गई हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में रहने वाले १३.६ करोड़ लोग २००४ से कर्जदार बने हुए है।यह अंतर दूर हो सकता है |इस अंतर को मिटाने के लिए अमीर व्यक्तियों द्वारा कर के उचित हिस्से का भुगतान किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए और असमानता को कम करने के लिए सरकारों को शिक्षा,सेवा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में निवेश करके पुनर्वितरण के लिए कराधान और खर्च का प्रयोग करना चाहिए।
वैसे समाज में उच्च वर्ग या निम्न वर्ग का निर्माण किसी सरकार ने या किसी समाज की नीति या कानून ने नहीं किया है। ऊंच नीच का यह पैमाना किसी ने नियम बनाकर भी तय नहीं किया है। लोगों की मानसिकता ही यह तय करती है कि अमुक उच्च है और अमुक नीचा है। जाति का पैमाना मानवीय सोच का नतीजा है।हम अपने निर्णय से भेद पैदा कर देते है। जैसे कोई इंजीनियर और मजदूर व्यक्ति आप पास बैठे है तो उनमें कोई एक उसे देखकर यह धारणा बना लेता है कि यह तो मेरे से नीचा है या ऊंचा है।दोनों की बीच एक सोच की असमानता आ जाती है और दोनों का व्यवहार अलग अलग हो जाता है।जबकि दोनों इंसान एक ही है।यह भेद लोगों के अनैतिक आचरण या मानसिकता के कारण है। आर्थिक हिस्सेदारी और महिलाओं के लिए अवसरों के मामले में अब भी साठ प्रतिशत लैंगिक गैर बराबरी है।इस मामले में विश्व आर्थिक फोरम की लैंगिक समानता अध्ययन रिपोर्ट दर्शाती हैं कि १४२ देशों की सूची में भारत ११७ वे स्थान पर है।इस दिशा में भी बहुत कुछ होना है।
असमानता को मिटाने के लिए लोगों की सोच में बदलाव और जागरूकता जरूरी है | जबकि धन खर्च करके ऐसी संस्थाओं को पालने पोषने का ही काम कर रही जो असमानता मिटाने के दावे करके अपना धंधा चला रही हैं ।व्यापक स्तर पर असमानता के सभी पहलुओं पर विमर्श किया जाना चाहिए।
कोशिश तो कीजिये, असमानता मिटेगी
श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
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