प्रतिदिन
कालाधन वापिसी अब भी मुद्दा है ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के लिए किसी समय प्रमुख मुद्दा “काला धन” हुआ करता था | अब यह मुद्दा बदल गया है, पर इससे इस मुद्दे के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आया है |काला धन एकत्र करने का यह वित्तीय अपराध और उसके मूल में कर चोरी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की प्रमुख बाधाओं में से एक हैं| ऐसी भ्रष्ट गतिविधियों से अर्जित धन का एक बड़ा हिस्सा जब अवैध तरीकों से विदेश पहुंच का काला धन का एक ऐसा स्वरूप ले लेता है जिसमे वैध मुद्रा को अवैध कहलाती है| काले धन का हिसाब लगाने, उसे वापस देश में लाने तथा कायदे-कानूनों के जरिये अवैध वित्तीय व्यवहारों पर अंकुश लगाने की कोशिशें सरकारी स्तर पर होती रही हैं, पर ये अब तक असफल ही साबित हुई हैं |दावा बीते पांच सालों में इस मसले पर ठोस पहलकदमी का जरुर है, लेकिन इस समस्या का समाधान बहुत चुनौतीपूर्ण है| काले धन की समस्या पर बनी संसद की स्थायी समिति भी विदेशों में अवैध रूप से जमा भारतीय पूंजी का अब तक कोई निश्चित आकलन नहीं कर सकी है|
एक रिपोर्ट के अनुसार समिति ने वित्तीय शोध और अध्ययन से जुड़े तीन प्रमुख राष्ट्रीय संस्थाओं के अध्ययन का संज्ञान लिया है, लेकिन इनके आकलन में व्यापक अंतर मिला है| एक अन्य अध्ययन के अनुसार, १९९७ से २००९ के बीच देश से बाहर गये काले धन की मात्रा सकल घरेलू उत्पादन का ०२.७ से ७.४ प्रतिशत हो सकती है, तो दूसरी रिपोर्ट बताती है कि १९८० से २०१० की अवधि में भ्रष्ट भारतीयों द्वारा बाहर ले जायी गयी रकम ३८४ अरब डॉलर से ४९० अरब डॉलर के बीच हो सकती है|
एक तीसरी रिपोर्ट भी है जिसका आकलन है कि १९९० से २००८ के बीच विदेश गये देशी धन की मात्रा २१६.४८ अरब डॉलर है| अब तो सरकार ने भी यह मान लिया है कि पारदर्शिता और नियमन की कमी तथा आकलन की प्रक्रिया पर सहमति न होने के कारण किसी सर्वमान्य आंकड़े का निर्धारण संभव नहीं है|
संसद द्वारा गठित संसदीय समिति ने वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग से देश के भीतर और बाहर काले धन का पता लगाने,वापस लाने तथा दोषियों को दंडित करने की कोशिशों को जारी रखने को कहा है| साल २००९ में संसदीय समिति के कहने के बाद २०११ में तत्कालीन सरकार के निर्देश पर तीन संस्थाओं ने अवैध तरीके से कमाये और जमा किये गये धन के आकलन का काम शुरू किया था, जिसे इन तीन राष्ट्रीय संस्थाओं ने २०१४ में पूरा कर लिया था|इनमें यह भी जानकारी दी गयी है कि रियल एस्टेट, खनन, दवा निर्माण,तंबाकू, सोने-चांदी, सिनेमा और शिक्षा जैसे कारोबारों में सबसे अधिक काला धन है| कुछ समय पहले छपी रिपोर्टों की मानें,तो इन तीनों अध्ययनों में एक बात को लेकर पूरी सहमति है कि विदेश से कहीं बहुत अधिक काला धन देश के भीतर है| नवंबर, २०१६ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी का एक बड़ा आधार यही था, पर इस प्रयोग से देश को कोई बहुत बड़ा लाभ नहीं हुआ है |
काले धन के उत्सर्जन को रोकने के लिये वस्तु एवं सेवा कर,काला धन पर कराधान कानून, कर चोरी रोकने के लिए नियमन और विभिन्न देशों के साथ करार, बेनामी कानून में संशोधन जैसे कदम पिछले सालों में उठाये तो गये हैं, पर उनके परिणाम अब तक अपेक्षित हैं | कहने को अर्थव्यवस्था को पारदर्शी बनाने, डिजिटल लेन-देन बढ़ाने और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नुकसानदेह वित्तीय व्यवहार को रोकने के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं, पर परिणाम उनके भी कोई ठोस आकार में सामने नहीं आये हैं | सरकार को इस सब पर एक श्वेत पत्र देश के सामने रखना चाहिए |.इन उपायों के सकारात्मक-नकारात्मक परिणाम भी सामने आना चाहिए | इससे सरकार और उसके दल की इस विषय पर बची शेष रूचि और राष्ट्र हित का एक बड़ा मुद्दा किसी ठोस रास्ते पर चल कर भटकने से बचेगा |