अमेरिका: नासा ने आज से 50 साल पहले 20 जुलाई 1969 को Apollo 11 मिशन को पूरा किया। इस मिशन के तहत पहली बार अमेरिका ने किसी इंसान को चांद पर भेजने में सफलता पाई थी। वह क्षण मिशन में लगे लोगों के लिए गौरवान्वित करने वाला था। इतने सालों बाद भी इसकी स्मृतियां ताजा हैं। तकनीशियन लैरी हैग ने कहा कि पचास साल बाद भी उस पल का अहसास वैसा ही है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाया है। इस डूडल में गूगल ने एक एस्ट्रोनॉट को चांद पर उतरता हुआ दिखाया है।
लैरी हौग ने अभी हाल ही में स्पेन के मैड्रिड में नासा के एक ट्र्रैंकग स्टेशन में डाटा सिस्टम पर्यवेक्षक के रूप में अपनी पारी खत्म की है। मैड्रिड उन तीन जगहों में से एक था, जहां अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने मानव अंतरिक्ष अभियानों की प्रगति को ट्रैक करने के लिए रेडियो दूरबीन लगाई थी। लैरी हौग कहते हैं, वह गर्व का क्षण था।
राष्ट्रपति कैनेडी ने 1961 में घोषणा की थी कि अमेरिका चांद पर जा रहा है। इसके बाद वे अपने लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़े। हौग कहते हैं, हमारे पास कुछ नहीं था। हमारा कोई आदमी अंतरिक्ष में भी नहीं गया था और अगले आठ साल में हमने दो लोगों को चांद पर उतारा। हमने जो किया, वह अविश्वसनीय था।
अमेरिकी बाकी दुनिया की सहायता के बगैर इसे कभी नहीं कर सकते थे। तकनीकी दृष्टिकोण से अमेरिका ने दुनियाभर से विशेषज्ञों को आकर्षित किया। यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के तकनीशियन और इंजीनियर, यूके की कंपनियां और स्थानीय तकनीशियन वाले ट्र्रैंकग स्टेशनों का सहयोग अमेरिकियों को मिला। अमेरिका के मोजावे रेगिस्तान में गोल्डस्टोन और ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा के समीप हनीसकल क्रीक दो अन्य मुख्य जगहें थीं।
बेशकीमती खजाना
चांद पर टाइटेनियम, पोटेशियम, थोरियम और यूरेनियम जैसे बेशकीमती रासायनिक तत्व बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं। इसके अलावा वहां सोना भी मौजूद है।
अंतरिक्ष यानों का मलबा
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चांद पर 1,87,333 किलोग्राम से अधिक कचरा इंसानों ने पहुंचाया है। यह कचरा लूना 2 से लेकर अब हुए मून मिशन के कारण चांद पर पहुंचा है।
2 मई 1945
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजी जर्मनी के प्रमुख एयरोस्पेस इंजीनियर वर्नहर वोन ब्राउन ने अमेरिका के सामने सरेंडर कर दिया था। उन्हें मिसाइल निर्माण के काम में लगाया गया।
29 जुलाई 1958
नासा की स्थापना हुई। 1960 में वोन ब्राउन और उनकी टीम को नासा में शामिल किया गया। उन्होंने सैटर्न-5 लांच व्हीकल बनाया।
25 मई 1960
राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने 1960 के अंत तक इंसान को चांद पर उतारने की घोषणा की थी।
अपोलो 1
25 जनवरी 1967
प्री लांच टेस्ट के दौरान यान में आग लगने से तीन अंतरिक्षयात्रियों की मौत हो गई। नासा ने अपने स्पेस प्रोग्राम के सभी पहलुओं की जांच की।
अपोलो 9
मार्च 3-13, 1969
जेम्स मैकडिविट, रसल श्वित्कार्ट और डेविड स्कॉट। पृथ्वी की कक्षा में रहकर लूनर मॉड्यूल का परीक्षण किया।
अपोलो 11
जुलाई 16-24, 1969
नील आर्मस्ट्रांग, बज एलड्रिन, माइकल र्कोंलस। आर्मस्ट्रांग चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने।
चांद की ओर भारत ने भी बढ़ा दिए अपने कदम
चंद्रयान-1 की सफलताएं
-चंद्रयान-1 चंद्रमा पर जाने वाला भारत का पहला मिशन था, ये मिशन लगभग एक साल (अक्टूबर 2008 से सितंबर 2009 तक) का था।
-चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाकर इस सदी की सबसे महत्वपूर्ण खोज की थी।
-इसरो के अनुसार चांद पर पानी समुद्र, तालाब या बूंदों के रूप में नहीं, बल्कि खनिज और चट्टानों की सतह पर बर्फ की तरह मौजूद है।
-इससे पता लगा था कि चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पूर्व में लगाए गए अनुमानों से कहीं ज्यादा है।
-सितंबर 2009 में नासा ने ऐलान किया कि चंद्रयान-1 के डाटा ने चंद्रमा पर पानी होने के सबूत दिए हैं।
-चंद्रयान-1 ने चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के अंधेरे वाले हिस्सों की 360 डिग्री वाली तस्वीरें लीं।
-चंद्रयान-1 ने चांद के 3000 चक्कर लगाए, इस दौरान उसने 70 हजार से अधिक तस्वीरें भेजीं।
चंद्रयान-2 से भारत को उम्मीदें
-चंद्रयान-2 वहां की चट्टानों में मैग्निशियम, कैल्शियम और लोहे को खोजेगा।
-यह चांद की सतह, वातावरण, विकिरण और तापमान का अध्ययन करेगा।
-पानी होने के संकेतों और चांद की बाहरी परत की भी जांच करेगा।
-यह मिशन चांद के दक्षिणी धुव्र पर उतरेगा। यह उबड़-खाबड़ है। यहां उतरना बेहद ही जोखिम भरा है।
भारत कहां-कहां पहुंचा अंतरिक्ष में
चांद पर पहुंचा पहला यान
चंद्रयान 1 चांद पर भेजा जाने वाला भारत का पहला यान था। यह पीएसएलवी एक्सएल रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया और इसपर 386 करोड़ रुपए का खर्च आया था। इस मिशन में एक लूनर ऑर्बिटर और इंपैक्टर मौजूद थे। यह मिशन भारत के स्पेस प्रोग्राम का सबसे महत्वपूर्ण मिशन था। भारत ने इसके लिए अपनी खुद की तकनीक विकसित की थी।
मिशन मंगल
मार्स मिशन (मॉम) को मंगलयान भी कहा जाता है। यह यान 24 सितंबर 2014 से मंगल ग्रह के चक्कर काट रहा है। इसे 5 नवंबर 2013 में लांच किया गया था। मंगल ग्रह पर पहुंचने वाली इसरो चौथी स्पेस एजेंसी बन गई है। इससे पहले सोवियत स्पेस प्रोग्राम, नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ही मंगल तक पहुंच पाई हैं।