- अभिमत

श्रमजीवियों की बात भी सुनिए, सरकार !

प्रतिदिन
श्रमजीवियों की बात भी सुनिए, सरकार !
मालूम नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार, उनकी पार्टी भाजपा और भाजपा का मार्गदर्शक संघ देश की ४९+६२ बुद्धिजीवियों की चिठ्ठियों पर कोई निर्णय लेते हैं या नहीं लेते हैं| चिठ्ठी लिखने से दूर देश का एक बड़ा वर्ग ये सारे तमाशे को देख रहा है | यह वर्ग देश का श्रमजीवी है, जिसे इस राजनीति से कोई मतलब नहीं है | उसे दो समय रोटी की जुगाड़, साल में २ जोड़ी कपड़े और पूरी जिन्दगी में एक अदद सिर छिपाने की जगह के लिए खटना पड़ता है | उसे इस बात का सपना नहीं आता कि “ जैराम जीकी ” या “सलाम” से देश को कोई खतरा है | वैसे भी ऐसे सपने पेट भरने के बाद आते हैं, ‘बुद्धि’ से कम योगदान नहीं है, ‘श्रम’ का | देश को गढने में बुद्धि से ज्यादा पसीना लगा है |इस वर्ग ने जिसमें मजदूर, किसान, छोटे रोजगारी, दफ्तरी छोटे बाबू,और स्कूली मास्साब से लेकर सिर पर मैला ढ़ोने वाले शामिल है, ने देश बनाने में अपना खून पसीना एक किया है | इन्हें अपने सहकर्मी की सायकिल का माडल कभी छोटा बड़ा नहीं लगा | इन्होने ‘जै राम’ और ‘सलाम’ में कभी भेद नहीं किया | काम के दौरान या काम बाद इन्होने चिन्तन के लिए किसी क्लब-पब  का सहारा नही लिया | ये श्रमजीवियों का एक बड़ा वर्ग है, चुप है, उसे सिर्फ अपने काम से मतलब है | उसका यही श्रम जी डी पी बन कर देश की शिराओं में दौड़ता है, उसकी भी सुनिए |
बॉलीवुड से लेकर टॉलीवुड तक की ४९  बड़ी हस्तियों की चिठ्ठी हो या उसके जवाब में आई ६३  लोगों की चिठ्ठी  भरे पेट के लोगों के शगल हैं | “जै राम जी” और “सलाम”  में इन्हें ही फर्क महसूस होता है | कंधे से कंधा मिलाकर देश बनाने वाले श्रमजीवी को इसमें अभिवादन से इतर कोई और अभिव्यक्ति नहीं दिखाई देती है और न इससे ज्यादा कोई भी इस बारे में सोचता है न बहस करता है | ए सी कमरों में ही “जै राम जी” और “सलाम” के मतलब खोजे जाते हैं और चिठ्ठी -पत्री लिख  समाज को बहकाते हैं |
हकीकत राजनीतिक है, भाजपा की भारी जीत के बाद से मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस में नेतृत्व संकट है और बसपा सुप्रीमो मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन समाप्त कर चुकी है। अन्य विपक्ष के लिए भी स्थिति काफी खराब है। तेलंगाना और गुजरात में कांग्रेस में टूट चुकी है। कर्नाटक के नाटक का अगला प्रहसन देश देख रहा है।  राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस के अध्यक्ष पद से दिया इस्तीफा अधर में है |अनेक राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षों ने इस्तीफे की पेशकश की है।इस उहापोह में ये शगुफेबाजी हुई है | इस तिमाही के आंकड़े श्रम के महत्व और श्रमजीवियों के चुपचाप काम में लगे होने के संकेत है | राष्ट्र निर्माण के इस दौर में श्रम का सम्मान होना चाहिये और शगुफेबाज़ी  से नमस्ते  कहना ही राष्ट्र धर्म है |
२०१९ के चुनाव के बाद भाजपा पूरी तरह से नई भाजपा है और इस बड़ी ताकत को संसद और बाहर दोनों में समान स्तर पर लड़ने के लिए किसी भी व्यावहारिक रणनीति पर काम करना होगा। वैसे  भारत में किसी भी राजनीतिक दल के लिए केंद्र में सत्ता में दस साल लगातार बने रहना कोई नई बात नहीं है। २००४  से दस साल तक सत्ता में से बाहर रहने के बाद २०१४  में भाजपा का खुद सत्ता में आना उदहारण है, सारे समाज के समर्थन का | इसमें बड़ा हिस्सा श्रमजीवी समाज का है ।  इससे पहले भाजपा १९९९  से पूर्ण कार्यकाल और १९९८  में अल्पावधि के लिए सत्ता में थी। १९९६  में भाजपा केवल १३  दिनों के लिए सत्ता में थी।  संसदीय लोकतंत्र में ये सामान्य घटनाक्रम हैं, लेकिन २०१९  के चुनावों के बाद चीजें काफी हद तक बदल गई हैं। भाजपा को अपना पूरा ध्यान देश के श्रमोत्थान पर केन्द्रित करना चाहिए | यही देश के वो मजबूत भुजाएं हैं, जो देश की पहचान को कायम रखेंगी | इन भुजाओं में बहते रक्त में “जै रामजी” और “सलाम” दोनों है |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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