- अभिमत

पंडित जी, बड़ी मुश्किल से घिसा है ३७०!

प्रतिदिन
पंडित जी, बड़ी मुश्किल से घिसा  है ३७०!
देश के पहले प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद ३७० “अस्थाई प्रावधान है और ये घिसते-घिसते घिस जाएगा|” घिस गया, परन्तु उसे घिसने में ७० साल लगे | घिसने में कितनी मशक्कत लगी, उसकी तो पूछिए मत |पूरा देश एक सप्ताह से परेशां  था, जाने क्या होगा ?  बिजली से भी तेज गति से संसद में प्रस्तुति, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और राजपत्र में प्रकाशन | इस तेजी में दो व्यक्ति याद आये एक बाल सखा डॉ प्रमोद अग्रवाल और दूसरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार | प्रमोद बाल्यकाल से कश्मीर के सौन्दर्य पर बलिहारी हैं, हमेशा वहां के हालतों से दुखी | इन्द्रेश जी भीष्म पितामह की भांति अखंड भारत में मृत्यु के स्वागत तक, जीने का अलख जगा रहे हैं | ३७० और ३५ ए की समाप्ति पर प्रमोद तो ख़ुशी से रो दिए, इन्द्रेश जी से संपर्क नहीं हुआ |

अब बात ३७० के बनने और घिसने की |यह अनुच्छेद आजादी के समय से ही भारत के लिए सबसे बड़े सिरदर्द का कारण रहा है, इसके लिए भाजपा, संघ परिवार,  अब मोदी और शाह, जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हैं, जिनने अनुच्छेद ३७० के साथ जम्मू-कश्मीर को न सिर्फ विशेष दर्जा देने का निर्णय लिया था , बल्कि वे खुद  कश्मीर के विलय के मसले को सुरक्षा परिषद में भी ले गए|  तत्समय सरदार पटेल की ये टिप्पणी थी कि जिले स्तर पर प्रैक्टिस करने वाला कोई वकील भी इस तरह की गलती नहीं करेगा|  गलती हो या न हो, पर सजा भारत ने ७० साल भोगी |  सही में माउंटबेटेन के दबाव और शेख अब्दुल्ला के साथ अपनी दोस्ती निभाने के चक्कर में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला | सरदार पटेल ने  अपने तईं इसका विरोध भी किया, लेकिन सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत के तहत आखिरकार नेहरू की जिद को स्वीकार कर लिया|

इसी वजह से ही आजादी के तुरंत बाद कश्मीर मामले में मुश्किलें भी शुरू हुईं और शेख अब्दुल्ला इसे अपनी व्यक्तिगत जागीर समझने लगे|  कश्मीर का अलग झंडा रखा गया,अलग संविधान रखा गया, राज्यपाल भी सदर-ए-रियासत कहे गए तो मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा गया | शेख दिल्ली में नेहरू की भाषा बोलते, कश्मीर में अलगाववाद की, तो अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान का एजेंडा आगे बढ़ाते, जिसके तहत कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पर जोर दिया जाता  रहा |आजादी के बाद से ही संघ परिवार ने इस परिस्थिति का विरोध किया| नेहरू मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर नीति के विरोध में ही मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया और एक देश में दो विधान, दो निशान नहीं चलेगा, नहीं चलेगा, इस नारे के साथ आंदोलन शुरू किया| इसी कोशिश में मुखर्जी की आखिरकार श्रीनगर में मृत्यु हो गई| कश्मीर का मुद्दा वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी दिल के काफी करीब रहा| डॉ मुरली मनोहर जोशी ने १९९१  में कन्याकुमारी से लेकर श्रीनगर के लाल चौक तक जो एकता यात्रा की,  उस यात्रा के सारथी मोदी ही थे | पांच साल पहले मोदी ने जो वादा किया था, और जिस अनुच्छेद ३७० की समाप्ति के लिए अठारह साल पहले यात्रा  यात्रा की थी, उसे वे आज यथार्थ के धरातल पर उतार पाए |
अब प्रश्न यह है कि इसके बाद क्या होगा? देश की राजनीति के लिए ये टर्निंग पॉइंट तो है ही, अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी इसके बड़े संकेत जाएंगे|  मोदी निर्णायक हैं और बड़े फैसले ले सकते हैं| उनके फैसले में इन्द्रेश जी के स्वप्न की पूर्ति हो इसकी शुभकामना | प्रमोद और मैं तो १९४७ के बाद जन्में है, उस दिन जितना भारत था, हमें उस दिन उतना भी चलेगा |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

 

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