- अभिमत

भारत-पाक : परोक्ष युद्ध और सब जायज

प्रतिदिन
भारत-पाक : परोक्ष युद्ध और सब जायज
पाकिस्तान से जो खबरें छन कर आ रही है, उनका अर्थ है “अनुच्छेद ३७० समाप्ति के भारत के निर्णय से पाकिस्तानी राजनेताओं और फौज के आला अधिकारियों की घरेलू स्तर पर भारी किरकिरी” | ये लोग पाकिस्तान और उसके कुछ दिनों से यही साबित करने की कोशिशों में थे कि कश्मीर मसले पर दुनिया भर के देश पाकिस्तान के रुख का समर्थन करने लगे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान को पाकिस्तान में ऐसा ही प्रचार किया गया था। भारत ने अनुच्छेद370 निरस्त करके समूचे संसार को यह संदेश दे दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है| इसी बात के मद्देनजर पाकिस्तान अब निर्णय ले रहा है |
वैसे आतंकी फंडिंग रोकने के मामले में पाकिस्तान ने कोई खास कदम नहीं उठाए हैं। अगर एफएटीएफ एक कदम आगे बढ़कर पाकिस्तान को काली सूची में डाल देता है, तो उसके लिए दुनिया के किसी भी देश से निवेश जुटा पाना मुश्किल हो जाएगा। यह उसकी बिगड़ती आर्थिक सेहत के लिए बेहद कठिन वक्त होगा । यही वजह है कि अमेरिका को पाकिस्तान यह यकीन दिलाने में जुटा था कि कश्मीर में मन-मुताबिक‘पहल’ करने की आजादी यदि उसे दी जाती है, तो अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की जल्द वापसी और तालिबान के साथ ‘शांति वार्ता’ सफल हो सकती है। जाहिर तौर पर घाटी में यह ‘पहल’ आतंकी गुटों को सक्रिय करने के लिए होनी थी, ताकि कश्मीर में मुसलमानों की कथित दयनीय दशा का हवाला देकर वह इस्लामी राष्ट्रों से मदद मांग मांगी जाती । इस मंसूबे के फेल होने की हताशा में पाकिस्तान इस तरह के फैसले कर रहा है।
अंतिम परिस्थिति में दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते थोडे़ वक्त के लिए ठहर सकते हैं । एक अन्य प्रभाव यह भी पड़ सकता है । जैसे, यदि किसी भारतीय नागरिक को वहां गिरफ्तार किया जाता है (जो अमूमन होता रहता है), तो स्थानीय स्तर पर उसकी रिहाई के प्रयास विफल होने पर हमारा उच्चायोग शायद ही कोई मदद कर पाएगा। द्विपक्षीय समझौते भी कूटनीतिक रिश्तों के दायरे में ही आते हैं, जिन पर पाकिस्तान अब एकतरफा फैसला कर सकता है। जैसे, दोनों देशों में ऐसे समझौते हैं, जिनसे यह सुनिश्चित किया गया है कि वे एक-दूसरे के परमाणु ठिकानों को निशाना नहीं बनाएंगे, और हर साल जनवरी में परमाणु हथियारों व प्रतिष्ठानों की सूची एक-दूसरे से साझा करेंगे। पाकिस्तान इन प्रावधानों पर कोई फैसला कर सकता है।
पाकिस्तान सिंधु जल संधि पर भी कुछ सोच सकता है। हालांकि इसकी संभावना नहीं है कि वह इस समझौते को तोड़ देगा, क्योंकि समझौते के तहत भारत अपनी छह नदियों का ८० प्रतिशत पानी पाकिस्तान को दे रहा है, जबकि अपने पास शेष २० प्रतिशत ही रखता है| अलबत्ता हम इतना पानी भी इस्तेमाल नहीं करते। मगर संभव है कि पाकिस्तान इन नदियों पर चल रही भारतीय परियोजनाओं को विश्व मंच पर संधि के खिलाफ साबित करने की कोशिश करे।
व्यापारिक रिश्ते की समाप्ति का भारत की आर्थिक सेहत पर शायद ही खास असर हो। भारत की निर्भरता वहां से आयात-निर्यात पर बहुत कम है। आंकडे़ बताते हैं कि भारत जहां सालाना करीब दो अरब डॉलर के उत्पाद पाकिस्तान को भेजता है, वहीं लगभग ५० करोड़ डॉलर के उत्पाद वहां से मंगवाता है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान से हमारा आयात लगातार घट रहा है। पाकिस्तान को दिया गया ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ यानी तरजीही देश का दर्जा भी पुलवामा आतंकी हमले के बाद छीन लिया गया था, जिससे उसे मिलने वाली आयात-निर्यात में छूट पहले ही खत्म हो गई थी। यह एक परोक्ष युद्ध है, इसमें सब जायज है, नजायज कुछ नहीं होता |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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