पांर्ढुना/छिंदवाड़ा : जिले में परंपरागत गोटमार मेला शुरू हो गया है। श्रद्धालुओं ने गोटमार शुरू होने से पहले पलाश के वृक्ष की स्थापना की और ध्वज लगाया। मंदिर में मां चंडिका दर्शन किए। इसके बाद लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर बरसाने लगे। इससे शुरूआती दौर में ही 11 लोग जख्मी हो गए, इसमें एक गंभीर है। उसे अस्पतालमें भर्ती कराया गया है।मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात है और दो दिन पहले ही जिला प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी है।
गोटमार मेले की शुरुआत 17वीं सदी से मानी जाती है। महाराष्ट्र की सीमा से लगे पांर्ढुना हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन पांर्ढुना और सावरगांव के बीच बहने वाली जाम नदी में वृक्ष की स्थापना कर पूजा अर्चना की जाती है। नदी के दोनों ओर लोग एकत्र होते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक पत्थर मारकर एक-दूसरे को लहूलुहान कर देते हैं। इसमें कई लोगों की मौत भीहो चुकी है।
मेले के आयोजन के संबंध में कई कहानियां और किवंदतियां हैं। इसमें सबसे प्रचलित और आम किवंदती ये है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांर्ढुना के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांर्ढुना का लड़का साथियों के साथ सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। नदी में गर्दन भर पानी रहता था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था।
जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांर्ढुना पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दिया। पांर्ढुना और सावरगां के बीच इस पत्थरों की बौछार से दोनों प्रेमियों की जाम नदी के बीच ही मौत हो गई।