- देश

चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से ऐसे हो रही संपर्क साधने की कोशिश

चांद की सतह से महज दो किमी पहले चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया। तब से लेकर वैज्ञानिक विक्रम से संपर्क साधने की कोशिशों से जूझ रहे हैं। पूरा देश उनके साथ खड़ा है और उस पल का का इंतजार कर रहा है जब लैंडर विक्रम की ध्वनि तरंगें आर्बिटर और इसरो के धरती पर बने केंद्रों में गुंजायमान हों। हालांकि उसके मन के किसी कोने में एक आशंका भी है कि लैंडर से संपर्क हो भी पाएगा या नहीं? समय तेजी से बीता जा रहा है। सिर्फ 14 दिन थे इसरो के पास। उसमें से करीब चार दिन बीतने वाले हैं।

हालांकि समय बीतने के साथ लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की उम्मीदें धूमिल नहीं होंगी, लेकिन इस लक्ष्य की एक तय समयसीमा है। विक्रम की हार्ड लैंडिंग से 14 दिन के भीतर यानी 21 सितंबर तक इसरो को संपर्क साधने में कामयाबी हासिल करनी होगी।

सुदूर अंतरिक्ष में मौजूद किसी वस्तु से संपर्क इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों द्वारा साधा जाता है। अंतरिक्ष संचार के लिए एस बैंड (माइक्रोवेव) और एल बैंड (रेडियो वेव) आवृत्ति वाली तरंगों का इस्तेमाल होता है। जैसाकि अभी संपर्क टूटने की वजहों का पता नहीं चल सका है और ऐसा लैंडर के उतरने के रास्ते में हुआ है तो इसके संचार यूनिट की पावर का फेल होना संभावित वजहों में से एक हो सकती है।

हालांकि हार्ड लैंडिंग की स्थिति में लैंडर के आंशिक नुकसान की आशंकाओं को भी नहीं खारिज किया जा सकता है। हालांकि विक्रम ऑर्बिटर के साथ धरती पर बने केंद्रों से भी संपर्क साधने में सक्षम है। संपर्क साधने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत खास आवृत्ति वाले सिग्नल छोड़े जा रहे हैं जिन्हें लैंडर में लगे उपकरण रिसीव कर सकते हैं। ऐसा इस उम्मीद में किया जा रहा है कि लैंडर के एक या एक से अधिक उपकरण इन संकेतों को पकड़कर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें।

कुछ दिन पहले वैज्ञानिकों की एक सोच सामने आई थी कि क्यों न ऑर्बिटर की कक्षा घटाई जाए जिससे लैंडर के वह ज्यादा करीब से गुजर सकेगा। हालांकि इसमें ज्यादा ईंधन खर्च होने की आशंका भी उठी। लैंडर पर लगे एंटीना की पोजीशन बहुत निर्णायक है। इसे सीधा और अवरोधों से मुक्त होना चाहिए जिससे ये ज्यादा व्यापक क्षेत्र के संकेतों को पकड़ सके। यदि ये एंटीना चांद की सतह में दब गया है या अवरोधों से दब गया है तो संकेतों को पकड़ने की उम्मीद धूमिल होती जाएगी। हालांकि ऑर्बिटर से उम्मीदें बरकरार हैं। जब भी यह विक्रम को पार करेगा तो उसे संकेत भेजेगा। बस देश को विक्रम के जवाब का इंतजार है।

21 सितंबर के बात चांद पर रात शुरू हो जाएगी जो धरती के 14 रातों के बराबर होगी। चांद की रातों में वहां तापमान बहुत अधिक कम होकर -200 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। लैंडर में लगे उपकरण इतने कम तापमान को सहने में समर्थ नहीं हैं। उसके इलेक्ट्रॉनिक क्षतिग्रस्त हो सकते हैं या एकदम से खराब होने की आशंका है। इसलिए 21 सितंबर तक अगर संपर्क सध पाया तो ठीक, उसके बाद उम्मीद न के बराबर होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *