प्रतिदिन
किन्तु परन्तु के साथ कार्पोरेट कर में कटौती
केंद्र ने कॉर्पोरेट कर में कटौती की घोषणा कर सबको अचरज में डाल दिया है । सरकार ने सभी घरेलू कंपनियों की दर में १० प्रतिशत तक की कटौती कर उसे २५ प्रतिशत के स्तर पर लाने का फैसला किया है। इसके परिणाम अभी किन्तु परन्तु में फंसे है | कॉर्पोरेट कर राहत की मात्रा एवं रफ्तार भारत के लिए अप्रत्याशित है। रातोरात हम एशिया के अधिकांश देशों की बराबरी में पहुंच गए हैं। निश्चित तौर पर यह एक अप्रत्याशित कदम था और शेयर बाजारों ने भी 5 फीसदी से अधिक तेजी हासिल की |
इस कर राहत के निशाने पर भारतीय कंपनी जगत है और कंपनियों का भरोसा बढ़ाना इसका लक्ष्य है। सरकार ने माना है कि कॉर्पोरेट दिग्गजों के बीच जोखिम से बचने की प्रवृत्ति हावी है। कंपनी अधिनियम में वर्णित कुछ खास अपकृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना भी इसी का हिस्सा है। ब्याज दरों में कितनी भी कटौती कर ली जाए, अगर कंपनी प्रमुखों के मन में भरोसा नहीं है तो निवेश नहीं बढ़ सकेगा। इन कदमों से भारत कारोबार शुरू करने और चलाने के लिए अधिक आकर्षक स्थान बनेगा।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों में राहत देने से उपभोग को बढ़ावा मिलता लेकिन वित्त मंत्री ने इस उम्मीद में कंपनियों की आय एवं नकदी प्रवाह बढ़ाने की पहल की है कि कंपनियों का भरोसा बढ़ेगा और वे निवेश से नए रोजगार सृजित करेंगी। भारत में कारोबार चलाने से जुड़े गतिरोधों को दूर करने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है फिर भी यह एक बड़ा कदम है। अब कर की दरें भारत में निवेश न करने की वजह नहीं रह जाएंगी। कंपनी जगत को अब शिकायती तेवर छोड़कर आगे बढऩा चाहिए और अर्थव्यवस्था एवं इसकी वृद्धि पर दांव लगाना चाहिए।
निश्चित रूप से इस साल के राजकोषीय लक्ष्य सेचूक जाएंगे लेकिन इस कदम का औचित्य तभी साबित हो सकेगा जब वृद्धि पटरी पर आ जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सामाजिक कार्यक्रम चलाने के लिए पैसों की जरूरत है। नई दरें लागू होने के बाद अगर वृद्धि में तेजी नहीं आती है तो फिर उनके पास सामाजिक योजनाओं के लिए फंड नहीं रह जाएगा। इन कर कटौतियों के बाद आर्थिक वृद्धि को लेकर सरकार की चिंताओं के बारे में सारे संदेह दूर हो जाने चाहिए। हर कोई इस पर एकजुट है कि तीव्र आर्थिक वृद्धि आज की अनिवार्यता है। बेहतर बात यह है कि राजकोषीय एवं मौद्रिक प्राधिकारी दोनों ही आखिर एक तरफ हैं।
इस वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा ३.७-३.८ प्रतिशत तक जा सकता है। शून्य मुद्रास्फीति और कमजोर वृद्धि के दौर में राजकोषीय घाटा ३.३ प्रतिशत रहने के बजाय मजूबत जीडीपी और आय वृद्धि के साथ बढ़े तो बेहतर होगा| राजकोषीय घाटा बढऩे से सरकार पर परिसंपत्तियों की तीव्र एवं रणनीतिक बिक्री का दबाव भी बढ़ेगा। रणनीतिक विनिवेश फिर से चर्चा में लौटेगा। और वह पहले की तुलना में अधिक आक्रामक होगा। हम खाद्य एवं उर्वरक सब्सिडी के मामले में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) का तीव्र क्रियान्वयन देख सकते हैं क्योंकि व्यय पर लाभ बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा।
इस कदम से सरकार ने दिखाया है कि वह सुनने को तैयार है और उसके लिए अर्थव्यवस्था एवं कंपनी जगत मायने रखते हैं। आर्थिक नीतियों के निर्माण में खाली जगह भर दी गई है। सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर बड़े दांव लगाने की मंशा भी दिखाई है। अगले १८ महीनों में जीडीपी एवं कंपनी मुनाफा दोनों में तेजी की उम्मीद की जा सकती है । अभी तो हम हम दोनों मामलों में निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं।