- अभिमत

रेल : निजीकरण रोकना, हम सब की जिम्मेदारी

प्रतिदिन :
रेल : निजीकरण रोकना, हम सब की जिम्मेदारी

उत्तर देने में भारतीय रेल का कोई सानी नहीं है | अब उसने रटे हुए जवाब देने मे भी महारत हासिल कर ली है| अब शिकायत कीजिये और आपके मेल पर चंद मिनटों में रेलवे की प्रशस्ति करता हुआ उत्तर आ जाता है | अभी एक यात्रा में रेलवे के दौरान अस्वच्छ शौचालयों की शिकायत पर रेलवे ने माना है कि रोजाना चलनेवाली २० हजार से अधिक यात्री गाड़ियों और ७३ सौ से ज्यादा स्टेशनों को साफ-सुथरा रखना एक बड़ी चुनौती है| रेलवे की बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता | किराया लेने के बाद स्वच्छ स्टेशन, स्वच्छ डिब्बा, स्वच्छ बर्थ, स्वच्छ शौचालय और स्वच्छ बेडरोल उपलब्ध कराना रेलवे का दायित्व है, इस बाबत विभिन्न न्यायालय भी फैसले दे चुके हैं | भारतीय रेल को यूँ ही देश की जीवन-रेखा की संज्ञा नहीं दी जाती है| इस यातायात नेटवर्क से सालभर में सवा आठ अरब से ज्यादा लोग यात्राएं करते हैं| स्टाफ की कमी, कर्मचारी आन्दोलन के साथ कुछ हद तक यात्रियों का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार भी, इसे निजीकरण की और धकेल रहा है | अगर सारा नेटवर्क निजी हाथों में चला गया तो इसके परिणाम गरीबों के खिलाफ होंगे और उनसे मनमाने किराये वसूले जायेंगे | विकल्प के अभाव उनकी यात्राओं पर विराम लग जायेगा | इस समस्या के निदान के लिए सभी पहलुओं पर विचार जरूरी है |

इसमें कोई शक नही की पिछले कुछ महीनों में यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी हुई है और ट्रेनों का संचालन भी बेहतर हुआ है, पर स्वच्छता संतोषजनक नहीं है| पिछले कुछ समय से रेल मंत्रालय इस समस्या के ठोस निदान के प्रयास में लगा है, जिसके सकारात्मक परिणाम कब आयेंगे कहना मुश्किल है | रेलवे के अनुसार इस वर्ष के स्वच्छता सर्वेक्षण में पहले से शीर्षस्थ स्टेशनों के साथ कई अन्य स्टेशन भी मानकों पर खरे उतरने लगे हैं| इस सर्वेक्षण में गीले व सूखे कचरे के प्रबंधन, ऊर्जा का प्रबंधन, सफाई गतिविधियों आदि के आधार पर स्टेशनों की परख होती है| इसका एक सराहनीय पहलू यह भी है कि जिन स्टेशनों पर सबसे अधिक सुधार रेखांकित किया गया है, उनमें से अधिकतर उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार, में हैं, गंदगी भी इस क्षेत्र में ज्यादा थी |
कहने को रेल मंत्रालय स्वतंत्र संगठनों द्वारा २०१६ से इस प्रकार के स्क्वच्चता सर्वेक्षण को करा रहा है|पहले इसमें ४०७ बड़े स्टेशनों का मुआयना होता था, पर इस साल इनकी संख्या बढ़ाकर ७२० कर दी गई है तथा इसमें १०९ उपनगरीय स्टेशनों को भी पहली बार शामिल किया गया है. स्टेशनों और ट्रेनों को साफ-सुथरा रखने के लिए सरकार की ओर से अनेक उपाय किये जा रहे हैं|
यूँ तो लंबी दूरी की एक हजार से अधिक ट्रेनों में परिचारकों की नियुक्ति भी हो चुकी है, परन्तु अभी इन्हें भारी प्रशिक्षण की जरूरत है | स्टेशनों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए शौचालय बनाने को भी प्राथमिकता देने की बात कही जा रही है तथा इन्हें सशुल्क बनाया जा रहा है| स्वच्छता के लिए और अधिक मशीनों के उपयोग भी किया जा सकता है|
स्टेशनों की साफ-सफाई के अलावा ट्रेनों और यात्रा के दौरान उपलब्ध भोजन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते हैं पूरी तरह निरापद भोजन व्यवस्था न होने तक ये सवाल यूँ ही खड़े रहेंगे| जुलाई, २०१७ में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में ट्रेनों में खान-पान की दुर्व्यवस्था पर रेल मंत्रालय को आड़े हाथों लिया था| इस स्थिति से मंत्रालय भी अनजान नहीं था, उसी साल फरवरी में नयी कैटरिंग नीति घोषित की जा चुकी थी. इसके तहत भोजन बनाने और वितरण करने के लिए रसोई सुविधाओं को बढ़ाया गया है| अभी इसके भी वांछित परिणाम नहीं आये हैं |
रेल आपकी सम्पत्ति है, का नारा बुलंद करने वाली रेलवे अब किसी धनिक की सम्पत्ति न बन जाये, इसके लिए सबको जुटना होगा नागरिक, रेल कर्मचारी, सरकार सबको | निजी हाथों में जो भी व्यवस्था गई है वो कल्याण के बजाये पैसे बनाने की मशीन बन जाती है |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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