भारतवर्ष को अपनी महान् प्रतिभा के बल पर परमाणु ऊर्जा से संपन्न करवाने में इनका अभूतपूर्व योगदान रहा है। आजादी के पश्चात् से ही यह भारत के ’एटमिक एनर्जी कमीशन’ के अध्यक्ष बनाए गए थे। किंतु निर्विवादित सत्य यह है कि डाॅ. होमी जहांगीर भाभा उस समय संपूर्ण संसार के सार्वधिक योग्य वैज्ञानिकों में से एक थे, जो परमाणु ऊर्जा पर उस समय कार्य कर रहे थे। अब उन्हीं के नाम पर ’भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर’ (BARC) को मुंबई के करीब ट्रांबे में स्थापित किया है।
डाॅ. होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्तूबर, 1909 को मुंबई के एक प्रतिष्ठित पारसी घराने में हुआ था। आगे चल कर इन्हें ही ’भारत के परमाणु विज्ञान के पिता’ का संबोधन दिया गया। प्राथिक शिक्षा के पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए यह इंग्लैंड चले गए थे। कैंब्रिज विश्वविद्यालय (University of Cambridge) में इन्होंने डाॅक्टरेट हासिल की गई। 1941-42 में इन्होंने बेंगलुरू के ’इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस’ (IISc) में अध्यापन का कार्य किया। उसके बाद यहां शोध कार्य भी किया।
सन् 1942 में भाग मुंबई के ’टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च’ (TIFR) में इायरेक्टर व प्रोफेसर के पद पर कार्य कर रहे थे। इस समय तक अंतरिक्ष किरण एवं परमाणु क्षेत्र में इनके अनुसंधान कार्यों की कीर्ति अखिल विश्व में फैल चुकी थी। शोध कार्य में नौकरशाही के कारण होने वाले विलंब को देखते हुए पंडित नेहरू की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक निर्णय बहुत ही अच्छा किया कि 1954 में भाभा को ही अध्यक्ष के अलावा परमाणु शक्ति भंडार का सचिव भी बना दिया। इन दोनों पदों पर डाॅक्टर भाभा आजीवन कार्य करते रहे। 1951 में इन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता भी की।
जिनेवा मेे 1955 में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण कार्यो की समीक्षा भी की गई थी और इसकी अध्यक्षता भी डाॅ. भाभा ने ही की थी।
डाॅ. भाभा का नजरिया काफी दूरगामी था। इन्होंने अपने अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाल लिया था कि भारत के जितने भी परंपरागत स्त्रोत हैं, यथा कोयला, तेल और जल संसाधनों की विद्युत, तब भी औद्योगिकरण नहीं हो सकेगा, क्योंकि यह तमाम संसाधन बीस वर्षो में ही समाप्त हो जाने थे। उसके बाद क्या? इस कारण इन्होंने यह आवश्यक माना कि परमाणु विद्युत गृहों की स्थपना की उचित प्रबंध नीति तैयार कर ली जाए।
परमाणु बिजली घरों से निकलने वाले अवशेषों के रेडिएशन की भी इन्हें चिंता थी। इस कारण वे ऊर्जा के अन्नत स्त्रोत और ऊर्जा उपयोग के बारे में भी गतिशील बने हुए थे। अपने उचित कार्यों के लिए इन्हें देश में ही नहीं देश बहार भी सम्मान दिया गया, पुरस्कृत किया गया। भारत सरकार द्वारा इन्हें ’पदम विभूषण’ से सम्मानित किया गया। लेकिन दैवयोग विचित्र घटा और 24 जनवरी, 1966 ई. को विदेश जाते हुए प्लेन क्रेश में इनका असामयिक निधन हो गया।
तथापि कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि डाॅ. भाभा के विमान का क्रेश होना किसी साजिस का नतीजा था। आज भी अनेंक यही मानते हैं। तथापि डाॅ. भाभा ने देशहित में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
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