- अभिमत

बैंक ऋण : कुछ नया करने की जरूरत

प्रतिदिन :

बैंक ऋण : कुछ नया करने की जरूरत

देश के सामने वर्तमान बैंकिंग व्यवस्था के चलते फंसे हुए कर्जे (एनपीए) का दबाव अर्थव्यवस्था से जुड़ी मौजूदा प्रमुख चिंताओं में एक है, यह व्यवस्था जिसकी निगहबानी कोई और करता है दबाव देकर ऋण कोई और दिलाता है वसूली का दायित्व किसी और पर आता है के कारण बिगड़ी है | अब इसी वजह से निवेश और उपभोग के लिए नगदी मुहैया कराने में बैंकों को परेशानी हो रही है| सरकार ने पूंजी की उपलब्धता सुनिश्चित कर और रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में लगातार कटौती कर स्थिति को सुधारने की कोशिश की है, पर यह कोई स्थायी समाधान नहीं है |

पिछले कुछ सालों से विभिन्न कानूनों व नियमों के जरिये फंसे हुए कर्जों का निपटारा करने का सिलसिला भी जारी है| लेकिन, मुद्रा ऋण योजना के तहत ऐसे कर्जों की बढ़ती मात्रा से समाधान के प्रयासों को कुछ झटका लग सकता है| रिजर्व बैंक के उप गवर्नर एम के जैन ने बैंकों को चेताया है कि वे इस योजना के तहत कर्ज देने से पहले चुकाने की क्षमता पर भी निगरानी रखें| कुछ महीने पहले गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी बैंकों को ऐसी ही हिदायत दी थी. सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यमों को विस्तार के लिए नगदी देने की इस योजना जिसमें १० लाख रुपये तक की राशि देने का प्रावधान है, चालू वित्त वर्ष में १.४१ लाख करोड़ के कर्ज बांटे चुके हैं| अब वसूली का सवाल खड़ा है | पिछले साल यह राशि तीन लाख करोड़ थी, कुछ दिन पहले सरकार ने संसद को जानकारी दी है कि इस पहल से १.१० करोड़ लोगों को रोजगार हासिल हो चुका है| रोजगार मिलना और कर्ज पटाने की नीयत एक साथ हो इसकी व्यवस्था जरूरी है |

हर देश के उद्यम उसकी अर्थव्यवस्था के आधार हैं| उद्यमियों द्वारा कर्ज चुकाने में असमर्थता से यह भी इंगित होता है कि इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि रिजर्व बैंक के निर्देश के बाद कर्ज लेने में दिक्कतें बढ़ सकती हैं| फंसे हुए कर्जों के मामले में एक संतोषजनक पहलू यह है कि इस साल जून तक इनमें ९८ हजार करोड़ रुपये की वसूली हुई है और अब यह आंकड़ा ९.३८ लाख करोड़ तक आ गया है|

वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा संसद को दी गयी जानकारी के मुताबिक, ३१ मार्च, २०१८ तक बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति १०.३६ लाख करोड़ से कुछ अधिक थी| बैंकों ने फंसे हुए कर्ज के बड़े हिस्से को बट्टे खाते में भी डाला है यानी ऐसी राशि के वापस आने की उम्मीद न के बराबर है| हालांकि, बैंकों का कहना है कि इसके बावजूद वसूली की कोशिशें जारी हैं, पर फिलहाल तो इनकी गिनती घाटे में ही होगी| वसूली में मुश्किलें अर्थव्यवस्था की मंद रफ्तार से भी जुड़ी हुई हैं| बैंकों के सामने धोखाधड़ी की समस्या भी गंभीर होती जाती है.

हाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रिजर्व बैंक के हवाले से बताया है कि मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को फर्जीवाड़े से ९५.७ हजार करोड़ का नुकसान हुआ है| पिछले दो साल में अक्रिय कंपनियों के ३.३८ लाख खाते बंद किये गये हैं और उनकी संपत्ति से धोखाधड़ी की रकम वसूलने का कानून बनाया गया है, लेकिन निगरानी व प्रबंधन के मोर्चे पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है, ताकि एनपीए व फर्जीवाड़े पर अंकुश लगाया जा सके|

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *