प्रतिदिन :
माफ़ कीजिये,माई लार्ड ३ करोड़ से ज्यादा मुकदमे लम्बित हैं
इस समय देश की अदालतों में ३.१६,४८.९३४ मुकदमे लंबित हैं और इनमें दस साल ज्यादा पुराने मुकदमों की संख्या ६५ लाख से अधिक है। अब सरकार चाहती है कि उच्च न्यायालयों में दस साल से ज्यादा समय से लंबित मुकदमों का तेजी से निपटारा किया जाये। सवाल यह है कि ऐसा कैसे हो? एक तरफ सरकार ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से इनकार कर दिया है, नये मुकदमे रोज दायर हो रहे हैं | उच्च न्यायालयों में ८ लाख से अधिक मुकदमे दस साल से भी ज्यादा समय से लंबित हैं जबकि देश की सारी अदालतों में इस तरह के ६५ लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं। आखिर उच्च न्यायालयों में दस साल से ज्यादा लंबित मुकदमों का निपटारा तेजी से कैसे हो?
राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार इस समय देश की अदालतों में पांच साल से ज्यादा समय से लंबित मुकदमों की संख्या ६५,९६,३१८ है। इनमें ३० साल से ज्यादा पुराने मुकदमों की संख्या ७२२४३ है जबकि २० से३० साल पुराने मुकदमों की संख्या ३,६५ ९९८ और १० से २० साल पुराने मुकदमों की संख्या १९,४१, ४८७ है। इन आंकड़ों के अनुसार अकेले पांच से दस साल पुराने मुकदमों की संख्या ४२,१६ ९९० है। अदालतों में महिलाओं द्वारा दाखिल मामलों की संख्या भी३० लाख से ज्यादा है जबकि वरिष्ठ नागरिकों द्वारा दायर मुकदमों की संख्या भी १९,६३,००० पार कर चुकी है।यह सही है कि मुकदमों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर ३५ कर दी है और वहां इस समय ५९,८०० से अधिक मुकदमे लंबित हैं जबकि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या इस समय १०७९ है और इनमें से ४२२ पद अभी भी रिक्त हैं। उच्च न्यायालयों में अभी भी ४० लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं।
लंबित मुकदमों, विशेषकर दस साल से ज्यादा पुराने मामलों के संबंध में बेहतर होगा कि यदि उच्च न्यायालय भी अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी ढांचा विवाद की भांति सुनवाई के लिये समय सीमा निर्धारित कर सख्ती से पालन करे। आवश्यक होने पर ही सुनवाई स्थगित करे जिससे इन मुकदमों का तेजी से निपटारा हो सकता है। इसके अलावा, मुकदमों की सुनवाई पूरी होने के बाद इनके फैसला सुनाने के बारे में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन भी लंबित मुकदमों की संख्या कम करने में मददगार हो सकता है।उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में मुकदमों के बढ़ते बोझ से निपटने के लिये जरूरी है कि दोनों ही स्तरों पर न्यायालय कक्षों और अदालतों की संख्या बढ़ाई जाये। इसके लिए जरूरी है केन्द्र और राज्य सरकारें न्यायिक सुधारों के साथ ही लंबित मुकदमों के तेजी से निपटारे के प्रति अधिक गंभीर हों।
यह भी सत्य तथ्य है कि उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद उच्च न्यायालयों की तरह ही अधीनस्थ अदालतों में भी बड़ी संख्या में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के पद रिक्त हैं। अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के २३,५६६ पद स्वीकृत हैं। इनमें से २५ प्रतिशत पद अर्थात २२४ पद अभी भी रिक्त हैं। न्यायपालिका में इतनी बड़ी संख्या में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के पद रिक्त होने और तीन करोड़ मुकदमे लंबित होने के तथ्य के मद्देनजर शीघ्र न्याय की आस की सहज कल्पना दूर की कौड़ी है। जरूरी है कि उच्च न्यायालय और अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या के साथ ही अदालत कक्षों की संख्या में वृद्धि की जाये, साथ ही कोई भी नया कानून बनाते समय सरकार इस तथ्य पर भी ध्यान दे कि इससे अदालतों पर इसका कितना बोझ पड़ेगा ।
सरकार का दावा है कि उसने अदालतों की ढांचागत सुविधाओं में सुधार के लिये अनेक कदम उठाये हैं लेकिन स्पष्ट नहीं है कि मुकदमों के अनुपात में न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित करने की दिशा में क्या कदम उठाये जा रहे हैं? मुकदमों के तेजी से निपटारे के लिये अधीनस्थ न्यायपालिका के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार होना चाहिए |
माफ़ कीजिये,माई लार्ड ३ करोड़ से ज्यादा मुकदमे लम्बित हैं
श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
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