- अभिमत

बैंक : जनोन्मुखी नीतियों की दरकार

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बैंक : जनोन्मुखी नीतियों की दरकार
देश की हिलती-डुलती अर्थव्यवस्था की चिंताओं के बीच सार्वजनिक बैंकों की सेहत में सुधार की राहत भरी खबर एक तरफ भरोसा जगाती है| दूसरी तरफ बैंकों ने अपने ग्राहकों के लिए जो नये सरचार्ज लागू करने का फैसला किया है उससे आम ग्राहकों में भ्रम फ़ैल रहा है | कहने को मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में १३ बैंकों ने मुनाफा कमाया है| वित्तीय तंत्र को अनुशासित और पारदर्शी बनाने के इरादे से बीते सालों में सरकार द्वारा सुधार के अनेक प्रयास हुए हैं| ये प्रयास अब भी जारी हैं, इसका एक सकारात्मक परिणाम बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के दबाव में कमी के रूप में सामने आया है| पिछले साल फंसे हुए कर्ज की वसूली न हो पाने से बैंक पूंजी के संकट से जूझ रहे थे और इस वजह से उनके पास नये कर्ज देने की गुंजाइश भी कमतर हो गयी थी.| २०२०में यह स्थिति सुधरती पर बैंक अपने सेवा शुल्क और शर्तों को कठिन करते जा रहे हैं, जो लक्ष्य प्राप्ति में बाधक होगा |
फंसे हुए कर्ज अब भी बहुत गंभीर समस्या है, बैंको के प्रयास इस दिशा में कुछ हुए पर उन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है | फंसे हुए कर्ज की राशि सितंबर २०१९ में घट कर ७.२७ लाख करोड़ के स्तर पर आ गयी है, जो २०१८ के मार्च में ८.९६ लाख करोड़ रुपये थी| इससे इंगित होता है कि वसूली के उपाय, नियमन, बैंकों के प्रबंधन को दुरुस्त करने तथा दिवालिया कानून जैसे उपाय अपना असर दिखाने लगे हैं| यह सम्पूर्ण समाधान है, यह स्वीकारना जल्दबाजी होगी |
वैसे सरकार द्वारा समुचित पूंजी मुहैया कराये जाने से बैंकों का कामकाज भी सुचारु रूप से चलता रहा है| एस्सार मामले के निबटारे से बैंकों को लगभग ३९ हजार करोड़ रुपये मिले हैं. इसके अलावा बीते साढ़े चार साल में ४.५३ लाख करोड़ रुपये की वसूली भी हुई है| पिछले तीन वित्त वर्षों में बैंकों ने २.३ लाख करोड़ रुपये की संपत्ति भी जब्त की है| इन कारकों की वजह से कई बैंकों का हिसाब अब फायदे में बदलने लगा है| बैंकों को अब छोटे उपभोक्ताओं की और ध्यान ही नहीं देना चाहिए बल्कि उनके लिए नई योजना और सुविधाएँ जुटाना चाहिए |
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि सुदृढ़ बैंकिंग प्रणाली अर्थव्यवस्था का सबसे अहम आधार होती है| अनेक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारणों से हमारी आर्थिकी की बढ़त में कमी आयी है| ऐसे में मांग और उपभोग का स्तर बढ़ाने तथा उद्यमों, उद्योगों व निवेश के लिए नकदी उपलब्ध कराने में बैंकों की अग्रणी भूमिका है, लेकिन चुनौतियों के बादल अब भी मंडरा रहे हैं, रिजर्व बैंक ने अंदेशा जताया है कि कमजोर अर्थव्यवस्था और सिकुड़ते कर्ज की वजह से एनपीए का अनुपात बढ़ सकता है| यह अनुपात सितंबर में ९.३ प्रतिशत था, जो सितंबर २०२० में ९.९ प्रतिशत हो सकता है. ऐसे में सार्वजनिक बैंकों को कामकाजी घाटे को रोकने के लिए समुचित नकदी रखने तथा उद्योगों को सक्षम प्रबंधन पर ध्यान देने की रिजर्व बैंक की सलाह बहुत महत्वपूर्ण है| पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक के घोटाले ने डेढ़ हजार से अधिक शहरी सहकारी बैंकों में व्याप्त अव्यवस्था को उजागर किया है| इनमे छोटे जमाकर्ता अधिक हैं | सरकार और बैंकों को उनके लिए फौरन कुछ करना चाहिए |
यह प्रमाणित हो गया है कि इस बैंक में अरबों रुपये का घाटा झेल रही एक कंपनी को दिये गये कर्ज को २१ हजार फर्जी खातों के जरिये छुपाने की कोशिश की गयी थी. अब सरकार व रिजर्व बैंक सहकारी बैंकों से जुड़े नियमों में ठोस बदलाव की तैयारी में हैं| सारे बैंकों को एक ऐसी प्रणाली पर विचार करना चाहिए,जिससे छोटे उपभोक्ताओं को राहत मिले और वे फर्जीवाड़े से बचें | फर्जीवाड़े के ९० प्रतिशत मामले कर्ज से जुड़े हैं. इसके अलावा, ग्राहकों से भी ठगी की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. सुधार और मुस्तैदी से ही चुनौतियों का समाधान हो सकेगा | बैंकों अपनी नीति जनोन्मुखी बनाना होगी |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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