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आज प्रवासी भारतीय दिवस है।

आज प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जा रहा है आज प्रवासी भारतीय दिवस है। यह दिन भारत के विकास में विदेशों में बसे भारतीय समुदाय के योगदान के लिए हर वर्ष मनाया जाता है। यह दिन महात्‍मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी 1915 को भारत लौटने की स्‍मृति में भी मनाया जाता है।

प्रवासी भारतीय दिवस का उद्देश्‍य
– अप्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति सोच, भावना की अभिव्यक्ति, देशवासियों के साथ सकारात्मक बातचीत के लिए एक मंच उपलब्ध कराना.
– विश्व के सभी देशों में अप्रवासी भारतीयों का नेटवर्क बनाना.
– युवा पीढ़ी को अप्रवासियों से जोड़ना.
– विदेशों में रह रहे भारतीय श्रमजीवियों की कठिनाइयां जानना और उन्हें दूर करने की कोश‍िश करना.
– भारत के प्रति अनिवासियों को आकर्षित करना.
– निवेश के अवसर को बढ़ाना.

प्रवासी भारतीय देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने में सबसे आगे
विश्व बैंक की ‘माइग्रेशन एंड रेमिटेंस’ रिपोर्ट के मुताबिक प्रवासी भारतीय अपने देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने में सबसे आगे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक प्रवासी भारतीयों ने साल 2018 में 79 बिलियन डॉलर की रकम भारत भेजी. इस मामले में चीन के प्रवासी दूसरे नंबर पर हैं और उन्होंने साल 2018 में 67 बिलियन डॉलर की रकम चीन भेजी थी.

प्रवासी भारतीय दिवस; यह दिन विदेशों में बसे ऐसे लोगों को समर्पित है, जिन्होंने अपने काम और मेहनत से भारत का नाम रोशन किया। इनमें से एक हैं हिंदुजा बंधु (श्रीचंद, गोपीचंद, प्रकाश और अशोक हिंदुजा)। 1914 में मुंबई से शुरू हुआ हिंदुजा ग्रुप आज दुनियाभर में नाम है। संडे टाइम्स के मुताबिक, हिंदुजा बंधु 2019 में तीसरी बार ब्रिटेन के सबसे अमीर व्यक्ति बने। संडे टाइम्स की रिच लिस्ट के मुताबिक, उनकी संपत्ति एक साल में 1.356 बिलियन पाउंड (12 हजार 270 करोड़ रुपए) बढ़ी है। फिलहाल यह समूह ऑयल, गैस, बैंकिंग, आईटी और रियल एस्टेट के कारोबार से जुड़ा है।

श्रीचंद हिंदुजा (बाएं) और गोपीचंद हिंदुजा

वाजपेयी सरकार के लिए संकटमोचक बने थे हिंदुजा
जीपी के नाम से मशहूर गोपीचंद वही शख्स हैं, जिन्होंने वाजपेयी सरकार की ऐसे समय मदद की थी, जब देश पर बैन लगा दिया गया था। दरअसल, 1998 में वाजपेयी सरकार ने पोकरण में परमाणु परीक्षण किया था, तब पूरी दुनिया ने भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके बाद वाजपेयी सरकार ने हिंदुजा बंधुओं के माध्यम से ही ब्रिटिश सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखा था। अटलजी के प्रमुख सचिव बृजेश मिश्र 4 जून 1998 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर से मिलने 10, डाउनिंग स्ट्रीट गए थे। यह मुलाकात भी गोपीचंद हिंदुजा ने ही कराई थी। ब्लेयर, जीपी के बेहद करीब थे और अकसर पत्नी के साथ हिंदुजा परिवार के दीपावली आयोजन में भी शामिल होते थे। जानकार मानते हैं कि उनके प्रयास से ही ब्रिटेन ने भारत पर से प्रतिबंध को हटाया था।

मुंबई में हुई थी हिंदुजा ग्रुप की स्थापना
हिंदुजा ग्रुप को 4 भाई संभालते हैं। इसकी आधारशिला बेशक मुंबई में रखी गई थी, लेकिन कारोबार तब बढ़ना शुरू हुआ जब दो भाई श्रीचंद और गोपीचंद 1979 में एक्सपोर्ट बिजनेस के लिए ब्रिटेन गए। तीसरे भाई प्रकाश जेनेवा और स्विट्जरलैंड का बिजनेस देखते हैं। सबसे छोटे अशोक भारत में कारोबार संभालते हैं।

2014 और 2017 की लिस्ट में भी दोनों भाई अव्वल रहे थे
ग्रुप की कमान 83 वर्षीय श्रीचंद और 79 वर्षीय गोपीचंद हिंदुजा के हाथ में है। दोनों ब्रिटिश नागरिक हैं और लंदन में ही रहते हैं। उनकी संपत्तियों में व्हाइट हॉल का ओल्ड वॉर ऑफिस भी शामिल है। उनकी योजना इसे लग्जरी होटल में तब्दील करने की है। संडे टाइम्स की 2014 और 2017 की लिस्ट में भी दोनों भाई पहले नंबर पर रहे थे।

पाकिस्तान से आए मुंबई
हिंदुजा भाइयों के पिता परमानंद आजादी से पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत के शिकारपुर से मुंबई आकर रहने लगे। वे कारपेट, सूखा मेवा और केसर का आयात ईरान से करते थे। साथ ही पश्चिमी देशों में भारत के कपड़े, चाय और अन्य मसालों का निर्यात करते थे। उन्होंने ही साल 1914 में हिंदुजा ग्रुप की नींव रखी थी।

ईरान छोड़कर गए लंदन
1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई तो हिंदुजा ग्रुप ने ईरान से कारोबार समेटकर लंदन ले जाना उचित समझा। परमानंद हिंदुजा ने बॉलीवुड की फिल्मों को भी विदेशों में बेचने का कारोबार 1921 में किया था। जहां तक गोपीचंद की बात है तो उन्होंने 14 साल की उम्र से पिता के साथ काम शुरू किया। शुरुआत में वे बैंक और कारोबार का काम देखते थे, लेकिन बाद में मध्य पूर्व  में कामकाज फैलाना उनका ही जिम्मा था। 1984 में गल्फ ऑयल और 1987 में अशोक लीलैंड लेकर उन्होंने ही भारत में पहला एनआरआई निवेश किया था।

लगभग हर बड़े देश में एक घर
बोफोर्स में नाम उछलने के बाद भी चारों भाइयों ने चुप्पी बनाए रखी। कहा जाता है कि हर बड़े देश में इस परिवार का एक घर है और सभी में संयुक्त रसोई है। सब एक साथ रहते हैं। एक इंटरव्यू में गोपीचंद ने कहा था कि पिता उन्हें हिंदू वैदिक रीति से रहना सिखा गए थे। परिवार में हुई शादियों के कार्ड में हर पन्नों पर वेद मंत्र लिखे रहते हैं। पूरा परिवार शाकाहारी है और शराब व अन्य व्यसनों से भी दूर है।

 

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