- अभिमत

दिल्ली : सब साधने में लगे हैं

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दिल्ली : सब साधने में लगे हैं
८ फरवरी को दिल्ली अपनी नई प्रादेशिक सरकार चुन लेगी | ११ फरवरी को आने वाले नतीजे वर्तमान केंद्र सरकार केजरीवाल सरकार (Kejriwal Government) के बीच लोकप्रियता का फैसला होगा | पिछले आंकड़ों पर नजर डालें तो २०१५ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ९.७ प्रतिशत, भाजपा ३२.३ प्रतिशत और आप की ५४.३ प्रतिशत मत मिले थे । इस बार चुनावी नतीजे इस बात पर निर्भर होंगे कि कौन सा दल विरोधी पार्टी के वोट बैंक में कितनी सेंध लगा पाया।
एक बात सब जानते हैं कि दिल्ली के ८० प्रतिशत मतदाता अन्य प्रदेशों से विस्थापित हैं। २०१४ और २०१९ के लोकसभा चुनाव तथा २०१५ के दिल्ली विधानसभा (2015 Delhi Legislative Assembly) के चुनावी नतीजों से साफ है कि लोकसभा के दोनों चुनावों में भाजपा अपने परंपरागत वोट के सहारे जीती थी जबकि विधानसभा चुनाव में यह परंपरागत वोट उसके हाथ से फिसल गया था ।
कहने को भाजपा दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर काबिज है लेकिन भरोसे से यह नहीं कहा जा सकता कि बीते विधानसभा चुनाव में मात्र ३ सीटों तक पहुंचने वाली भाजपा इस बार कितनी सीटें हासिल कर सकेगी और ६७ सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी के हाथ से कितनी सीटें निकल जाएंगी।
अभी तीनों प्रमुख दल भाजपा, आप और कांग्रेस ‘दिल्ली मेरी’-‘दिल्ली मेरी’ का राग अलाप रहे हैं। वैसे केजरीवाल के अलावा दोनों दलों के पास दावे का कोई मजबूत और ठोस आधार आधार दिखाई नहीं देता । २०१९ के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी भले ही रसातल में चली गई लेकिन दिल्ली में वर्चस्व कायम करने वाली आम आदमी पार्टी को भी कांग्रेस ने हाशिए पर पहुंचा दिया था। बीते लोकसभा चुनाव से लेकर मौजूदा दिल्ली विधानसभा चुनाव तक देश के विभिन्न प्रांतों में नतीजों की तस्वीर कई बार बनती, संवरती और बिगड़ती रही है। इसमें गठबंधन की पटकथा में हुए बदलाव ने भी बखूबी भूमिका निभाई है। यह कहना भी बेमानी नहीं होगा कि विभिन्न सूबों में हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा उम्मीद के अनुकूल प्रदर्शन करने में खासी विफल रही है।
लोकसभा चुनाव में आए नतीजों से गद्गनद भाजपा ने एक तरह से अपने सिर पर ‘वन एंड ओनली’ का ताज सजा लिया था। लेकिन झारखंड में करारी शिकस्त के बाद भाजपा ने सहयोगी दलों की सुध लेनी शुरू की है। दिल्ली के मौजूदा चुनाव में भाजपा ने जद-यू व लोजपा को अहमियत देने के संकेत दिए हैं। जबकि झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इनसे सीट बंटवारे पर साफ इनकार कर दिया था। वैसे भी इन दिनों भाजपा को कई प्रदेशों में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
झारखंड में भाजपा की हार की वजहों को भले ही चर्चा से अलग कर दें तो भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सीटों पर सहमति नहीं बनने पर आजसू ने भाजपा से नाता तोड़ा तो जद-यू और लोजपा (D-U and LJP) को खुद भाजपा (BJP) ने तवज्जो नहीं दी। इससे पहले हरियाणा में भी मनमाफिक नतीजे नहीं आने और महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के बाद सहयोगी दलों ने भाजपा पर हमला बोला था। गठबंधन को पहुंची चोट पर भाजपा सहानुभूति का मरहम अभी ठीक से लगा भी नहीं पाई है|
दिल्ली विधानसभा में ताजपोशी को बेचैन भाजपा के लिए गठबंधन धर्म निभाना कई मायनों में जरूरी है। दिल्ली में बड़ी संख्या बिहारी और पूर्वांचल के मतदाताओं की है। मौजूदा विधानसभा चुनाव में यदि यह मतदाता नहीं सधते हैं तो इसका परिणाम इसी साल बिहार में होने जा रहे चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। एक महत्वपूर्ण बात जो देखने को मिली वह यह कि दिल्ली की जनता लोकसभा चुनाव में भाजपा को हाथों-हाथ लेती है लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट देने में यही मतदाता हाथ खींच लेते हैं।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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