प्रतिदिन :
कर्मवीर : किसी से मांगते नहीं
“कर्मवीर” पत्रिका १०० वर्ष की हो गई | दादा माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) को यह पत्रिका पत्रकारिता के प्रकाशपुंज की भांति, आध्य संपादक माधवराव सप्रे ने सौपी थी | भारत की आज़ादी में कर्मवीर मशाल की भांति जली, सोये मध्यप्रदेश में आज़ादी का अलख फूंक दिया | आज सौ साल बाद कर्मवीर नये कलेवर में सामने हैं | कर्मवीर का शतक अंक जब निकल रहा था,तब मीडिया और वर्तमान मध्यप्रदेश सरकार के सम्बन्ध पर भी बात चल रही थी, साप्ताहिक, मासिक और अन्य अन्तराल में पत्र पत्रिका निकलने वाले रोष में थे | वर्तमान सरकार ने उन्हें २६ जनवरी तक पर विज्ञापन नहीं दिया | विज्ञापन की इस तकरार, का एक पक्ष अब मीडिया का वो समूह हो गया है जिनके प्रकाशन सिर्फ सरकारी विज्ञापन पर आश्रित है | विचार नहीं,विज्ञापन उनके लिए उद्देश्य था है और रहेगा | सरकार को क्या करना चाहिए था, क्या करना है सरकार जाने | ३० जनवरी को महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) और माखनलाल चतुर्वेदी जी के स्मृति दिवस (Memorial Day) हैं, ये दोनों भी पत्रकार थे | पत्रकारिता (Journalism) के जो सिद्धांत इन दोनों ने रचे वे आज मीडिया के लिए आदर्श हो सकते हैं, बशर्ते आप माने | आज सरकार,समाज,और मीडिया अपने अपने उद्देश्य से चल या चलाये जा रहे हैं | अपने मूल उद्देश्य से इतर | कम प्रसार संख्या वाले समाचार पत्रों के लिए यह कठिनाई का दौर है | जब भी कभी कठिनाई, आती है हम अपने पुरखों की तरफ देखते है |
सबसे पहले गाँधी जी- हिन्द स्वराज को पढ़े गाँधी जी कहते हैं “समाचार-पत्र सेवाभाव से ही चलाने चाहिए. समाचार-पत्र एक जबर्दस्त शक्ति है; लेकिन जिस प्रकार निरंकुश पानी का प्रवाह गांव के गांव डुबो देता है और फसल को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार निरंकुश कलम का प्रवाह भी नाश की सृष्टि करता है. लेकिन यदि ऐसा अंकुश बाहर से आता है, तो वह निरंकुशता से भी अधिक विषैला सिद्ध होता है. अंकुश अंदर का ही लाभदायक हो सकता है|” आप इस निरंकुशता से दो-चार हो रहे है, देश पर नजरें घुमईये |
अब दादा माखन लाल चतुर्वेदी – कर्मवीर में प्रकाशित ६ सिद्धांत १. कर्मवीर संपादन और कर्मवीर परिवार की कठिनाईयों का उल्लेख न करना २. कभी धन के लिए अपील न निकलना ३. ग्राहक संख्या बढ़ाने के लिए कर्मवीर के कालमों में न लिखना ४. क्रन्तिकारी पार्टी के खिलाफ वक्तव्य नहीं छापना ५. सनसनीखेज खबरें नहीं छापना ६. विज्ञापन जुटाने के लिए आदमी की नियुक्ति नहीं करना | क्या मीडिया संस्थानों में संपादकीय विभाग से बड़े विज्ञापन विभाग और ओहदे नहीं हैं ?
इन दोनों आईने में कौन कहाँ है ? खुद तय कीजिये | समय के साथ स्वरूप बदला है इससे किसी को इंकार नहीं हो सकता पत्र फोटोकापी की तरह हूबहू निकालने वाले प्रकाशन कैसे इस बात का दावा करते हैं कि वे पत्रकार है | इसके विपरीत जो नियमित लिखते हैं, लिखना ही उनकी जीविका है उनकी समाज या सरकार को कितनी चिंता है? लिखने के विषय अनंत है और लेखक भी | ये वो लेखक समाज है जो सवाल उठाता है, पर किसी लालच से नहीं, भयादोहन के लिए तो बिलकुल नहीं | विडंबना है कि आज़ाद भारत में संसदीय लोकतंत्र और तमाम संवैधानिक आश्वासनों के बाद भी हम घूम-फिर कर एक बार फिर से आज उसी सवाल के साथ खड़े हैं कि प्रेस या आज के स्वरूप में मीडिया यदि सवाल नहीं पूछेगा, तो आखिर करेगा क्या? और लोकतांत्रिक व्यवस्था चूंकि जवाबदारी की बुनियाद पर ही खड़ी है, इसलिए शासन और सरकार यदि जवाब नहीं देगी, तो फिर करेगी क्या? दुःख यह है सरकार जवाब विज्ञापन के आर ओ [रिलीज आर्डर ] के रूप में आता है | यह आदत दोनों की सुधरना चाहिए | सरकार को अपने दर्शनीय यंत्रों की सफाई करा लेना चाहिए, जिससे उसे ठीक दिखे और मीडिया को अपनी मांगने की प्रवृत्ति छोड़ना चाहिए |
कर्मवीर के पुराने अंक कई बार कई जगह देखे पर जिन्दा कर्मवीर (Karmaveer) देखना है तो माधव राव सप्रे संग्रहालय भोपाल (Madhav Rao Sapre Museum Bhopal) में आइये, विजयदत्त श्रीधर से मिलिए | ये ही कर्मवीर है, इनकी वीरता विश्व में एकमात्र पत्रकारिता के तीर्थ का निर्माण है | कर्मवीर किसी से मांगते नहीं है, सरकार से भी नहीं |