दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर (Judge Justice S. Muralidhar) का पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) ने जस्टिस मुरलीधरन के तबादले की सिफारिश 12 फरवरी को ही की थी, जिसे अब मंजूर कर लिया गया है लेकिन तबादले की सिफारिश का विरोध करते हुए बार एसोसिएशन ने आग्रह किया था कि इस पर फिर से विचार किया जाए। एसोसिएशन का कहना है कि ऐसे तबादले से न्यायिक व्यवस्था में आम मुकदमेबाजी का विश्वास कम होता है और इससे हमारे संस्थान की गरिमा पर प्रभाव पड़ता है। ये वही मुरलीधरन हैं जिनके तबादले को लेकर कॉलेजियम पहले भी दो फाड़ हो चुका है।
President Ram Nath Kovind after consultation with Chief Justice of India Sharad Arvind Bobde, transfer Justice S. Muralidhar, Judge of Delhi High Court, as Judge of Punjab&Haryana High court, and direct him to assume charge of his office in Punjab&Haryana High Court.
— ANI (@ANI) February 26, 2020
मुरलीधर अपने बोल्ड फैसलों के लिए जाने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 2018ृ दिसंबर में ही मुरलीधर के तबादले का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद इस 2019 जनवरी में भी तबादले का प्रस्ताव रखा था लेकिन उनके नाम पर कॉलेजियम के जज दो फाड़ हो गए थे। पिछले साल जनवरी 2019 में इंडियन एक्सप्रेस में सीमा चिश्ती की छपी रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मुरलीधर के तबादले का प्रस्ताव रखा था। लेकिन कॉलेजियम के सदस्यों के बीच ही कथित तौर पर विरोध हो गया था। जिन सदस्यों ने विरोध किया था, उनमें जस्टिस एमबी लोकुर, जस्टिस एके सीकरी शामिल थे।
इस बार कॉलेजियम ने तबादले की सिफारिश की तो सरकार ने उसे मंजूरी दे दी। जस्टिस मुरलीधर के तबादले पर विवाद तब मचा जब मंजूरी उस दिन दी गई जब उन्होंने दिल्ली हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। मुरलीधर अपने कई फैसलों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश PAC के सदस्यों और 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया था।
इसके अलावा वो दिल्ली हाईकोर्ट की उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने पहली बार 2009 में नाज फाउंडेशन मामले में LGBTQ (समलैंगिकता) सेक्स को कानूनी जामा पहनाया था। दिल्ली हिंसा से जुड़ी सभी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें एक याचिकाकर्ता ने आरटीआई के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से मांग की थी कि कितने जजों ने अपनी संपत्ति घोषित की थी। यह मामला कोर्ट में पहुंचा और 2010 में याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया गया। ये अहम फैसला सुनाने वाली पीठ में भी मुरलीधर शामिल थे।
Delhi HC Bar Association says “majesty of our revered institution at stake” condemning the transfer of justice Muralidhar to P&H HC from Delhi HC. pic.twitter.com/nyZys8m595
— Apurva Vishwanath (@apurva_hv) February 19, 2020
दिल्ली हाईकोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, एस. मुरलीधर ने सितंबर 1984 में चेन्नई से कानून की प्रैक्टिस शुरू की थी। साल 1987 में वे बतौर वकील सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित हो गए। वे सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के वकील के रूप में सक्रिय थे और बाद में दो कार्यकाल के लिए इसके सदस्य भी बने। जज बनने से पहले मुरलीधर ने भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal gas tragedy) के पीड़ितों और नर्मदा बांध के विस्थापितों की भी लड़ाई लड़ी। उन्हें पीआईएल के कई मामलों में और दोषियों को मौत की सजा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था। मुरलीधर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और भारत निर्वाचन आयोग के वकील भी रह चुके हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में जज बनने से पहले दिसंबर 2002 से मई 2006 तक वे विधि आयोग के अंशकालिक सदस्य थे। मुरलीधर को 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी से सम्मानित किया गया था। वह अगस्त 2004 में लेक्सिसनेक्सिस बटरवर्थ प्रकाशित द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक `लॉ, पॉवर्टी एंड लीगल एड: द एक्सेस टू क्रिमिनल जस्टिस के लेखक हैं।”
Government issues notification effecting transfer of Justice S Muralidhar to Punjab and Haryana High Court
More on https://t.co/Fbzw6mR9Q5 and NDTV 24×7 pic.twitter.com/uwpAKgan0F
— NDTV (@ndtv) February 26, 2020