प्रतिदिन
किसान, किसानी, उच्च सदन और ये हंगामे
कृषि प्रधान देश भारत के किसानों के भले के लिए संसद को अखाडा बना दिया गया है | राज्यसभा जो गंभीर और उच्च सदन माना जाता है | वहां के नजारों की तुलना के लिए कोई और प्लेटफार्म नजर नहीं आ रहा |सदस्यों का हंगामा,निलम्बन से लेकर सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का घटनाक्रम इतनी तेजी से घट रहा है, यह विश्वास नहीं हो रहा कि यह विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र का उच्च सदन है | विषय किसानो को राहत को लेकर पारित विधेयक है, और सारे राजनीतिक दल इस बड़े वोट बैंक को अपने कब्जे में रखने के लिए संसदीय और असंसदीय आचरण में भेद नहीं कर पा रहे हैं |
जैसे राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने उपसभापति हरिवंश के खिलाफ आये विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कहा कि यह उचित प्रारूप में नहीं था। प्रश्न यह है कि राज्य सभा के माननीय इतनी छोटी सी प्रक्रिया भी कब सीखेंगे ?वहीं, रविवार को सदन में अमर्यादित आचरण को लेकर विपक्ष के ८ सदस्यों को सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया। सभापति नायडू कि इस टिप्पणी के भी गहरे अर्थ हैं | “एक दिन पहले उच्च सदन में कुछ विपक्षी सदस्यों का आचरण दुखद, अस्वीकार्य और निंदनीय है तथा सदस्यों को इस संबंध में आत्मचिंतन करना चाहिए”| यह टिप्पणी दूर तक जाती है,और सभी दलों द्वारा राज्यसभा में सदस्य भेजने की प्रक्रिया को भी सम्पूर्ण विचार के लिए चिन्तन क्षेत्र में खड़ा करती है |
नेता प्रतिपक्ष और ४६ सदस्य एक पत्र लिखते हैं जिसमें वे रविवार को कृषि संबंधी २ विधेयकों को पारित किए जाने के दौरान संसदीय प्रक्रियाओं का पालन नहीं करने की बात कहते हैं ।सभापति नायडू बीते कल की कार्यवाही पर गौर कर निर्णय देते हैं “उपसभापति पर लगाए गए आरोप सही नहीं हैं “|सभापति यह भी कहते हैं कि प्रस्ताव निर्धारित प्रारूप में भी नहीं है और इसके लिए जरूरी १४ दिनों के नोटिस का भी पालन नहीं किया गया है। इस सदन में कुछ माननीय दूसरी और तीसरी बार शिरकत कर रहे हैं| उनसे ऐसी चूक किस बार का संकेत करती है ?
टी वी पर दिखाए गये दृश्यों में साफ दिखता है कि रविवार को हुए हंगामे में सदस्यों ने कोविड-१९ संबंधी सामाजिक दूरी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन तो किया ही इसके अलावा उन्होंने उपसभापति हरिवंश के साथ बदसलूकी की। माइक उखाड़े गए और नियमों की पुस्तिका फेंकी गयी। उप सभापति साथ अमर्यादित आचरण किया गया। आज सभापति नायडू ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन को ‘नेम’ करते हुए उन्हें सदन से बाहर जाने को कहा।इसके बाद भी ब्रायन सदन में ही रहे। नियम यह है कि आसंदी द्वारा किसी सदस्य को ‘नेम’ किये जाने पर उसे सदन से बाहर जाना होता है। प्रश्न यह है कि ये घटना संसद खासकर राज्यसभा की प्रतिष्ठा को भी धूमिल करने वाली हैं , जिसमें सदस्य मेज पर खड़े हो गए और सदन में नृत्य तक किया। इन दृश्यों में साफ़ दिखता है अगर समय पर मार्शल को नहीं बुलाया गया होता तो उपसभापति के साथ क्या बर्ताव हो जाता अंदाज़ ही डरा देता है। क्या निलंबित किए गए सदस्यों जिनमें तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन और डोला सेन, कांगेस के राजीव सातव, सैयद नजीर हुसैन और रिपुन बोरा, आप के संजय सिंह, माकपा के केके रागेश और इलामारम करीम शामिल हैं, को अपने इन आचरणों पर विचार नहीं करना चाहिए ?
दूसरी तरफ किसान संगठनों और विपक्ष के भारी विरोध पर केंद्र सरकार ने रविवार को कृषि सुधार से जुड़े दो बिल राज्यसभा में पारित करा लिये हैं |उन पर यह सोचना नहीं चाहिये कि। उच्च सदन में भारी विरोध का सामना सरकार को क्यों करना पड़ा? क्यों उसकी सरकार से एक मंत्री ने इस्तीफा दिया ? आखिरकार कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक-२०२० और कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत और कृषि सेवा करार विधेयक-२०२० का इतना विरोध क्यों है ?सरकार को यह आशंका फौरन साफ़ करना चाहिए कि “किसानों को पूंजीपतियों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ा जा रहा है? यह भी बताना चाहिए कि यदि बड़ी कंपनियां एमएसपी पर फसलों की खरीद नहीं करती हैं तो उसकी गारंटी कौन देगा? किसानों को अपने फसल के भंडारण की सुविधा, बिक्री में आजादी और बिचौलियों से मुक्ति कब मिलेगी।
कुछ सवाल इन बिलों को लेकर और भी हैं जो किसानों में आशंकाएं पैदा कर रहे हैं उन्हें दूर करने की गंभीर कोशिश क्यों नहीं हुई। किसान आशंकित हैं कि राज्य के गेहूं-धान का बड़ा हिस्सा खरीदने वाला एफ सी आई अब खरीद नहीं करेगा। ऐसे में राज्य भी एफसीआई से मिलने वाले छह प्रतिशत कमीशन से वंचित हो सकता है। आशंका है कि मंडियां खत्म होने से हजारों की संख्या में कमीशन एजेंटों , लाखों मंडी श्रमिकों और लाखों भूमिहीन खेत मजदूरों के सामने जीविका का संकट पैदा हो जायेगा। सवाल यह भी है कि राज्य के दूसरे जनपदों में भी फसल न बेच पाने वाले छोटे किसान दूसरे राज्यों में कैसे अपनी उपज बेच पायेंगे? कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग से किसान अपने ही खेतों में श्रमिक बन जायेगा साथ ही आवश्यक वस्तु संशोधन बिल के जरिये जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा, जो किसान व उपभोक्ता के हित में नहीं है।
किसान, किसानी, उच्च सदन और ये हंगामे
श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com