प्रतिदिन :
बाइडेन भारत से रिश्ते यूँ निभाएंगे
अमेरिका में २७० वोट प्राप्त करने वाला राष्ट्रपति बन जाता है | जो अब बाइडेन के लिए सहज होता जा रहा है | अब सवाल यह है कि यदि बाइडेन (Joe Biden) जीत जाते हैं तो अमेरिकी-भारत संबंधों की रुपरेखा क्या होगी ? जरा उस काल को याद कीजिये जब सीनेट की विदेशी संबंध समिति के सभापति रहने के कारण बाइडेन वाशिंगटन के नई दिल्ली से रिश्तों की बिसात का मंजा हुआ खिलाड़ी के रूप में दिखे थे | उसी दौरान २००८ में अमेरिका-भारत नागरिक प्रयोग परमाणु समझौता पारित हुआ |बाइडेन उस क़ानून (नौसेना जल यान हस्तांतरण अधिनियम२००५ ) के भी सह-प्रायोजक थे जिसके अंतर्गत भारत ने अमेरिका में निर्मित पहला युद्धपोत हासिल किया था|
याद कीजिये, सीनेट की हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी अर्थात सदन की विदेशी मामलों की समिति की अक्टूबर, २०१९ में दक्षिण एशिया में मानवाधिकारों पर हुई सुनवाई में मोदी सरकार द्वारा कश्मीर में धारा ३७० समाप्त करने और उसके बाद संचार सेवा ठप कर दिए जाने के प्रति ट्रंप प्रशासन के ढुलमुल रवैये पर डेमोक्रेट सदस्यों ने एकजुट एतराज़ किया था| जवाबी बयान में रिपब्लिकन सदस्यों ने मानवाधिकारों के बारे में वाशिंगटन के ‘उच्च मानकों’ का विरोध करके आलोचना की धार भोथरी करने का प्रयास किया|
आगे देखें तो यदि डेमोक्रेट नियंत्रित अमेरिकी कांग्रेस को लगता रहा है कि साझा मूल्यों को और कमजोर करते हुए अमेरिकी-भारत संबंधों का राजनीतिकरण हो गया है तो उनकी आलोचनाओं का प्रयोग करके व्यवहार में परिवर्तन लाने की शुरूआत भी की जा सकती है|
‘बाइडेन विदेश नीति को सुधारने की कोशिश कर सकते है, क्योंकि टिप्पणीकार उनके ”संकीर्ण वाशिंगटन सहमति की ओर लौटने जिसने हमारे देश एवं विश्व को विफल किया” के विरूद्ध चेता रहे हैं| हालांकि, यह बाइडेन के आरंभिक वर्षों में भले न हो क्योंकि आवश्यक घरेलू एजेंडे को निपटाना उनकी प्राथमिकता होगी, मगर प्रगतिशीलों की ज़ाहिर सोच के मद्देनज़र ऐसी भूमिका की कल्पना तो भलीभांति की जा सकती है| वैसे बाइडेन ”अतीतजीवी” हैं, क्योंकि उनकी बहाली उन्मुख विदेश नीति के वायदे के कारण इस साल कांग्रेस की प्राइमरी में डेमोक्रेट प्रतिष्ठान के लोग हार कर बाहर हो चुके हैं|
भारत-अमेरिकी संबंधों में राजदूतों को स्वीकृति देने में कांग्रेस के प्राधिकार लागू करना अथवा हथियारों के सौदों की स्वीकृति के लिए नागरिक अधिकारों संबंधी मामलों में दिल्ली पर दबाव डालने की बाइडेन प्रशासन की प्रतिबद्धता इसमें शामिल हो सकती है| तर्क यह भी हो सकता है कि ऐसे रूख की संभावना नई दिल्ली एवं वाशिंगटन के बीच अनेक रणनीतिक गठजोड़ों को ग्रहण लगाने की दीर्घगामी चिंता को जन्म दे सकती है| फिर भी बहुत कुछ डेमोक्रेटों द्वारा मोदी व्यवस्था के आकार लेते चरित्रांकन पर भी निर्भर करेगा क्योंकि कुछ प्रगतिशील सांसद उस पर पहले से ही ‘हिंसक हिंदू राष्ट्रवाद एवं मुसलमानों के प्रति घृणाजनित अपराधों’ को फैलाने का आरोप लगा रहे हैं|
इसके साथ ही बाइडेन के ऐसे स्वरों से पहले ही काफी प्रभावित होने का संकेत हाल में उनके प्रचार अभियान के ‘मुसलमान-अमेरिकी समुदायों के लिए एजेंडे’ में चीन में उईगरों की धरपकड़ तथा म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय पर अत्याचार के साथ कश्मीर के हालात का ज़िक्र साफ़-साफ़ करने से मिल रहा है|
याद कीजये भारत के स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बाइडेन ने कहा, ‘’ भारत एवं अमेरिका के बीच” विशेष रिश्ता है जिसे मैंने अनेक वर्ष तक गहराते देखा है|” अभी तो यह लगता है कि, ‘’बाइडेन लंबे समय से बने अपने इस भरोसे पर अमल करेंगे कि भारत एवं अमेरिका स्वाभाविक भागीदार हैं एवं बाइडेन प्रशासन अमेरिकी-भारत संबंध मज़बूत करने की प्रवृत्ति जारी रखने पर ख़ास ध्यान देगा|”
बाइडेन भारत से रिश्ते यूँ निभाएंगे
श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com