- अभिमत

देश की महती जरूरत और चिंतातुर समूह

प्रतिदिन :
देश की महती जरूरत और चिंतातुर समूह

देश के बारे में चिंता करने वाले समूह स्थान- स्थान पर मिल रहे हैं, सबकी चिंता भारत का भविष्य है |चिंता होना स्वाभाविक है, पिछले दशकों में देश में  भ्रष्टाचार, परिवारवाद और सत्ता के लालच का बीज बोये गये थे वे अब बड़े होकर अमरबेल की तरह हो गये है,  तो दूसरी ओर जो एकत्रीकरण हुआ और  हो रहा है वो भी बहुत शुभ नहीं दिखाई दे रहा है  |
स्वस्थ लोकतंत्र में वैकल्पिक विचारों का होना अनिवार्य है, जरूरत पड़ने पर उन पर संसद, मीडिया और सड़कों तक पर संवाद होना चाहिए। आम सहमति वाला ‘स्वर्णिम मध्य मार्ग’ बनना केवल खुले संवाद के जरिए संभव है | इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि मानवीय विचारों और वजूद में अनेकता एवं भिन्नता भावी है,  आज ऐसा कोई नेतृत्व परिलक्षित नहीं हो रहा जिसमें सबकी साझेदारी और सद्भाव सम्मिलित हो |
थोडा इतिहास – आज़ादी के बाद के कुछ दशकों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) एकमात्र मुख्य राजनीतिक दल था,  था | उस समय केंद्र सरकार में  तथा कांग्रेस में बड़े नेता नेताओं जिनमें जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आज़ाद, वल्लभ भाई पटेल, सी. राजगोपालाचारी, वाई बी चव्हाण जैसे नाम थे। ऐसे ही राज्यों में गोविन्द वल्लभ पंत, डॉ. बीसी रॉय, के. कामराज, एन. संजीवा रेड्डी और बीजू पटनायक जैसी हस्तियां थीं। तब कोई महत्वपूर्ण विपक्षी दल नहीं था, नेहरू ही करिश्माई नेता थे, वे परम्परागत लोकतांत्रिक संसदीय व्यवहार को मानने के हामी थे। रजवाड़ों का विलय कर प्रजातांत्रिक बनाना, शिक्षा और स्वास्थ्य को तरजीह देते हुए देश में एम्स (AIIMS), आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) का निर्माण, परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना और इस पर ध्यान देना, संविधान अंगीकार करना, पंचवर्षीय योजनाएं बनाना इत्यादि काम किए |

इसी परिदृश्य में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) का उदय हुआ जो एक लोकप्रिय और करिश्माई व्यक्तित्व होने के बावजूद कहीं असुरक्षा की भावना से ग्रस्त थी। इसी कारण वे ‘किचन कैबिनेट’ बारबार  बदलने के प्रयोग करती थी परिणाम कांग्रेस दोफाड़ हो गई और सिंडीकेट और इसके सदस्य निरर्थक हो गये  । उन्होंने ने ही राज्यों में कमजोर मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष थोपने वाली परंपरा की शुरुआत की । कांग्रेस पार्टी उस समय तक भी काडर रहित आंदोलन की तरह थी जबकि भारतीय जनसंघ और वामदल काडर-आधारित राजनीतिक दल थे। इस तरह का तंत्र होने के बावजूद कांग्रेस राज्यों और केंद्र में विजय पाने को पूरी तरह प्रधानमंत्री के करिश्मे पर निर्भर होकर रह गई। इमरजेंसी और उसमे संजय गांधी का कामकाज का तरीका अधिनायकवादी हो गया। सरकार एवं पार्टी मशीनरी पर एकाधिकार वाली पकड़ बना दी गई। मुख्यमंत्री, पार्टी प्रदेशाध्यक्ष और काबीना मंत्रियों की हैसियत “ शून्य” कर दी गई।

इसी दौरान पहले जनसंघ और भाजपा लगातार बढ़ने लगी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की मदद से यह शक्ति बनकर उभरी। भाजपा के पास काडर होने के अलावा अपनी एक विचारधारा भी थी। पार्टी को इस  सबका फायदा मिला और वह वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में मिलीजुली सरकार बनाने में सफल रही। जब भी भाजपा की सरकार बनी, उसने अपने आधार को सुदृढ़ किया और प्रशासन, मीडिया और न्यायपालिका पर अपनी पकड़ मजबूत की। उसने व्यापारिक एवं कॉर्पोरेट जगत से अच्छे संबंध कायम किए, जिनका लाभ उसने आगे चलकर उठाया ।

दूसरी ओर कांग्रेस अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत बनाने में विफल रही, चुनावी जीत के लिए वह पूरी तरह “गाँधी परिवार” पर निर्भर होकर रह गई। दूसरी ओर भाजपा-आरएसएस ने काडर, विचारधारा के साथ चुनावी मशीनरी  पर कब्जे के आरोपों के लांछन के साथ २०१४ और २०१९ के आम चुनावों में के साथ राज्य विधानसभाओं में जीत हासिल की।

मौजूदा परिदृश्य  में स्वतंत्र चेता व्यक्तित्व इस बात से परेशान नहीं है कि कोई एक दल सत्ता में है इसके विपरीत चिंता का कारण यह है कि देश में सशक्त विपक्ष उपलब्ध नहीं है, जिसके अभाव में सत्तापक्ष के अनेकानेक निर्णय जनता को भुगतने पड़े हैं। कुछ की ध्वनि से राष्ट्र हित तो कुछ की ध्वनि कुछ और सुर छेड़ रही है | बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक-जो अक्सर मौन रहते हैं-उन्हें एक वैकल्पिक विचारधारा जरूरत महसूस हो रही है, वे कुछ अलग सुनना चाहते हैं, सब एक स्वतंत्र स्त्री-पुरुष का जीवन जीना चाहते हैं, ऐसी जिंदगी जो शांतिपूर्ण माहौल में व्यतीत हो, न कि डर से भरी।
देश की इस महती जरूरत के लिए लोग जुट रहे हैं, माहौल लगभग वैसा ही है जैसा आपातकाल के दौर में था | तब तरुणाई के साथ सारे देश को जगाते जय प्रकाश थे | गाँधी बिनोबा लोहिया आदर्श थे, संघर्ष की मशाल लेकर चलने वाले अटल बिहारी आडवाणी की जोड़ी थी | आज आडवाणी , डॉ मुरलीमनोहर  जोशी नेपथ्य में है |देश के भविष्य के लिए किसी राजनीतिक दल के पास ठोस रूपरेखा नहीं है, साथ ही यह तय है कि जो कोई भी नयी विचारधारा प्रस्तुत करेगा, उसकी खातिर कठिन संघर्ष करना होगा, लोगों को साथ जोड़ने के लिए आंदोलन करने पड़ेंगे।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *