- अभिमत

आर्थिक बेईमान  सोशल मीडिया पर कानून बने

प्रतिदिन :
आर्थिक बेईमान  सोशल मीडिया पर कानून बने

डायनासोर के आकार के महाकाय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का आर्थिक बेईमानी के किस्से आम होने लगे हैं | विभिन्न देशों की स्थानीय खबर कंपनियों से हासिल खबरों के कारोबार के जरिये अरबों रुपये कमाने और उनकी खबरों का भुगतान न करने के खिलाफ पूरी दुनिया में आवाज उठने लगी है।
फ्रांस के बाद अब दमदार पहल में  आस्ट्रेलिया भी शामिल हो गया है। दुनिया के बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गूगल व फेसबुक पर आरोप है कि दुनिया के विभिन्न देशों की खबरों को इन्होंने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया है। वे इन सूचनाओं और डेटा को व्यापारिक घरानों को बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। जिन भी देशों में इसके खिलाफ प्रतिरोध सामने आया, वहां गूगल व फेसबुक ने अहसान जताया कि हम आपके नागरिकों को मुफ्त सेवाएं दे रहे हैं।
साथ ही इन बड़ी कम्पनियों ने धमकाया कि यदि हमें लाभांश में हिस्सेदारी देने को बाध्य किया गया तो हम मुफ्त सेवा बंद कर देंगे। इसके  प्रतिरोध की पहल फ्रांस से हुई, जिसमें फ्रांसीसी मीडिया घरानों की खबरें लेने पर कॉपीराइट कानून लागू कर दिया गया, जिसके बाद गूगल ने फ्रांसीसी मीडिया कंपनियों को खबरों का भुगतान करना शुरू कर दिया। लेकिन शेष विश्व में जागरूकता के अभाव में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की मनमानी जारी है। आस्ट्रेलिया ने इस मुद्दे पर तीखे तेवर दिखाये हैं। यहां तक कि उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करके गूगल और फेसबुक पर शिकंजा कसने में सहयोग मांगा है। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने ऐसे ही संपर्क ब्रिटेन-कनाडा के राष्ट्राध्यक्षों से भी किया।

आस्ट्रेलिया तो  इस मनमानी के खिलाफ जल्द ही अपनी संसद में समझौता कानून बनायेगा ताकि स्वदेशी खबरों के दुरुपयोग पर नियंत्रण किया जा सके, जिसके अंतर्गत समाचार सामग्री की परिभाषा तय करके मसौदा तैयार किया जायेगा। जिससे ये कंपनियां मुफ्त में खबरें लेकर मनमाना मुनाफा न कमा सकें। यूं तो समाचार घराने अपनी खबरों को अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए इंटरनेट के माध्यमों का उपयोग करते हैं। जिस पर ये कंपनियां न केवल कॉरपोरेट घरानों को डेटा बेचती हैं, बल्कि इन पर विज्ञापन थोपकर दोहरा मुनाफा कमाती हैं।
वास्तव में सूचना का कारोबार करने वाली ये कंपनियां जहां एक ओर खबरों के जरिये मोटा मुनाफा कमा रही हैं, वहीं दुनिया के देशों के लोगों के दिमागों पर भी राज कर रही हैं। लोग इन माध्यमों पर जो निजी सूचनाएं पोस्ट करते हैं, कंपनियां उन्हें कॉरपोरेट घरानों के कारोबार दिशा तय करने को बेचकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। इतना ही नहीं, इन सूचनाओं और रुझानों की मदद से कॉरपोरेट के उत्पादों के लिए अनुकूल वातावरण भी तैयार करती हैं। कहने को इन कंपनियों का दावा है कि हम विभिन्न देशों के लिए मुफ्त मंच उपलब्ध करा रहे हैं, लेकिन दरअसल लोगों को इस मुफ्त की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। सही मायनों में लोग इन कंपनियों की मनमानी के लिए उत्पाद बन गये हैं।
इन महाकाय सोशल मीडिया प्लेट फॉर्मों ने अब सरकारों को हिलाने और ‍विभिन्न आंदोलनों को आक्रामक बनाने का खेल भी शुरू कर दिया है। भारत में हालिया टूलकिट विवाद इसकी ताजा कड़ी है।भारत में चिंतक श्री के एन  गोविन्दाचार्य ने इस विषय पर पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा भी किया है | सरकार को इस पर फ़ौरन कानून बना देना चाहिए |
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *