प्रतिदिन :
जासूसी : भारत का नाम तो खराब हुआ है
पिछले दो सप्ताह से भारतीय संसद के दोनों सदनों का कामकाज जिस कारण ठप्प है उसके मूल में इजरायली कंपनी एनएसओ द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर पेगासस है | इसे वहां की सरकार ने ‘युद्ध के हथियार’ के रूप में घोषित कर रखा है। नियम है कि‘युद्ध का हथियार’ घोषित उत्पाद की बिक्री सरकारी नियंत्रण में आ जाती है। एनएसओ के लिए भी जरूरी है कि वह पेगासस इजरायल सरकार की अनुमति से ही किसी ऐसी सरकार को बेचे, जिसका मनवाधिकारों का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा हो। इसे किसी गैर-सरकारी सन्गठन को नहीं बेचा जा सकता |
ऐसा भी नहीं कि भारत में पहली बार अपने विरोधियों की जासूसी कोई सरकार करा रही थी। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार इस आरोप पर गिर गई थी कि खुफिया एजेंसी के लोग राजीव गांधी के घर की निगरानी कर रहे थे। सभी जानते हैं कि एक निश्चित प्रक्रिया के तहत सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेकर किसी के टेलीफोन सुनना एक वैध कार्रवाई है, फिर क्या वजह है कि इस बार इतना शोर-शराबा हो रहा है? इसके दो परेशान करने वाले कारण हैं। एक तो यह सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकारों को बेचा जा सकता है और दूसरा, शिकार हुए लोगों की जो सूची एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जारी की है, वह बड़ी विविधतापूर्ण है।
इस सूची में राहुल गांधी या ममता बनर्जी के करीबियों के नाम तो हैं ही, इसमें सत्ता पार्टी के मंत्री का नाम भी है। पत्रकारों और ऐक्टिविस्टों से होती हुई आपकी निगाहें एक नाम पर अटक जाती हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय की एक कनिष्ठ महिलाकर्मी का है। न सिर्फ उसका, बल्कि उसके पति समेत कई रिश्तेदारों के टेलीफोन नंबर इस फेहरिस्त में हैं। यह फोन की निगरानी और महिलाकर्मी की शिकायत का समय एक ही है, इसलिए स्वाभाविक रूप से कुछ गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं।
पेगासस अपनी श्रेणी में अब तक का सबसे घातक सॉफ्टवेयर है। इसे किसी भी मोबाइल फोन, कंप्यूटर या लैपटॉप में बिना उससे शारीरिक संपर्क किए डाला जा सकता है। यहां तक कि काफी हद तक सुरक्षित समझी जाने वाली एपल की मशीनें भी इसके निशाने से नहीं बच सकतीं। केवल एक निर्दोष सा संदेश पढे़ जाते ही यह सॉफ्टवेयर किसी भी उपकरण में ऐसे वायरस का प्रवेश करा देगा, जिससे उस उपकरण की सारी गतिविधियों तक उसके हैंडलर की पहुंच मुमकिन हो जाएगी।
नीतिगत कारणों से भारत में पेगासस किसी गैर-सरकारी संस्था के पास नहीं हो सकता, इसलिए और जरूरी है कि सरकार स्पष्ट करे कि उसने यह सॉफ्टवेयर खरीदा था या नहीं? मात्र इतना बयान देने से कि उसकी किसी एजेंसी ने फोन जासूसी नहीं की है, काम नहीं चलेगा। वैसे भी, यह मानवाधिकारों से जुड़ा मामला है और दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भारत का रिकॉर्ड खराब हुआ है।