प्रतिदिन:
अपने को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने वाले भारत की संसद में बड़ी अजीब परम्परा बनती जा रही है | सरकार में चाहे कोई भी प्रतिपक्ष संसद नहीं चलने देता | यही बीमारी यूपीए सरकार में थी, यही अब एन डी ए सरकार में है |पेगासस जासूसी मामला और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर पिछले कई दिनों से संसद में चल रहे गतिरोध के बीच अब तक संसद की कार्यवाही कुल निर्धारित१०७ घंटे में से सिर्फ१८ घंटे ही चल पाई है। इस व्यवधान से करदाताओं के१३३ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सूत्रों ने बताया कि १९ जुलाई से आरंभ हुए संसद के मानसून सत्र में अब तक करीब ८९ घंटे हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं। मौजूदा सत्र १३ अगस्त तक चलना है।
राज्यसभा की कार्यवाही तय समय के मुकाबले सिर्फ करीब २१ प्रतिशत ही चल सकी तो लोकसभा की कार्यवाही तय समय का कुछ ही प्रतिशत ही चल पाई। लोकसभा को ५४ घंटों में से सात घंटे से भी कम चलने दिया गया। राज्यसभा को ५३ घंटों की अवधि में से११ घंटे ही चलने दिया गया है। कुल मिलाकर संसद अब तक १०७ घंटे के निर्धारित समय में से सिर्फ१८ घंटे ही चल पाई है।’’ इससेसरकारी खजाने को१३३ करोड़ रुपये की क्षति पहुंची है।इस नुकसान की पूर्ति कौन करेगा ?
अभी तक संसद में नाम मात्र का ही काम हुआ है। सरकार ने कुछेक बहुत जरूरी बिल बिना किसी बहस के पारित करवा लिए गए हैं। संसद में जो भी थोड़ा-बहुत काम हो रहा है, वह उसमें दूसरे जरूरी विधेयक भी इसी तरह से पास करवा सकती है। इसलिए संसद के कामकाज में बाधा डालकर विपक्ष वाही सब लौटा रहा है जो उसके पिछले अनुभव हैं | अच्छा होता अगर वह संसद का इस्तेमाल सरकार से तीखे सवाल करने के लिए होता ।
जैसे कोरोना महामारी की दूसरी लहर की अव्यवस्था। लोगों के मन में उस दौर की यादें ताजा हैं। इसीलिए जब आरजेडी सांसद मनोज झा ने सदन में दूसरी लहर में हुई मौतों पर देश से माफी मांगते हुए सबके लिए स्वास्थ्य के अधिकार की मांग की तो उसकी काफी चर्चा हुई। ऐसा ही एक मुद्दा वैक्सीन का भी है। टीकाकरण की रफ्तार बहुत धीमी हो गई है। इसकी गति बढ़ाने के लिए क्या हो रहा है और यह काम कब तक पूरा होगा, विपक्ष को सरकार से इसका जवाब मांगना चाहिए।
एक और समस्या जवाबदेही की भी है |संसद में पूछे गए सवालों के जवाब में स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने कोवैक्सीन और कोविशील्ड के प्रॉडक्शन के अलग-अलग आंकड़े बताए। विपक्ष को इस पर सरकार को घेरना चाहिए था। ऑक्सिजन की कमी से हुई मौतों पर पूछे गए प्रश्न पर जो जवाब दिया, उसे लेकर देशभर से नाराजगी सामने आई। आखिरकार मंत्रालय को कहना पड़ा कि वह इस बारे में ठीक से आंकड़े जुटाएगा।
देश की खराब अर्थव्यवस्था का मुद्दा भी है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने देश की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान ३ प्रतिशत घटा दिया। इसका मतलब यह है कि एक तरफ जहां कोरोना की दूसरी लहर ने आर्थिक रिकवरी को धीमा कर दिया, वहीं दूसरी तरफ सरकार के दिए गए आर्थिक पैकेज से उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले। पेट्रोल, डीजल पर भारी टैक्स भी एक बड़ा मुद्दा है, जो हर इंसान की जिंदगी पर असर डाल रहा है। इस तरह की रिपोर्ट्स आ चुकी हैं कि पेट्रोलियम गुड्स की महंगाई के कारण लोग ग्रॉसरी बिल में कटौती करने को मजबूर हुए हैं।
कृषि कानूनों का भी मामला है, जिस पर किसान आंदोलनरत हैं। पेगासस भी एक मुद्दा है, लेकिन इसे लेकर अदालत में याचिकाएं दाखिल की गई हैं। विपक्ष को देखना चाहिए कि वहां इसे लेकर क्या होता है। उसे समझना होगा कि राज्यों में हुए पिछले दौर के चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन न कर पाने, महामारी और आर्थिक मुद्दों को लेकर सरकार दबाव में है। संसद में सवाल पूछकर उसे केंद्र पर दबाव और बढ़ाना चाहिए। संसद के कामकाज में बाधा डालने से उसके हाथ कुछ नहीं लगेगा, उल्टा सरकार इससे खुश होगी।
श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
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