प्रतिदिन:
उछलता शेयर बाज़ार धडाम भी हो सकता है
भारतीय शेयर बाजार के सूचकांक की ऊंचाई से निवेशक काफी ज्यादा खुश हैं। करीब ३० शेयरों ने शत-प्रतिशत रिटर्न दिया है। निवेशकों के उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चालू वित्त वर्ष के शुरुआती दो महीनों में ही ४४.७ लाख खुदरा निवेशकों के खाते खुले हैं। तो क्या रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा शेयर बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था की उम्मीद है?
शेयर बाजार के गणित को समझना होगा। इसमें किसी कंपनी के शेयर दो वजहों से चढ़ते-उतरते हैं। पहली, उस कंपनी की मौजूदा दशा क्या है? और दूसरी, आने वाले समय में वह कैसा प्रदर्शन करेगी? यह तो तय है कि देश की अर्थव्यवस्था अभी २०१९ के स्तर पर भी नहीं पहुंच सकी है। इसलिए जाहिर तौर पर लोग सूचीबद्ध कंपनियों के आगे बेहतर करने की उम्मीद में ही निवेश कर रहे हैं। अभी निवेशक अधिकांशत: टेक्नोलॉजी, ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग जैसी कंपनियों में निवेश कर रहे हैं। मांग में बदलाव आया है और बगल की दुकान के बदले ऑनलाइन खरीदारी ज्यादा होने लगी है| इसलिए इन कंपनियों पर निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। इसी के कारण कुछ कंपनियों के आईपीओ आश्चर्यजनक रूप से काफी ज्यादा पर खुले। अमेजन, फेसबुक जैसी कंपनियों के इतिहास ने भी निवेशकों को इन जैसी कंपनियों पर पैसा लगाने को प्रोत्साहित किया।
एक बड़ा प्रश्न है कि जब अर्थव्यवस्था की हालत खास्ता हो, तब निवेशकों की चांदी क्यों है? दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं कोरोना से लड़ रही हैं, इसलिए तमाम देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपने-अपने यहां लिक्विडिटी बढ़ाई है। व्यापारिक-वर्ग के हाथों में पैसे आने से वे निवेश की सोचने लगे हैं। चूंकि रियल एस्टेट में ज्यादा रिटर्न नहीं है, और बैंकों में भी ब्याज दरें कम कर दी गई हैं, इसलिए अच्छे रिटर्न की चाहत में शेयर बाजार उनके लिए सबसे मुफीद बन गए हैं। भारतीय शेयर बाजार इसलिए भी निवेशकों को लुभा रहे हैं, क्योंकि भारत एक बड़ा बाजार है। नतीजतन, यहां उन कंपनियों के दाम भी चढ़ने लगे हैं, जिनका भविष्य बहुत ज्यादा साफ नहीं दिखता। यही चिंता की बात है |
सब जानते हैं शेयर बाजार में उन कंपनियों के निवेशक मुनाफे में रहते हैं, जो भविष्य में अच्छा रिटर्न देने का भरोसा देती हैं, लेकिन उन कंपनियों के निवेशकों को नुकसान हो सकता है, जिनके बदहाल होने की आशंका अधिक है। दिक्कत यह है कि किसी कंपनी का भविष्य पढ़ पाना आसान नहीं होता। कुछ कंपनियों का तो ठीक-ठीक आकलन किया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर शेयरों की खरीद-बिक्री काफी कुछ अनुमान पर आधारित होती है। इसमें जो निवेशक बाजार को पढ़ सका, वह तो मुनाफे में रहेगा, लेकिन जो ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा सकता, उसे घाटा हो सकता है।
वर्तमान तेजी के कारण निवेश के असली क्षेत्र पिछड़ सकते हैं। ये वे क्षेत्र हैं, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की बुनियाद होते हैं। इनके रिटर्न तुलनात्मक रूप से कम होते हैं। इसीलिए लोग अभी इनमें निवेश करने से बच रहे हैं। इसका पैसा तुरंत लाभ देने वाली कंपनियों के खाते में जा रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है। जैसे, यदि सुनहरे भविष्य को देखते हुए टेक्नोलॉजी कंपनियों में हम ज्यादा निवेश करते हैं, तो हमें बेशक रिटर्न ज्यादा मिले, लेकिन इससे रोजगार सृजन का परिदृश्य प्रभावित हो सकता है, यानी खतरा दोतरफा है- वास्तविक निवेश न होने से अर्थव्यवस्था कमजोर होगी और दूसरा, रोजगार प्रभावित होगा।
वैसे शेयर बाजार में कॉरपोरेट सेक्टर का प्रभुत्व है। ऐसे उद्योगपतियों की संख्या पांच से दस लाख के करीब है। मगर देश की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी महज ०.१ फीसदी है। साफ है, शेयर बाजार के चढ़ने से ज्यादा फायदा इसी वर्ग को होगा। यही अब तक होता रहा है| दीर्घावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। नीति-नियंताओं को इसी पर ध्यान देना चाहिए।