प्रतिदिन :
प्रधान मंत्री की यात्रा और आपका विवेक
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका से लौट आये | उनके इस प्रवास को लेकर देश में एक विरोधाभासी माहौल लोग बना रहे हैं | कोई मोदी के स्वागत की लम्बी चौड़ी कहानी बखान रहा है तो कोई इससे विपरीत बात को हवा दे रहा है | अमेरिका के दो अख़बार भी चर्चा में है एक पर मोदी जी का बड़ा चित्र छपा है, पर उसमे सितम्बर महीने की स्पेलिंग गलत है | दूसरा अमेरिकी अखबार लॉस एंजिलिस टाइम्स है जिसका शीर्षक था ‘कमला हैरिस ने एतिहासिक मुलाक़ात में भारत के मोदी को मानवाधिकार पर हल्का दबाव महसूस कराया।’…. इसे लेकर देश में जो कुछ चल रहा है उससे दो खेमे साफ नजर आ रहे हैं |
वैसे भी देश के प्रधानमंत्रियो की अलग- अलग तासीर रही है | जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी वंश-परंपरा के प्रतीक थे। नरसिंह राव और मनमोहन सिंह संयोगों की उपज थे। मोरारजी देसाई और विश्वनाथ प्रताप सिंह को जन-प्रतिक्रिया के ज्वार ने प्रधानमंत्री की कुरसी पर बैठाया, पर वे लोगों की उम्मीदों की रक्षा न कर सके। अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वरिष्ठता के कारण प्रधानमन्त्री पद तक पहुंचे थे, तो शेष बचे लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा, चरण सिंह, चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल तात्कालिक समीकरणों की देन थे। नरेंद्र मोदी के बारे में उनके समर्थकों का प्रचार है कि उन्होंने बिना किसी गॉडफादर के सफर तय किया |हकीकत सब जानते हैं, खासतौर पर मार्ग दर्शक मंडल के सदस्य |
ख़ैर ! संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री का संबोधन इस यात्रा की उपलब्धि रही। मोदी ने महासभा की ७६ वीं आम सभा में अपने नपे-तुले भाषण में लोकतंत्र, आतंकवाद, तालिबान की वापसी तथा वैक्सीन से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की। जहां इससे पहले पाक प्रधानमंत्री ने भारत का नाम लेकर हमला बोला था, वहीं मोदी ने पाक का नाम लिये बिना अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि प्रतिगामी सोच के साथ जो देश आतंकवाद का इस्तेमाल राजनीतिक उपकरण की तरह कर रहे हैं, ये उनके लिये भी खतरा है। जरूरी है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने के लिये नहीं हो। प्रधानमंत्री ने विश्व बिरादरी से अफगान महिलाओं, बच्चों व अल्पसंख्यकों की मदद की अपील की।
प्रधानमंत्री ने चेताया कि कोई देश अफगानिस्तान के हालात का उपयोग अपने स्वार्थ के लिये न कर सके। अफगानिस्तान की जमीन को भारत विरोधी चरमपंथी समूहों के लिये इस्तेमाल न होने दिया जाये। प्रधानमंत्री ने चीन के नाम का उल्लेख तो नहीं किया, लेकिन विस्तारवाद और कब्जे की नीति पर सवाल जरूर खड़े किये। जिसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलअंदाजी से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं भाषण में जलवायु परिवर्तन, आधुनिक तकनीक, कोरोना वैक्सीन और गरीब मुल्कों की मदद, समुद्र की स्वच्छता आदि मुद्दे भी शामिल रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की विसंगतियों को लेकर भी सवाल खड़े किये। इस दौरान इमरान खान के भारत विरोधी भाषण के बाद राइट टू रिप्लाई के तहत भारत के करारे जवाब की भी चर्चा रही। प्रधानमंत्री की जो बाइडेन से अच्छे माहौल में हुई बातचीत में दोनों देशों के सामरिक महत्व के मुद्दों व सहयोग में साझेदारी पर चर्चा हुई। व्यापार, रक्षा, तकनीक और ऊर्जा में सहयोग बढ़ाने तथा कोविड महामारी व जलवायु संकट से मिलकर लड़ने पर प्रतिबद्धता जतायी गई। इससे पहले प्रधानमंत्री ने भारतीय मूल की पहली महिला उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात की। कमला हैरिस ने कहा कि दोनों देश पुराने लोकतंत्रों में से एक हैं और दोनों नैसर्गिक सहयोगी हैं तथा समान मूल्यों व भू-राजनीतिक हितों को साझा करते हैं। साथ ही क्वॉड समूह के देशों अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान व भारत ने शिखर बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आवाजाही की आजादी सुनिश्चित करने के लिये मिलजुल कर काम करने पर बल दिया गया। प्रधानमंत्री को जो कहना था, कह दिया अर्थ निकालना आपके विवेक पर है |