प्रतिदिन :
नये हुक्मरानों बधाई, देश की अपेक्षा याद रखें !
सारे मध्यप्रदेश को जागृति अवस्थी पर नाज है | जागृति ने सफलता के कीर्तिमान के साथ संघ लोकसेवा आयोग की आगामी परीक्षा २०२१ की चुनौती भी प्रदेश के युवाओं को दी है | प्रदेश के युवाओं को इस परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पर आने की चुनौती है |जागृति दूसरे स्थान पर रहीं |सफलताएं दुनिया को आकर्षित ही नहीं, प्रेरित भी करती हैं| किसी भी माता-पिता का सम्मान ऊंचा तभी होता है, जब सन्तति सिविल सेवा में प्रवेश करती है |
मध्यप्रदेश में सिविल सेवा और सरकारी नौकरियों के प्रति रुझान बढ़ रहा है| यूँ तो हर साल प्रदेश के बहुत सारे बच्चे सिविल सेवा, पुलिस सेवा, विदेश सेवा, अन्य सेवा आदि में शामिल होते हैं| परीक्षा में सफलता तो मिलती है, उतनी नहीं मिलती, जितनी अपेक्षित है |
यहां सवाल उठता है कि इतनी संख्या में मध्यप्रदेश मूल के नौकरशाहों के होने के बावजूद प्रदेश की स्थिति तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा जैसी क्यों नहीं है?इसका जवाब है -जैसे मिस यूनिवर्स, मिस वर्ल्ड, मिस एशिया पैसिफिक, मिस इंडिया जैसी प्रतियोगिताओं के फाइनल में पहुंचनेवाली सुंदरियों का जिस तरह एक ही जवाब होता है, मां की तरह दयालु बनना, समाज की सेवा करना, मदर टेरेसा से प्रभावित होना, उसी तरह सिविल सेवा के इंटरव्यू में पहुंचे छात्र भी अपना प्रमुख उद्देश्य समाज को बदलना और उसकी सेवा बताते हैं| जिस तरह प्रतियोगिता जीतते ही सुंदरियां मदर टेरेसा को भूल जाती हैं, उसी तरह सिविल सेवा में चयनित युवा मसूरी लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी में पहुंचने के बाद अपने उस उद्देश्य को भूलने लगते हैं, जिसका बखान वे साक्षात्कार बोर्ड के सामने कर चुके होते हैं|चंद अपवादों को छोड़ दें, तो उनके अंदर वही आत्मा समाहित होने लगती है, जो अंग्रेजों द्वारा स्थापित इंडियन सिविल सेवा के अधिकारियों में थी|
कुछ प्रतिशत अधिकारी ही अगर सही दिशा में सोचते तो समाज बदलने की उनकी प्रतिज्ञाएं समाज को बेहतर बना चुकी होतीं| प्रशासनिक अधिकारियों के सामने जाने के लिए लोगों में हिचक नहीं होती | फिर समाज भी ऐसा होता जा रहा है कि साल-दर-साल बदलाव का दावा करने वालों के झांसे में आ जाता है , और मजबूरी में खुद ही बदलने से इनकार कर देता है|
संविधान के अनुच्छेद-३१० और ३११ मार्गदर्शी हैं | पहले अनुच्छेद में सिविल सेवकों के अधिकार तय किये गये हैं| दूसरे अनुच्छेद के तहत उन्हें चुनने वाले लोक सेवा आयोग की व्यवस्था है| याद कीजिये,संविधान सभा के कई सदस्यों ने आशंका जतायी थी कि सिविल सेवकों को गांधी जी के सपनों के मुताबिक लोक सेवक बनाने के लिए संवैधानिक संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे भी अंग्रेज अधिकारियों जैसा तानाशाही रुख अपनायेंगे| अपवाद को छोड़ आज,ज्यादा अधिकारी “ सेवक” नहीं “शासक” की भूमिका में हैं |
एक सवाल- संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षाओं से उभरी सफल गाथाएं अक्सर किताबी ही क्यों रह जाती हैं? इस पर भी चर्चा होनी चाहिए| नौकरशाहों के घरों पर पड़ने वाले छापों और वहां से निकलने वाली अकूत संपत्तियों की कहानियां भी याद रखनी होगी, तभी सफलता की कहानियों को उन लक्ष्यों के प्रति जागरूक रखा जा सकेगा, जो संविधान सभा ने तय किये थे और अब साक्षात्कार में दोहराए जाते हैं |