प्रतिदिन:
दुष्काल :पता नहीं कब निजात मिलेगी ?
केन्द्र सरकार ने कोविड-१९ के दिशा-निर्देश की अवधि३१ जनवरी तक बढ़ा दी है। देश के कई राज्यों ने अपने – अपने तरीकों से प्रतिबन्ध लगाने शुरू कर दिए हैं|देश के १९ राज्यों में ओमिक्रॉन पहुंच गया है। देश की राष्ट्रीय कोविड-१९ सुपर मॉडल कमेटी का अनुमान है कि हमारे यहां फरवरी मध्य में इसकी पीक होगी। बावजूद इसके इस लहर में अस्पताल में भरती होने वालों की संख्या पिछली लहर की तुलना में ९० से ९६ प्रतिशत कम होगी। वैश्विक परिदृश्य पर कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का असर अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, एशिया और यूरोप समेत करीब १०० देशों में दिखाई पड़ रहा है। अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन का अनुमान है कि अगले दो महीने में इससे संक्रमित लोगों की संख्या तीनअरब के ऊपर पहुंच जाएगी, यानी दुनिया की आधी आबादी से कुछ कम। यह संख्या पिछले दो साल में संक्रमित लोगों की संख्या से कई गुना ज्यादा होगी।
टीका बनाने वाली कंपनियां भी अपने टीकों में बदलाव कर रही हैं लेकिन वितरण में असमानता बदस्तूर है। कोविड-१९ के दुष्काल में अबतक आया का सबक है कि महामारी जितनी देर टिकेगी, उतने म्यूटेंशंस-वेरिएशंस होंगे। टीकाकरण में देरी का मतलब है म्यूटेशंस बढ़ते जाना। इसमें दो राय नहीं कि ओमिक्रॉन का संक्रमण बहुत तेज है। ब्रिटेनमें हर दो दिन में इसके केस दुगने हो रहे हैं।
दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस वेरिएंट के खतरे के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहने के लिए पर्याप्त डेटा अभी उपलब्ध नहीं है। इसे ध्यान में रखना चाहिए कि संक्रमण के १७ से २१ दिन के बाद मौत का अंदेशा होता है। संक्रमण का खतरा दो-तीन हफ्ते बाद ही दिखाई पड़ेगा। चिंता की बात यह है कि यह वेरिएंट हाल में टीकाकरण या संक्रमण से पैदा हुई इम्यूनिटी भेदने में सफल हुआ है। इस वेरिएंट के जेनेटिक मूल के अध्ययन में दुनिया के वैज्ञानिक जुटे हैं। आज इस बात का पता होना जरूरी है कि इसका अगला रूप कैसा होगा।पहले की भांति खतरनाक होगा या नहीं। चीन से २०१९ में अपनी विश्व-यात्रा पर निकले सार्स-को वी-२ वायरस के अब तक करीब ५० म्यूटेंट सामने आ चुके हैं। वायरस का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है उसका स्पाइक प्रोटीन जो कोशिकाओं के संपर्क में आता है। वहीं से इम्यून सिस्टम पर उसका हमला होता है। ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन के३६ म्यूटेशंस हैं। इसकी तुलना में अल्फा में१० , गामा में १२ और डेल्टा में९ । इसके दूसरे अंग भी महत्वपूर्ण हैं और वैज्ञानिक इसके अध्ययन में जुटे हैं।
अभी तो ओमिक्रॉन का सर्वाधिक प्रभाव यूरोप पर है। २७ दिसंबर २०२१ तक की रिपोर्टों के अनुसार, फ्रांस और ब्रिटेन में रोज एक लाख या उससे भी ज्यादा नए मामले आ रहे हैं। एक हफ्ते में पेरिस में औसतन प्रति१०० टेस्ट में एक व्यक्ति संक्रमित पाया गया है। कोविड-१९ से हुई मौतों में सर्वाधिक प्रभाव यूरोप में ५३ प्रतिशत है तो अमेरिका और कनाडा में यह २२ प्रतिशत है |
डेनमार्क और आइसलैंड जैसे देशों में भी रिकॉर्ड संख्या में केस दर्ज किए जा रहे हैं। डेनमार्क की आबादी ५८ लाख है। वहां हर रोज करीब १८००० केस आ रहे हैं। बेल्जियम में सिनेमाघर और कंसर्ट हॉल बंद कर दिए गए हैं। यूरोप में नीदरलैंड्स में सबसे ज्यादा पाबंदियां हैं। सभी गैर-जरूरी स्टोर, रेस्तरां और बार बंद कर दिए गए हैं। स्कूलों की छुट्टियां बढ़ा दी गई हैं। ब्रिटेन में घर-घर जाकर वैक्सीन देने के सुझाव दिए जा रहे हैं, पर नेशनल हेल्थ सर्विस ने फिलहाल इससे इंकार किया है।
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन का अनुमान है मध्य जनवरी में इसका वैश्विक पीक संभव है जब दुनिया में हर रोज करीब साढ़े तीन करोड़ संक्रमण होने लगेंगे। अगले दो महीनों में अमेरिका में ही १८ करोड़ नए संक्रमण हो सकते हैं। पता नहीं, ऐसा होगा या नहीं, पर सामान्य व्यक्ति के मन में इससे डर पैदा होता जा रहा है।
जब खतरा इतना बड़ा दिख रहा है, तो वैश्विक आवागमन को फौरन क्यों नहीं रोका जा रहा है? इस दौरान दो तरह की बातें सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का एक वर्ग कह रहा है कि ओमिक्रॉन का दुष्प्रभाव इतना कम है कि बहुत से लोगों को पता भी नहीं लगेगा कि वे बीमार हुए थे। कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।अभी तक जो वैज्ञानिक सलाह सामने आईं हैं उनके अनुसार बूस्टर डोज मददगार होगा । जिन्हें टीका नहीं लगा है या जो संक्रमित नहीं हुए हैं, खतरा उनको ज्यादा है।