- अभिमत

आत्ममुग्धता छोड़ें, हक़ीक़त समझें

आत्ममुग्धता छोड़ें, हक़ीक़त समझें

कहने को आज भारत अमृतकाल में हैं और खुश हैं कि हमने चीन को पीछे छोड़ दिया है तो आज इसका आकलन भी करना चाहिए कि हम कहां खड़े हैं? सरकार सिर्फ़ इस बात से आत्म्मुग्ध है,भारत आबादी में चीन को पार कर चुका है।अब बात हक़ीक़त की।

आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में भारत में नौकरी या रोजगार करने वाले लोगों की संख्या 40.2 करोड़ थी, जोकि 2017 के आँकड़े 41.3 करोड़ से कम थी। यानी हमने इस दौरान कोई नई नौकरी तो नहीं ही सृजित की बल्कि जो पहले से नौकरियां थीं, उनमें भी कमी की। जबकि इस दौरान कम से कम 10 करोड़ नए लोग कार्यबल में शामिल हुए हैं।

इसका एक कारण है कि भारतीय उतना निवेश नहीं कर रहैं जितना वे पहले करते थे। आँकड़े कहते हैं सिंतबर 2022 में ‘भारत में निवेश की दर जीडीपी के 39 प्रतिशत से घटकर 31 प्रतिशत पर पहुंची’ । विश्व बैंक के आंकड़े भी बताते हैं कि भारत में ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन यानी सकल निश्तित पूंजी निर्माण में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 2011 के 31प्रतिशत से गिरकर 2022 में 22 प्रतिशत पर पहुंच गई है।

अगर भारत में तय समय पर जनगणना होती तो बाहर की दुनिया को हमें यह बताने की अलग से जरूरत नहीं पड़ती थी कि हम आबादी में चीन को पार कर चुके हैं। याद कीजिए एपीजे अब्दुल कलाम ने इंडिया 2020 नामक एक किताब लिखी थी कि कैसे हम 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बन सकते हैं और अब इसकी संभावना दूर की कौड़ी है। इन दिनों हम अपने आसपास जो देख रहे हैं उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका उस किताब में पूर्वानुमान या उम्मीद की गई हो। हम हमेशा की तरह लड़खड़ाते थे और बड़ी आबादी के लड़खड़ते ही, रहेंगे। हालांकि नारे और जुमले इन दिनों बदलते रहे हैं, आने वाले चुनाव में और नए और बदले हुए होंगे।

बढ़ती जनसंख्या का कोई लाभ है – तो पहला मुद्दा जनसांख्यिकीय लाभ का है, लेकिन यह तब आता है जब अधिकांश आबादी कामकाजी उम्र की होती है। हमने कुछ साल पहले इस अवधि में प्रवेश किया था, लेकिन हमें इसका लाभ नहीं मिला है। कारण यह है कि जो काम करने के लिए उपलब्ध हैं उनके लिए नौकरियां नाकाफी हैं। लेकिन काम के लिए उपलब्ध, यानी 15 वर्ष से अधिक वाले लोगों की संख्या आबादी का केवल 40 फीसदी है। विशेष रूप से भारतीय महिलाएं पाकिस्तानी और बांग्लादेशी महिलाओं की तुलना में बड़ी संख्या में कार्यबल से बाहर हो गई हैं। वैसे यह बात सिर्फ महिलाओं के बारे में ही नहीं बल्कि पूरी आबादी के लिए दुरुस्त है।

आँकड़े कहते हैं सिंतबर 2022 में ‘भारत में निवेश की दर जीडीपी के 39 फीप्रतिशत से घटकर 31 प्रतिशत पर पहुंची’ । विश्व बैंक के आंकड़े भी बताते हैं कि भारत में ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन यानी सकल निश्तित पूंजी निर्माण में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 2011 के 31 प्रतिशत से गिरकर 2022 में 22 प्रतिशत पर पहुंच गई है।सरकार को और प्रतिपक्ष को इधर -उधर की बात न कर इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिए ।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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