- अभिमत

बस, आप चुपचाप वोट दे देना

प्रतिदिन विचार :

बस, आप चुपचाप वोट दे देना

भारत में चुनाव आ रहा है, बड़े नेताओं का [चोर से चौकीदार बन जाने का] समय आ रहा है। बेवफाओं के वफादार घोषित होने का भी समय है। जिन लोगों ने दिन-दहाड़े नागरिकों के सपने चुरा कर उन्हें दु:स्वप्न बना दिया, वही अब सपनों पर एक नया मुलम्मा चढ़ा कर निकलने वाले हैं, गांव-गांव, गली-गली, किसी की अन्धभक्ति का कोई श्रद्धा गीत गाते हुए लोग दिखने वाले हैं । मंशा अपने वोटों की सहायता से महानुभावों को फिर उसी कुर्सी पर बैठने को लालायित है, जो कभी पहले सिंहासन थी, आजकल जनसेवा की गद्दी कहलाती है। हमारी गलियों में जब बिजली कट अपनी तेज़ी दिखाते हैं, पावर कट अपना ज़ुल्म दिखाते हैं, तो अपनी विजय घोषणाओं में सेंध लगती देख कर चौकीदार बने चोर अब ‘जागते रहो’ चिल्लाते हैं। यह दलबदलुओं का भी ज़माना है, कब कोई सेंधमार स्वांग बदल कर साधुवेष धारण कर आपको श्रद्धा से विनत होने के लिए कह दे, कोई भरोसा नहीं ।

कुछ लोग ऐसे भी जो, तम्हारी भी जय-जय और हमारी भी जय-जय करने में यक़ीन करते हैं । किसी से यह न पूछना कि यह सब कैसे बिगड़ा दिख रहा है अगर यह पूछा क्यों तो तो जवाब मिलेगा “ यह तो 70 साल से बिगड़ा बस अभी उसे सुधारने की फ़ुरसत नहीं मिली थी। और अब यह कम्बख्त मानसून धोखा दे गया। जब आपको बरसना था, तब तो बरसे नहीं, और अब बेमौसम बरसात करके जलथल पैदा किया जा रहा है।पिछली बार अपने चुनाव एजेंडे में हमारी अभागी धरती स्वर्ग लोक का वायदा किया था, फिर इसी स्थगित मानसून की तरह हमारी गलियों का रास्ता ही भूल गया। और अब जब चुनाव दुंदुभि बजे तो स्थगित मानसून के याद कर लेने की तरह हमारी गलियों में महानुभाव प्रगट हो गये, लो हमारे आंकड़े देख लो कि हमने तो अपने एजेंडे के पचासी प्रतिशत वायदे पूरे कर दिये है ।

कोरोना दुष्काल के कारण आम आदमी का लाभ घाटे में बदल गया, निठ्ठला हो सडक़ पर कामगार आ। सरकार ने उनके बदले बड़े लोगों की बड़ी- बड़ी फिक्र की है। अब दवा है कि आपके वोट डालने की तिथि से पहले सब वायदे पूरे हो जाएंगे। बेशक भाषण में वायदों के पूरे होने की यह घोषणा बड़ी अच्छी लगती है। जैसे पिछली बार आपने कहा था, ‘घर-घर रोजग़ार, अब नहीं रहेगा कोई बेकाम, बेरोजग़ार।’ मज़े की बात के इस वचन का उद्घोष उन बेकारों की भीड़ ने ही किया था, जो ठेके पर नारा लगाने का रोजग़ार पा कर आये थे। अब उसी रोजग़ार के बंटने के दिन फिर आ गए। फिर दिहाडिय़ों पर लगिये और विजय घोष कीजिये। महाकवि तो ठेले पर हिमालय लाद कर लाये थे, आपने तो ठेकों पर वायदों की पूर्ति की घोषणाएं लाद दीं, ठेके की इस कसौटी पर दम घोंटू महंगाई का दाहकर्म कर देने का विजयघोष जारी रखा जा सकता है। सिर्फ पैट्रोल और डीज़ल की आकाश उछलती कीमतों की ओर न देखिए । पहले तो क्रिकेट में ही खिलाडिय़ों के शतक लगाने की घोषणाओं पर तालियां बजती थीं, अब तो ये पैट्रोल उत्पाद भी राज्य दर राज्य शतक लगा चुके हैं । उज्ज्वल योजना और गैस क्रांति की बात भी अभी बात कीजिए। ये सिलेंडर भी आपके ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाएंगे, याद कीजिए कभी होते थे कभी सस्ते गैस सिलेंडर। अब तो देश वापिस अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है। इस बार भी केंद्र और राज्य सरकार फिर बातों का कीर्तिमान बनाएगी बस आप चुपचाप वोट दे देना।

 

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *