- अभिमत

कनाडा : डिप्लोमेटिक स्ट्राइक की जरूरत

प्रतिदिन विचार : कनाडा : डिप्लोमेटिक स्ट्राइक की जरूरत

कनाडा और भारत के बीच निज्जर कांड से अदावत नहीं शुरू हुई है। इस अदावत की एक लम्बी कहानी है।सन् 1948 में कनाडा ने कश्मीर मसले पर दखलअंदाजी करके रायशुमारी के मशविरे का समर्थन किया था। मई 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण पर भी कनाडा ने तल्ख मिजाज दिखाया था। सन् 1982 में भारत सरकार द्वारा कनाडा में पनाह ले चुके कुछ आतंकियों के प्रत्यर्पण की मांग पर कनाडा ने राष्ट्रमंडल का हवाला देकर भारत की अपील को ठुकरा दिया था। भारत द्वारा प्रत्यर्पण का अनुरोध ठुकराने वाला कनाडा खुद आतंक की जद में फंस गया जब 23 जून 1985 को एयर इंडिया के कनिष्क विमान को बम से उड़ा दिया गया, जिसमें सवार सभी 329 यात्री मारे गए थे। मारे गए 268 लोगों का संबंध कनाडा से ही था।

आतंक की पनाहगाह बन चुके कनाडा ने अब भारत में आतंक के दौर की उस भयानक तस्वीर को याद करा दिया जब सन् 1984 में पाकिस्तान प्रायोजित आतंक पंजाब में अपने चरम पर था। उस समय अमृतसर स्थित दरबार साहब में शरण ले चुके मोर्चाबंद चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए भारतीय सेना ने आपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया था।

राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत पर काम करने वाली भारतीय सेना राष्ट्र के स्वाभिमान से समझौता नहीं करती। ग्लोबल फायर पावर 2023 की ‘मिलिट्री स्ट्रेंथ’ रैंकिंग के अनुसार दुश्मन के दांत खट्टे करने की सलाहियत रखने वाली भारतीय सेना विश्व की चौथी सैन्य ताकत है। वहीं कनाडा 27 वें पायदान पर काबिज है। अत: भारत का लहजा सबक सिखाने वाला है। राष्ट्र को खंडित करने वाली गतिविधियां किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं होंगी। आतंकियों से हमदर्दी रखने वाले कनाडा से भारत के रिश्तों में उतार-चढ़ाव का दौर एक मुद्दत से चला आ रहा है। अब ट्रुडो भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। गत दस सितंबर को भारत में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में ट्रुडो भी तशरीफ लाए थे, मगर अपने वतन वापिस लौटते ही ट्रुडो के तेवर बदल गए। कनाडा में पनाह ले चुके एक सिख रहनुमां के कत्ल का इल्जाम बिना किसी पुख्ता प्रमाण के भारत पर लगा दिया। दोनों देशों में तल्खियां इस कदर बढ़ चुकी हैं कि दोनों मुल्कों ने एक-दूसरे के प्रतिनिधि वापिस भेज दिए। भारत को कनाडा का वीजा तक बैन करना पड़ा।

कनाडा में पढ़ाई कर रहे लाखों भारतीय छात्रों की पढ़ाई की महंगी फीस कनाडा की आर्थिकी का अहम हिस्सा है। कनाडा की निजी यूनिवर्सिटी का अर्थतंत्र पूरी तरह भारतीय छात्रों पर निर्भर करता है। वर्ष 2022 में यूक्रेन में पढ़ रहे हजारों छात्रों को वार जोन से निकालना पड़ा था। अत: छात्रों के भविष्य से जुड़े इस मुद्दे पर भारत के हुक्मरानों को ध्यान देना होगा कि भारतीय छात्र शिक्षा के लिए विदेश जाने को मजबूर क्यों हैं?

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकी व गैंगस्टर नेटवर्क से जुड़े 43 कुख्यात आरोपियों की तस्वीरें जारी की हैं जिनमें कुछ कनाडा में शरण ले चुके हैं। बिना साक्ष्यों के भारत पर आरोप लगाकर फजीहत झेल रहे ट्रुडो को समझना होगा कि शब्दों के भी कुछ जायके होते हैं। परोसने से पहले स्वाद चख लेना चाहिए। बुराई ढूंढने का शौक है तो शुरुआत खुद से करें, चरमपंथियों का आईना बनने की ख्वाहिश खुद मिट जाएगी। बहरहाल भारत विरोधी तत्त्वों की हिमायत करने वाले पश्चिमी देश याद रखें कि चंदन के पेड़ों की खुशबू का शौक रखने वालों को सांपों के खतरे का अंदाजा भी होना चाहिए। फिलहाल कनाडा पर डिप्लोमेटिक स्ट्राइक की जरूरत है।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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