- अभिमत

भू जल : आँकड़े डरा रहे हैं

प्रतिदिन विचार

भू जल : आँकड़े डरा रहे हैं

कल आया यह ताज़ा आंकड़ा डराने वाला है कि उत्तर भारत में भूजल का स्तर 450 घन किलोमीटर तक घट गया है। पिछले दो दशकों में आई यह गिरावट इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में खेती व जीवनयापन के लिए पानी की किल्लत हो सकती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान के ‘विक्रम साराभाई चेयर प्रोफेसर’ के एक अध्ययन में बताया गया है कि दो दशक में भूजल में आयी यह कमी भारत के सबसे बड़े जलाशय इंदिरा सागर बांध की कुल जल भंडारण मात्रा का 37 गुना है। दरअसल, भूजल में इस कमी की एक बड़ी वजह वर्ष 1951 से 2021 के बीच मानसूनी बारिश में 8.5 प्रतिशत की कमी आना है। इस संकट का दूसरा पहलू यह भी है कि उत्तर भारत में सर्दियों के तापमान में 0.3 सेल्सियस वृद्धि देखी गई है। इस बात की पुष्टि हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान के शोधार्थियों के एक दल ने की है। मानसून के दौरान कम बारिश होने और सर्दियों के दौरान तापमान बढ़ने के कारण आने वाले वर्षों में निश्चित रूप से सिंचाई के लिये पानी की मांग में वृद्धि होगी। वहीं पानी की मांग बढ़ने से भूजल पुनर्भरण में भी कमी आएगी। जिसका दबाव पहले से ही भूजल के संकट से जूझ रहे उत्तर भारत के इलाके पर पड़ेगा। हैदराबाद स्थित एनजीआरआई का अध्ययन चेताता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जहां एक ओर मानसून के दौरान बारिश में कमी आएगी, वहीं सर्दियों में अपेक्षाकृत अधिक तापमान रहने से भूजल पुनर्भरण में छह से 12 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। संकट का एक पहलू यह भी है कि हाल के वर्षों में मिट्टी में नमी में कमी देखी गई है। जिसका निष्कर्ष यह भी है कि आने वाले वर्षों में सिंचाई के लिये पानी की मांग में वृद्धि होगी। निश्चित ही यह स्थिति हमारी खेती और खाद्य शृंखला की सुरक्षा के लिये चिंताजनक कही जा सकती है।

वहीं दूसरी ओर शोधार्थियों ने अपने अध्ययन में पाया है कि मानसून के दौरान बारिश के प्रतिशत में गिरावट तथा सर्दियों में तुलनात्मक रूप से मौसम के गर्म होने से फसलों की सिंचाई के लिये अधिक भूजल की जरूरत पड़ेगी। इसकी वजह यह भी है कि सर्दियों में तापमान अधिक होने से खेतों की मिट्टी तुलनात्मक रूप से शुष्क हो जाती है। यह कमी तभी पूरी हो सकती है जब हल्की बारिश की अवधि अधिक हो। देश के नीति-नियंताओं को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि भूजल के स्तर को कैसे ऊंचा रखा जा सके। जहां एक ओर वर्षा जल संग्रहण को ग्रामीण व शहरी इलाकों में युद्धस्तर पर शुरू करने की जरूरत है, वहीं अधिक पानी वाली फसलों के चक्र में बदलाव लाने की भी आवश्यकता है। इस संकट के आलोक में खेतिहर वर्ग को मुफ्त बिजली-पानी की राजनीति पर पुनर्विचार की जरूरत भी है। भूजल की सहज व सस्ती उपलब्धता उसके अधिक उपयोग को प्रेरित करती है।

कृषि वैज्ञानिकों को ऐसी फसलों के लिये अनुसंधान को बढ़ावा देना होगा, जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बावजूद अधिक तापमान व कम पानी में अधिक उपज दे सकें। सरकारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि 140 करोड़ लोगों के लिये खाद्यान्न उपलब्ध कराना उनका प्राथमिक दायित्व है। खाद्यान्न के उत्पादन में कमी कालांतर महंगाई का कारण भी बनती है, जिससे जनाक्रोश में भी वृद्धि होगी। नीति-नियंताओं को गंभीरता से सोचना होगा कि पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रही खेती को कैसे लाभकारी बनाया जाए।

यदि भूजल का यह संकट भविष्य में और गहराता है तो यह असंतोष का वाहक ही बनेगा। हमें बदलते मौसम के अनुकूल ही अपनी रीतियां-नीतियां बनानी होंगी। साथ ही पूरे देश में पानी के उपयोग के लिये अनुशासन की भी जरूरत होगी। अब चाहे हम नागरिक के रूप में हों, उद्योग व अन्य क्षेत्र में, पानी का किफायती उपयोग आने वाले भूजल संकट से हमारी रक्षा कर सकता है। यह एक गंभीर समस्या है और सरकार व समाज की सक्रिय भागीदारी इस चुनौती से मुकाबले के लिये जरूरी होगी।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *